Ramcharitmanas पर टिप्पणी कर मुश्किल में फंसे स्वामी प्रसाद मौर्य, SP ने बयान से किया किनारा, 3 थानों में दी गई तहरीर
सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने दावा किया कि पार्टी इस टिप्पणी के बारे में अनजान थी क्योंकि वह और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव रविवार को उत्तराखंड में थे। सूत्रों के मुताबिक, अखिलेश यादव स्वामी से बेहद नाराज हैं।
समाजवादी पार्टी ने रामचरितमानस को लेकर पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की टिप्पणी से खुद को अलग कर लिया। उत्तर प्रदेश विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडे ने कहा कि उन्होंने पहले ही एक वीडियो संदेश पर अपना जवाब दे दिया है। वीडियो में पांडेय कहते हैं कि विदेशों समेत हर जगह लोग रामचरितमानस पढ़ते हैं, उसे स्वीकार करते हैं और उसका पालन करते हैं। हम सभी रामचरितमानस और अन्य धर्मों के ग्रंथों का भी सम्मान करते हैं। सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने दावा किया कि पार्टी इस टिप्पणी के बारे में अनजान थी क्योंकि वह और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव रविवार को उत्तराखंड में थे। सूत्रों के मुताबिक, अखिलेश यादव स्वामी से बेहद नाराज हैं।
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स्वामी प्रसाद मौर्या के रामचरित मानस पर दिए गए बयान के खिलाफ राजधानी लखनऊ में प्रदर्शन हो रहे हैं। वहीं लखनऊ में सपा नेता के खिलाफ तीन थानों में तहरीर दी गई है। स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस वाले बयान पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने कहा कि उनके माता-पिता ने गलती की जो उनका नाम स्वामी रखा, उन्हें नाम से स्वामी हटाना चाहिए। ये समाज विरोधी लोग हैं जो इस तरह की गंदी बात कर समाज को दूषित कर रहे हैं। इनका समाज से बहिष्कार करना चाहिए। रामचरितमानस पर स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोग विक्षिप्त हैं और अखिलेश यादव को बताना चाहिए ये उनकी पार्टी का विचार है या स्वामी प्रसाद का निजी विचार है। सपा हमेशा देश विरोधी लोगों के साथ खड़ी रही है।
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बता दें कि बसपा और भाजपा के पूर्व मंत्री और अब एक सपा एमएलसी, मौर्य ने रविवार को बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की टिप्पणी का समर्थन किया था। करोड़ लोग इसको नहीं पढ़ते। सब बकवास है। ये तुलसीदास ने अपनी प्रश्न और खुशी के लिए लिखा है। धर्म के नाम पर गली क्यों? दलित को, आदिवासियों को शूद्र कह कर के, क्यों गली दे रहे हैं? क्या गाली देना धर्म है? (यह झूठ है कि करोड़ों लोग इसे पढ़ते हैं। तुलसीदास ने इसे आत्म-प्रशंसा और अपने सुख के लिए लिखा है। हम धर्म का स्वागत करते हैं। लेकिन धर्म के नाम पर गालियां क्यों? दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों का नाम लेकर गालियां।
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