JNU छात्र शरजील इमाम को झटका, राजद्रोह मामले में कोर्ट ने जमानत देने से किया इनकार
अदालत ने कहा कि इन आरोपों को साबित करने के लिए साक्ष्य अपर्याप्त हैं कि इमाम के भाषण से दंगाई भड़क गए और इसके बाद उन्होंने लूटपाट की, उपद्रव मचाया और पुलिस दल पर हमला किया।
दिल्ली दंगे के दौरान कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने और लोगों को हिंसा के लिए उकसाने को लेकर शरजील इमाम के खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले में उन्हें जमानत देने से कोर्ट ने इंकार कर दिया। दरअसल, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र शरजील इमाम ने 2019 में संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय नागरिक पंजी के खिलाफ लोगों को उकसाने वाला कथित बयान दिया था। पुलिस के मुताबिक शरजील इमाम का बयान 13 दिसंबर 2019 को कथित रूप से आया था। इसके परिणाम स्वरुप दिल्ली में 2 दिन बाद भी दंगे हुए थे। इस दौरान दक्षिणी दिल्ली के जामिया नगर इलाके में 3000 से अधिक लोगों की भीड़ में पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया था और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुज अग्रवाल ने इमाम की जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
हालांकि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश यह भी कहा कि इन आरोपों को साबित करने के लिए साक्ष्य अपर्याप्त हैं कि इमाम के भाषण से दंगाई भड़क गए और इसके बाद उन्होंने लूटपाट की, उपद्रव मचाया और पुलिस दल पर हमला किया। न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा कि भाषण को सरसरी तौर पर पढ़ने से लगता है कि स्पष्ट रूप से यह साम्प्रदायिक तर्ज पर दिया गया था। उन्होंने कहा कि इस भड़काऊ भाषण के लहजे और विषय वस्तु का सार्वजनिक शांति एवं सामाजिक सद्भाव को कमजोर करने वाला प्रभाव है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि भाषण एवं अभिव्यक्ति के मूलभूत अधिकार का इस्तेमाल साम्प्रदायिक शांति एवं सामाजिक सद्भावना की कीमत पर नहीं किया जा सकता। दिल्ली पुलिस ने दावा किया था कि इमाम ने सीएए और एनआरसी को लेकर लोगों के मन में निराधार भय पैदा करके केंद्र सरकार के खिलाफ एक ‘‘विशेष धार्मिक समुदाय’’ को उकसाया।Delhi's Saket Court has dismissed JNU student Sharjeel Imam's bail plea, in a case related to alleged inflammatory and instigating speeches during the protests against Citizenship Amendment Act (CAA) and National Register of Citizens (NRC).
— ANI (@ANI) October 22, 2021
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अदालत ने जमानत याचिका खारिज करते हुए आदेश की प्रति में इमाम के कथित भड़काऊ भाषण के एक हिस्से को रेखांकित किया। अदालत ने कहा कि इन आरोपों को साबित करने के लिए साक्ष्य अपर्याप्त हैं कि इमाम के भाषण से दंगाई भड़क गए और इसके बाद उन्होंने लूटपाट की, उपद्रव मचाया और पुलिस दल पर हमला किया। उसने कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष ने न तो किसी चश्मदीद गवाह का हवाला दिया है और न ही रिकॉर्ड में कोई अन्य सबूत ऐसा है जो यह बताता हो कि शरजील इमाम के भाषण को सुनकर सह-आरोपी भड़के और उन्होंने कथित रूप से दंगा किया।’’ अदालत ने कहा कि अभियोजन की इस बात को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि इमाम ने 13 दिसंबर, 2019 को जिन लोगों के सामने भाषण दिया था, उनमें कथित दंगाई भी शामिल थे। उसने कहा कि दिए गए भाषण और उसके बाद के कृत्यों के बीच आवश्यक संबंध स्पष्ट रूप से गायब है। न्यायाधीश ने कहा कि भाषण एवं अभिव्यक्ति के मूलभूत अधिकार का इस्तेमाल साम्प्रदायिक शांति एवं सामाजिक सद्भावना की कीमत पर नहीं किया जा सकता।
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