तलाकशुदा महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा मिलेः शाह बानो की बेटी

Strict law needed for financial security of divorced women: Shah Banos daughter
[email protected] । Aug 24 2017 1:24PM

शाह बानो की बेटी सिद्दिका खान का कहना है कि अब सरकार को ऐसा मजबूत कानून बनाना चाहिये जिससे तलाकशुदा महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा मिले।

इंदौर। अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता हासिल करने के लिये लम्बी कानूनी लड़ाई लड़कर मुस्लिम समुदाय में नजीर पेश करने वाली शाह बानो की बेटी सिद्दिका खान का कहना है कि लगातार तीन बार तलाक बोलकर वैवाहिक संबंध खत्म किये जाने को उच्चतम न्यायालय के असंवैधानिक करार दिये जाने के बाद अब सरकार को ऐसा मजबूत कानून बनाना चाहिये जिससे तलाकशुदा महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा मिले।

सामाजिक मोर्चे के साथ अदालत के शीर्ष गलियारों तक अपनी मां के मुश्किल संघर्ष की गवाह रहीं सिद्दिका खान (70) ने आज कहा, "पति द्वारा लगातार तीन बार तलाक बोलकर पत्नी से शादी का रिश्ता खत्म करने की प्रथा को असंवैधानिक ठहराने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले से खासकर गरीब और अनपढ़ महिलाओं को फायदा होगा। लेकिन ज्यादातर तलाकशुदा महिलाओं को आज भी वही आर्थिक दुश्वारियां झेलनी पड़ रही हैं, जो मेरी मां ने करीब 40 साल पहले झेली थीं। इस मसले का हल यह है कि सरकार तलाकशुदा महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा देने के लिये मजबूत कानून बनाये।" 

वह स्पष्ट करती हैं कि उनकी मां ने "तीन तलाक" प्रथा के खिलाफ नहीं, बल्कि तलाक के बाद उनके पिता से गुजारा भत्ता हासिल करने के लिये संघर्ष की राह चुनी थीं। सिद्दिका 1980 के दशक के उस मुश्किल दौर को याद करते हुए बताती हैं, "मेरी माँ को 60 साल की उम्र में मेरे पिता ने तलाक दे दिया था। इसके बाद हमें जीवन-यापन में काफी परेशानियां आईं। मेरे पिता के खिलाफ गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर करने के बाद मेरी मां को तमाम दबावों का सामना करना पड़ा था। लेकिन वह अपने हक की लड़ाई से पीछे नहीं हटीं।" शाह बानो का वर्ष 1992 में इंतकाल हो गया था। उनकी बेटी ने कहा, "जिस व्यक्ति ने ठान लिया है कि उसे अपनी पत्नी को तलाक देना ही है, वह तीन तलाक प्रथा के अलावा और किसी रास्ते से भी उसे छोड़ सकता है। लेकिन बुनियादी सवाल अब भी बरकरार है कि गरीब और अनपढ़ वर्ग की तलाकशुदा महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक हितों की हिफाजत के लिये कौन-सी कानूनी व्यवस्था होगी जिसकी मदद से वे शादी के खत्म रिश्ते को पीछे छोड़कर अपने जीवन में आगे बढ़ सकें।"

तीन तलाक के ऊपर विवाद कई तरह से शाह बानो मामले की याद दिलाता है। यह मामला मुस्लिम महिलाओं द्वारा सामाजिक न्याय और बराबरी की लड़ाई के हिसाब से एक मिसाल थी जिसका निराशाजनक अंत हुआ। साल 1985 में उच्चतम न्यायालय ने बानो के पक्ष में फैसला सुनाया था। बानो ने अपने पति मोहम्मद अहमद खान से गुजारे भत्ते की मांग की थी। अहमद इंदौर में वकील थे और उन्होंने अपनी पत्नी बानो को तलाक दे दिया था। उच्चतम न्यायालय द्वारा फैसला दिए जाने पर रुढ़िवादी मुस्लिम समहूों के विरोध के बाद राजीव गांधी सरकार ने उच्चतम न्यायालय के इस आदेश को एक अधिनियम के तहत पलट दिया था।

मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 1400 साल पुराने सुन्नी मुस्लिमों के बीच एक साथ तीन तलाक के प्रथा पर कुरान के मूल सिद्धांत और इस्लामिक शरियत कानून के उल्लंघन सहित कई चीजों को आधार बनाकर प्रतिबंध लगा दिया।

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