उत्तर प्रदेश में जेल भेजे गए किशोर ने आत्महत्या की, NHRC ने एसएसपी से रिपोर्ट मांगी

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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मादक पदार्थ रखने के आरोप में “व्यस्क के तौर पर जेल भेजे जाने के बाद” 15 वर्षीय एक किशोर के कथित तौर पर आत्महत्या कर लेने के एक हालिया मामले में उत्तर प्रदेश की एटा जिला पुलिस से रिपोर्ट मांगी है।

नयी दिल्ली। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मादक पदार्थ रखने के आरोप में “व्यस्क के तौर पर जेल भेजे जाने के बाद” 15 वर्षीय एक किशोर के कथित तौर पर आत्महत्या कर लेने के एक हालिया मामले में उत्तर प्रदेश की एटा जिला पुलिस से रिपोर्ट मांगी है। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी। इसके अलावा, आयोग ने अपने जांच विभाग को मौके पर जाकर मामले की जांच करने का भी निर्देश दिया है। एनएचआरसी ने एक बयान में कहा कि उसने एटा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को सीनियर रैंक के एक पुलिस अधिकारी द्वारा आरोपों की जांच करने और चार सप्ताह के भीतर आयोग को कार्रवाई की रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।

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आयोग ने कहा कि उसने समाचार की एक क्लिपिंग के साथ इस शिकायत का संज्ञान लिया है कि 15 वर्षीय एक किशोर मादक पदार्थ रखने के आरोप में एक वयस्क के रूप में जेल भेजे जाने की यातना को सहन नहीं कर सका। उसने तीन महीने बाद जमानत पर रिहा होने के बाद 21 सितंबर को उत्तर प्रदेश के एटा में आत्महत्या कर ली। इसमें कहा गया है कि कथित तौर, पर किशोर को एटा पुलिस ने नशीली दवाएं रखने के संबंध में गिरफ्तार किया था और उसे किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश करने के बजाय जिला जेल भेज दिया गया था। इसने कहा कि किशोर के पिता ने कथित तौर पर आरोप लगाया है कि उसके बेटे को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था और पुलिस द्वारा पैसे वसूलने के लिए प्रताड़ित किया गया था।

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एनएचआरसी ने एसएसपी को पुलिस द्वारा आरोपी की उम्र और जन्मतिथि का आकलन करने के लिए किस प्रोटोकॉल का पालन किया गया, जैसे कुछ बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया है। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (जेजे अधिनियम) के नियम 7 और धारा 94 (सी) के अनुसार, जन्म तिथि उम्र का प्राथमिक प्रमाण है। आयोग ने पुलिस से सवाल किया है कि किन परिस्थितियों में किशोर के साथ वयस्क जैसा व्यवहार किया गया।

बयान में कहा गया कि आयोग ने अपने जांच विभाग को मौके पर जाकर जांच करने, मामले का विश्लेषण करने और संस्थागत उपाय सुझाने का निर्देश दिया है, जिसकी सिफारिश सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए की जा सकती है कि अभियोजन के लिए बच्चों के साथ वयस्कों जैसा व्यवहार नहीं किया जाए।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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