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मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के समक्ष ऐसी शिकायतें आईं थीं कि गैर-कृषि की अनुमति के दौरान मूल किसान खातेदार की जांच के मामलों में अभिलेखों की अनुपलब्धता और गैर-कृषि की मंजूरी देने के मामलों में विलंब के कारण किसानों और आवेदकों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

गांधीनगर: मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने राज्य में कृषि भूमि की बिक्री के मामलों के लिए डिजिटलीकरण और पारदर्शी ऑनलाइन प्रक्रिया को गति देने वाले महत्वपूर्ण निर्णय किए हैं। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के सुशासन के सफल तीन वर्ष पूर्ण कर चौथे वर्ष में प्रवेश के पहले ही दिन राज्य के किसानों के व्यापक हित में किए गए इन कल्याणकारी निर्णयों के परिणामस्वरूप ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को और अधिक लोकोपयोगी बनाया जा सकेगा। राज्य में कृषि भूमि की बिक्री के मामलों में स्वामित्व विलेख में बिक्री-नोट की प्रविष्टि करते समय भूमि खरीदने वाले किसान खातेदार से उसके 1951-52 से किसान होने का प्रमाण पत्र लेने की प्रथा है।

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मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के समक्ष ऐसी शिकायतें आईं थीं कि गैर-कृषि की अनुमति के दौरान मूल किसान खातेदार की जांच के मामलों में अभिलेखों की अनुपलब्धता और गैर-कृषि की मंजूरी देने के मामलों में विलंब के कारण किसानों और आवेदकों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। राज्य सरकार के ध्यान में यह बात आई है कि 1951-52 से गैर-कृषि भूमि की अनुमति देने के दौरान जब मूलतः किसान होने के साक्ष्य-प्रमाण मांगे जाते हैं, तो जिला विस्तार तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं आदि के कारण साक्ष्य अनुपलब्ध होते हैं। ऐसे में, पुरानी पीढ़ियों और वर्तमान में खरीदी करने वालों के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करना मुश्किल हो जाता है। इसके कारण बिक्री पंजीकरण और गैर-कृषि आवेदनों के मामले किसान होने के सत्यापन के मुद्दे को लेकर या तो लंबित रहते हैं या नामंजूर कर दिए जाते हैं।

इसके परिणामस्वरूप मुख्यमंत्री ने मूल किसान के सत्यापन के संबंध में अभिलेख की अनुपलब्धता के कारण बिक्री-नोट और गैर-कृषि मंजूरियों के मामलों को सरल बनाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण निर्णय किए हैं। जिसके अनुसार, कृषि भूमि के बिक्री नोट को प्रमाणित करने संबंधी निर्णय में किसान सत्यापन के संदर्भ में 6 अप्रैल, 1995 के बाद के अभिलेख पर ही विचार किया जाएगा। इतना ही नहीं, ऐसा सत्यापन करने के दौरान 6 अप्रैल, 1995 से पहले किसी भी भूमि के मामले में आवेदक के पास भूमि का स्वामित्व किस प्रकार का था, इसका सत्यापन कृषि भूमि के बाद के विक्रय-नोट को मंजूरी देने के चरण में लागू नहीं होगा। सक्षम राजस्व प्राधिकारी किसान होने संबंधी उपलब्ध ऑनलाइन अभिलेखों की जांच कर किसान के सत्यापन के लिए नोट को प्रमाणित करने का निर्णय लेगा। बिक्री नोट प्रमाणित करने संबंधी निर्णय लेते समय किसान सत्यापन प्रमाण पत्र पर जोर नहीं दिया जाएगा।

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हालांकि, ऐसी कृषि भूमि के स्वामित्व विलेख में बिक्री नोट की प्रविष्टि करते समय किसान खातेदार को एक निर्धारित प्रारूप में यह शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा कि वह स्वयं किसान खातेदार है। मुख्यमंत्री ने एक महत्वपूर्ण निर्णय यह भी किया है कि जो भूमि मूल रूप से पुरानी शर्त की हो, खेती के उद्देश्य से शर्त परिवर्तित की गई हो तथा गैर-कृषि के लिए प्रीमियम के पात्र हो, ऐसी भूमि के लिए गैर-कृषि का आवेदन आने पर केवल किसान सत्यापन के उद्देश्य से 6 अप्रैल, 1995 के बाद के अभिलेष पर ही विचार किया जाएगा। ऐसी अनुमति प्रदान करते समय कलेक्टरों को कब्जेदारों से इस प्रकार का एक शपथ पत्र लेना होगा- “यह आवेदन केवल गैर-कृषि अनुमति के लिए है, और इस अनुमति से स्वामित्व, टाइटल या अन्य किसी मामले में विसंगति होने पर कानूनी कार्रवाई करने में सक्षम होंगे।” गैर-कृषि अनुमति से संबंधित अन्य प्रावधान यथावत रहेंगे तथा सक्षम प्राधिकारियों द्वारा उन्हें सख्ती से लागू किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने यह भी निर्णय किया है कि वर्तमान में जिन मामलों में किसान खातेदार के दर्जे को लेकर कोई मुकदमा या जांच लंबित है, उन मामलों में यह प्रावधान लागू नहीं होंगे। राज्य के राजस्व विभाग ने मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल के इन महत्वपूर्ण निर्णयों को लेकर प्रस्ताव जारी किए हैं।

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