कांग्रेस में कलह जारी है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी में आईं उर्मिला मातोंडकर ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। पार्टी के अंदर की गुटबाजी को वजह बताया है। लेकिन यह गुटबाजी सिर्फ मुंबई तक ही सीमित नहीं है। मध्य प्रदेश से खबर आई ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का समय मांगा। चार बजे की मुलाकात थी। ऐन मौके पर टल गई। कमलनाथ मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री हैं साथ में प्रदेश में कांग्रेस के पार्टी अध्यक्ष भी हैं। इस कुर्सी पर सिंधिया की नजर बताई जाती है। इसलिए अभी तक प्रदेश स्तर के नेता बयान दे रहे थे। अब सिंधिया सीधे अपने लिए बैटिंग कर रहे हैं। खबर ये भी है कि मामला अनुशासन समिति तक पहुंच गया है। मध्य प्रदेश के नए कैप्टन को लेकर आलाकमान अब भी कशमकश में है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की मुलाकात फिलहाल टल गई है। ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपने नए कप्तान के लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा। हालांकि सोनिया से 12 सितंबर को सिंधिया की मुलाकात होगी। लेकिन इसमें सिर्फ ज्योतिरादित्य ही नहीं होंगे बल्कि वो लोग भी शामिल रहेंगे जो सिंधिया को चैलेंज कर रहे हैं। सोनिया दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के साथ 12 सितंबर को मुलाकात करेंगी।
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प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर विवाद के बाद ज्योतिरादित्य और सोनिया के बीच मुलाकात होनी थी। कयास लगे थे कि मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी में अध्यक्ष पद को लेकर सोनिया गांधी से बात होगी। ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए उनके समर्थक भी दबाव बनाए हुए हैं। जबकि दूसरी ओर दिग्विजय सिंह गुट भी हावी है। सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अंदरूनी गुटबाजी की जांच का जिम्मा एके एंटनी को सौंपा है। एंटनी की अध्यक्षता वाला पैनल जल्द ही सोनिया को अपनी रिपोर्ट सौंप देगा। ऐसे में सिंधिया के साथ सोनिया की मुलाकात टलने के पीछे की वजह इस आने वाली रिपोर्ट को भी बताया जा रहा है। सिंधिया ने मीडिया से चर्चा में सिर्फ इतना ही कहा कि मुझे महाराष्ट्र चुनाव के लिए हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में शामिल होना था। मैंने पार्टी अध्यक्ष से मिलने के लिए अलग से कोई समय नहीं मांगा था। ऐसे में यह खबर गलत है कि मुलाकात स्थगित हुई है, उन्होंने कहा कि फिलहाल उनका ध्यान महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों पर है।
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लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति ने सिंधिया परिवार की बगावत को पीढ़ी दर पीढ़ी देखा है और इतिहास में कई किस्से भी दर्ज हैं। अटकलों के बीच कहा जा रहा कि क्या सिंधिया अपने पिता और दादी की राह पर चल रहे हैं? विजयाराजे सिंधिया ही सिंधिया परिवार की पहली सदस्य थीं जिन्होंने सियासत की दुनिया में कदम रखा था। विजयाराजे सिंधिया ने अपनी राजनीतिक शुरुआत कांग्रेस से की थी। लेकिन राजमाता विजायराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़ जनसंघ में शामिल हो गईं और आखिरी वक्त तक भाजपा की संस्थापक सदस्यों में से एक रहीं। उनके पुत्र और ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने अपनी राजनीति जनसंघ से शुरू की थी। बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
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माधवराव सिंधिया कांग्रेस से नाराज होकर बगावत पर उतरे थे। 1996 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस का दामन छोड़कर खुद की बनाई पार्टी मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस से चुनाव लड़ा। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावती तेवर और भाजपा के उनको अपने पाले में लाने की कवायद के बाद यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या राज परिवार की तीसरी पीढ़ी भी कांग्रेस से बगावत कर मध्य प्रदेश की राजनीति में इतिहास बनाएगी जैसा कि कभी उनकी दादी राजमाता ने 1967 के दौर में डीपी मिश्रा को सत्ता से बेदखल कर 36 विधायकों की मदद से गोविंद नारायण सिंह को मध्यप्रदेश का सीएम बना दिया था।
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सूत्रों के मुताबिक भाजपा ने उमा भारती को सिंधिया को भाजपा में शामिल कराने की जिम्मेदारी दी है। उमा भारती किसी दौर में ज्योतिरादित्य की दादी विजयाराजे सिंधिया की करीबी हुआ करती थीं। उमा भारती के भोपाल दौरे के वक्त सिंधिया समर्थकों से मुलाकात की भी खबरें आईं थीं। गौरतलब है कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बाहरी समर्थन से चल रही है। राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 114 पर कांग्रेस और 108 पर बीजेपी का कब्जा है। कमलनाथ सरकार को सपा के एक, बसपा के दो और निर्दलीय चार विधायकों का समर्थन हासिल है। ऐसे में बीजेपी सिंधिया समर्थक 20 से 25 विधायकों और उसके अलावा 10 विधायकों को एक साथ कर कांग्रेस से अलग करने में सफल हो जाती है तो दल बदल कानून भी लागू नहीं हो पाएगा। तो क्या सिंधिया अपने परिवार को लेकर चले आ रहे बगावत के इतिहास को दोहराएंगे या कांग्रेस के लिए नया इतिहास बनाएंगे यह देखना दिलचस्प होगा।
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