कारगिल युद्ध के हीरो थे सौरभ कालिया, सबसे पहले पाकिस्तानी घुसपैठ का लगाया था पता
करीब 22 साल का लंबा इंतजार भी परिजनों को अपने बेटे के साथ हुए अमानवीय बर्ताव पर इंसाफ नहीं दिला सका। अब उनकी इंसाफ मिलने की आस खत्म होती नजर आ रही है। भले ही इस बहादुर बेटे को हर साल याद किया जाता है।
पालमपुर। कारगिल युद्ध के हीरो कैप्टन सौरभ कालिया के बलिदान को लोग आज भी भूले नहीं हैं। उनके परिजनों ने भी बेटे की याद में हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। कारगिल युद्ध में शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के परिजन ने अपने बेटे को सौरभ वन विहार बंदला (पालमपुर) में श्रद्धांजलि दी। कारगिल में पाक सैनिकों की घुसपैठ की सबसे पहले खबर देने वालों में जाट रेजिमेंट के शहीद कैप्टन सौरभ कालिया शामिल थे। उन्होंने और उनकी टीम ने पाकिस्तानियों की घुसपैठ का पता लगाया था।
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करीब 22 साल का लंबा इंतजार भी परिजनों को अपने बेटे के साथ हुए अमानवीय बर्ताव पर इंसाफ नहीं दिला सका। अब उनकी इंसाफ मिलने की आस खत्म होती नजर आ रही है। भले ही इस बहादुर बेटे को हर साल याद किया जाता है। कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने कैप्टन सौरभ कालिया को युद्ध क्षेत्र से पकडऩे के बाद न केवल बंदी बनाया बल्कि क्रूरतापूर्ण अमानवीय यातनाएं देकर उन्हें मौत के घाट उतारा। पाकिस्तान के सैनिकों ने बाद में कैप्टन कालिया के क्षत-विक्षत शरीर को उनके परिवार को भेज दिया था।
पंजाब के अमृतसर में 29 जून 1976 को जन्में कैप्टन सौरभ कालिया की मां विद्या व पिता एन के कालिया हैं। उन्होंने कांगड़ा जिला के पालमपुर में डीएवी स्कूल व पालमपुर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने के बाद 1997 में सेना में कमीशन हासिल किया। अपनी छोटी सी उम्र में उन्होंने अपने अदम्य साहस व वीरता का परिचय देकर इतिहास रचा था।सौरभ कालिया भारतीय सेना की चार -जाट रेजीमेंट के अधिकारी थे। उन्होंने ही सबसे पहले कारगिल में पाकिस्तानी सेना के नापाक इरादों की सेना को जानकारी मुहैया कराई थी। कारगिल में अपनी तैनाती के बाद सौरभ कालिया 5 मई, 1999 को अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ लद्दाख की बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया। करीब 22 दिनों तक इन्हें पाकिस्तानी सेना ने बंदी बनाकर रखा और अमानवीय यातनाएं दीं। उनके शरीर को गर्म सरिए और सिगरेट से जलाया गया। आंखें फोड़ दी गईं और निजी अंग काट दिए गए। पाकिस्तान ने इन शहीदों के शव 22-23 दिन बाद 7 जून, 1999 को भारत को सौंपे थे।इसे भी पढ़ें: कारगिल युद्ध के बाद बनी कमेटी के सुझाव में 62 बिन्दुओं पर हुआ काम, पाकिस्तान-चीन से एक साथ युद्ध करने में सक्षम है भारतीय सेना
भारत ने 13 मई, 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा अपने इन बहादुर जवानों को बंदी बनाए जाने व उनकी नृशंस हत्या किए जाने के एक दिन बाद 14 मई 1999 को उन्हें मिसिंग घोषित किया था। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगडा के पालमपुर में कैप्टन कालिया की शहादत को सम्मान देने के लिए पालमपुर नगर के निकट खूबसूरत न्यूग्ल खड्ड के साथ आर्कषक स्मारक बनाया गया है। यहां पर पर्यटकों को कारगिल युद्व से जुड़ी जानकारी मिलती है वहीं यह एक ऐसा स्थल बन कर उभरा है जहां पर परिवार के साथ आकर समय बिताना हरेक व्यक्ति पंसद करता है। खूबसूरत झील, एकवेरियम, सैनिकों के स्टैच्यू, हरे-भरे पेड़-पौधों से युक्त स्थल, शहीद स्मारक, रेस्टोरेंट आदि ऐसी सुविधाएं यहां पर जोड़ी गई हैं। इतना ही नहीं अब यहां पर कुछ युवाओं ने रोमांचक खेलों को भी आरम्भ किया है।
विडंबना का विषय है कि कैप्टन सौरभ कालिया की शहादत शायद देश भुला चुका है। यही वजह है कि अपने बेटे के लिए इंसाफ मांग रहे बुजुर्ग माता-पिता दर-दर भटक रहे हैं। ठोस प्रमाण के बावजूद सरकार आज तक शांत है और यह दुःख की बात है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने विपक्ष में रहते हुए इस मुद्दे को उठाया है, लेकिन सत्ता में रहने पर उनकी राजनीति व कार्यनीति में अंतर साफ नजऱ आता है। हैरानी की बात तो यह है कि सौरभ कालिया का नाम सीमा पर जान गंवाने वाले शहीदों की सूची में भी शामिल नहीं है।अन्य न्यूज़