अदालतों को कामकाज करने से रोकना स्वीकार्य नहीं : उच्चतम न्यायालय
पीठ ने बीसीआई को दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा कि ‘‘पिछले एक साल में किस बार एसोसिएशन ने हड़ताल का आह्वान किया और क्या कार्रवाई की गई।
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अदालतों को कामकाज करने से रोकना ‘‘स्वीकार्य नहीं’’ है और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को एक हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया कि पिछले एक साल में उच्च न्यायालयों में बार एसोसिएशन के हड़ताल का आह्वान करने पर उसने क्या कार्रवाई की। शीर्ष अदालत ने वकीलों की हड़ताल के खिलाफ अपने आदेश के कथित उल्लंघन को लेकर गैर सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि असली मुद्दा यह है कि अदालतों के कामकाज में व्यवधान नहीं डाला जाना चाहिए। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि अदालतें कामकाज करना बंद नहीं कर सकतीं। पीठ ने कहा कि बड़ी संख्या में मामले लंबित रहने के कारण लोगों (आरोपियों) को जमानत नहीं मिल पा रही है।
पीठ ने कहा, ‘‘जब कामकाज नहीं हो पाता है, तब अदालतों के लिए इसे समायोजित करना बहुत मुश्किल हो जाता है। ये व्यावहारिक समस्याएं हैं।’’ शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘जब आप अदालतों का कामकाज करना बंद कर देते हैं, तब यह कुछ ऐसी चीज है जो स्वीकार्य नहीं है।’’ बीसीआई के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने पीठ को बताया कि शीर्ष बार संगठन ने इस मुद्दे पर नियम बनाए हैं। एनजीओ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्हें नियमों की प्रति नहीं मिली है और यहां तक कि आज दिल्ली उच्च न्यायालय में वकीलों की हड़ताल है। न्यायमूर्ति गौरांग कंठ के कलकत्ता उच्च न्यायालय में स्थानांतरण के खिलाफ ‘‘सांकेतिक विरोध’’ के लिए उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के आह्वान पर दिल्ली उच्च न्यायालय के वकीलों ने सोमवार को काम नहीं किया।
वे उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कमी की शिकायत कर रहे थे। पीठ ने कहा, ‘‘बीसीआई विचार करने के लिए नियमों के मसौदे को रिकॉर्ड पर रखना चाहता है और दलील दी है कि यदि यह अदालत अपनी औपचारिक मंजूरी देती है, तो नियम बनाए जा सकते हैं। प्रति आज याचिकाकर्ता के वकील को सौंप दी गई है। वह मसौदा नियमों की पड़ताल करना चाहेंगे। याचिकाकर्ता दो सप्ताह के भीतर इन नियमों के जवाब में अपने सुझाव प्रस्तुत कर सकता है। चार सप्ताह बाद के लिए मामले को सूचीबद्ध किया जाए।’’ भूषण ने कहा कि इन नियमों का हड़ताल पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। पीठ ने कहा कि कई बार जब ऐसी समस्या आती है तो मामले अदालतों में आते हैं और अदालतों को हस्तक्षेप और आदेश पारित करना पड़ता है। वकीलों की हड़ताल के विषय पर न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘यह उच्चतम न्यायालय में क्यों नहीं होता? क्योंकि एक विचार प्रक्रिया है कि अदालतों का कामकाज बाधित नहीं होना चाहिए।’’ पीठ ने बीसीआई को दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल कर बताने को कहा कि ‘‘पिछले एक साल में किस बार एसोसिएशन ने हड़ताल का आह्वान किया और क्या कार्रवाई की गई।
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