Kashmir में कबायली हमले में ध्वस्त हुए माता शारदा मंदिर का हुआ पुनर्निर्माण, LoC के पार तक जायेगी मंदिर की घंटियों और शंखों की ध्वनियों की गूँज
शारदा माता मंदिर के बारे में यह उल्लेख भी मिलता है कि 1947 से पहले इस स्थान पर मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा हुआ करते थे। लेकिन कबायली हमले में इस टीटवाल गांव को जला दिया गया था। इसलिए सभी समुदायों के लोगों ने मिलकर एक शुरुआत की और फिर से धर्म स्थलों को बनवाया।
जम्मू-कश्मीर में बदले माहौल में मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुनरुद्धार तेजी से हो रहा है। कश्मीरी पंडितों के आस्था स्थल जो दशकों से वीरान पड़े थे आज वहां रौनक लौट रही है और पूजा पाठ तथा हवन इत्यादि हो रहा है। आज चैत्र नवरात्रि के पहले दिन माता शारदा के ऐतिहासिक मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। इस अवसर पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि मैं जब भी जम्मू आऊंगा तो मेरी यात्रा की शुरुआत मंदिर के दर्शन के साथ होगी।
हम आपको बता दें कि कुपवाड़ा में एलओसी के नजदीक टीटवाल गांव है जहां यह मंदिर स्थित है। सेव शारदा समिति की ओर से शारदा माता मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया है। आज मंदिर के औपचारिक उद्घाटन से पहले मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा भी पूर्ण विधि विधान से की गयी। इस दौरान कश्मीरी पंडित तो बड़ी संख्या में उपस्थित थे ही साथ ही अन्य धर्मों के लोग भी मौजूद रहे। जैसा कि हमने आपको बताया कि यह मंदिर एलओसी के नजदीक है इसलिए जब सुबह शाम यहां आरती होगी और मंदिर की घंटियां बजेंगी और शंख ध्वनि गूंजेगी तो उसकी गूंज एलओसी के पार चिलियाना गांव तक जायेगी।
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हम आपको बता दें कि इस मंदिर के बारे में यह उल्लेख भी मिलता है कि 1947 से पहले इस स्थान पर मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा हुआ करते थे। लेकिन कबायली हमले में इस टीटवाल गांव को जला दिया गया था। इसलिए सभी समुदायों के लोगों ने मिलकर एक शुरुआत की और फिर से धर्म स्थलों को बनवाया। हम आपको यह भी बता दें कि इस मंदिर के पुनर्निर्माण के साथ ही अब कश्मीरी पंडितों की इच्छा है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले शारदापीठ मंदिर की सदियों पुरानी तीर्थयात्रा फिर शुरू की जाये। माना जाता है कि शारदापीठ मंदिर लगभग 5000 साल पुराना है। जिस तरह कश्मीर में अमरनाथ मंदिर और मार्तंड सूर्य मंदिर का महत्व है उसी तरह शारदापीठ मंदिर भी हिंदुओं की गहरी आस्था का स्थल है।
हम आपको यह भी बता दें कि शारदापीठ मंदिर को मुगलों, अफगानों और इस्लामिक कट्टरपंथियों ने काफी नुकसान पहुँचाया था। इस मंदिर की आखिरी बार मरम्मत 19वीं सदी के महाराजा गुलाब सिंह ने कराई थी। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि कश्मीर में देवी की आराधना सबसे पहले शारदापीठ मंदिर में ही शुरू हुई थी बाद में खीर भवानी और माता वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना हुई थी। शारदापीठ मंदिर का महत्व आप इसी बात से समझ सकते हैं कि यहां आदि शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य ने साधना कर महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की थीं। देवी की 18 शक्तिपीठों में से एक शारदापीठ को भी माना जाता है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कार्य जब शुरू हुआ था तो अन्य ऐतिहासिक हिंदू धर्म स्थलों के साथ ही शारदापीठ मंदिर की पवित्र मिट्टी भी निर्माण कार्य में उपयोग के लिए मंगाई गयी थी।
फिलहाल शारदापीठ मंदिर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है जहां पाकिस्तानियों के अलावा चीनियों को जाने की इजाजत है। कश्मीरी पंडितों की मांग है कि शारदापीठ मंदिर की यात्रा पहले की तरह शुरू की जानी चाहिए। यहां कहा जा सकता है कि आज एलओसी के इस पार माता शारदा का मंदिर खुल गया है। देवी की कृपा रही तो एलओसी के उस पार तक यात्रा बिना किसी बाधा के जल्द ही सुगम होगी।
-गौतम मोरारका
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