Prajatantra: 'INDIA' के लिए आसान नहीं UP की राह, मजबूत BJP से कैसे लड़ेंगे Akhilesh और उनके सहयोगी

akhilesh and Rahul
ANI
अंकित सिंह । Jul 20 2023 3:32PM

बताया जा रहा है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गठबंधन को लेकर बड़ा दिल दिखाया है। विपक्षी एकता और इंडिया को मजबूत बनाने के लिए कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद का मोह त्यागा है। इसका फायदा उसे सीट बंटवारे में मिल सकता है।

बेंगलुरु में एक बैठक में, 26 विपक्षी दलों ने अगले साल के लोकसभा चुनावों के लिए अपने मेगा बीजेपी विरोधी मोर्चे, इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) की घोषणा की। हालाँकि, गठबंधन के नाम को अंतिम रूप देने के बावजूद, सीट वितरण को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, खासकर उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में। अब समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस की साझेदारी पर चर्चा करते हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस यूपी में 30 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि समाजवादी पार्टी आधी से कम सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है। इसके अलावा, राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने की मांग रहा है। जनवादी पार्टी और अपना दल कमेरावादी भी समाजवादी पार्टी से एक सीट की उम्मीद कर रहे हैं। नतीजतन, सपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती 80 सीटें साझा करने की होगी।

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मायावती का ऐलान 

उधर, मायावती ने ऐलान किया कि वह अकेले चुनाव लड़ेंगी। उन्होंने राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और हरियाणा में अपने दम पर चुनाव लड़ने का इरादा जताया। पंजाब और अन्य राज्यों में वह संबंधित राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों के साथ चुनाव लड़ सकती हैं। बसपा दोनों ही गठबंधनों से समान दूरी बनाकर रखना चाहती है। बीजेपी ने विपक्षी गठबंधन को जवाब दिया है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ब्रिजेश पाठक ने कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी मानसिकता नहीं बदली है। उन्होंने "इंडिया इज इंदिरा" नारे का उल्लेख किया और विपक्षी गठबंधन द्वारा "इंडिया" नाम चुनने की आलोचना की। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यह विपक्षी गठबंधन मोदी को हटाने में सफल नहीं होगा, क्योंकि वे ऐसा करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। अखिलेश यादव ने 2014, 2017 और 2019 में गठबंधन किया लेकिन सफल नहीं हुए। जनता अच्छी तरह से जानती है कि देश के हित के लिए केवल मोदी जी ही काम कर सकते हैं, यही कारण है कि उन्हें तीसरी बार पीएम बनाने के लिए सभी लोग भाजपा के साथ खड़े हैं।

एकजुटता पर जोर

इस बीच समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर विपक्ष को एकजुट करने की जरूरत पर जोर दिया है। सपा नेता सुनील सिंह साजन ने कहा कि जो लोग देश को बचाना चाहते हैं और भाजपा की तानाशाही का विरोध करते हैं वे बेंगलुरु में एक साथ आए हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा लड़ाई एनडीए और इंडिया के बीच है और सभी को तय करना होगा कि वे कहां खड़े हैं। साजन ने उन सभी का स्वागत किया जो भाजपा को हराने के लिए एक साथ आए हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि मायावती को यह तय करने की जरूरत है कि वह भारत के साथ हैं या एनडीए के साथ। उन्होंने यह भी कहा कि अखिलेश यादव पहले ही सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाने का इरादा जता चुके हैं। इंडिया फ्रंट के बारे में सपा की सहयोगी पार्टी अपना दल कमेरावादी की नेता पल्लवी पटेल ने कहा कि सीट बंटवारे को लेकर अभी भूमिका तय नहीं हुई है, लेकिन इच्छा सीटें हासिल करने की नहीं बल्कि बीजेपी को उखाड़ने की है. उन्होंने मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि उनके इस फैसले से विपक्ष को कोई नुकसान नहीं है। 

कांग्रेस ने क्या कहा

इन घटनाक्रमों के जवाब में, कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि इंडिया फ्रंट ने विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ अपनी लड़ाई शुरू कर दी है, और गठबंधन में सभी दल मजबूत हैं। यूपी में कांग्रेस पार्टी समाजवादी पार्टी और आरएलडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी, जिसके लिए वो पूरी तरह से तैयार हैं। राजपुत ने कहा कि जो आज हमारे साथ नहीं हैं, उन्हें भविष्य में जनता सबक सिखाएगी। जहां तक ​​सीट बंटवारे की बात है तो यह नरेंद्र मोदी के अहंकार के खिलाफ सद्भाव और सहिष्णुता पर आधारित गठबंधन है। सीट बंटवारा बिना किसी समस्या के आसानी से सुलझा लिया जाएगा। 

क्या है अंदर की बात

बताया जा रहा है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गठबंधन को लेकर बड़ा दिल दिखाया है। विपक्षी एकता और इंडिया को मजबूत बनाने के लिए कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद का मोह त्यागा है। इसका फायदा उसे सीट बंटवारे में मिल सकता है। इससे पहले अखिलेश यादव ने कहा था कि कांग्रेस को जिन राज्य में क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, वहां चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। हालांकि अब ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए 10 से 15 सीट छोड़ने को तैयार हो गए हैं। लेकिन आंकड़ों को लेकर अभी भी खुलासा नहीं हुआ है। लेकिन यह भी सच है कि गठबंधन को लेकर कांग्रेसी नेताओं में ज्यादा उलझन है। पार्टी के उत्तर प्रदेश के ज्यादातर नेता अकेले ही चुनाव लड़ने की वकालत कर रहे हैं। खुलकर कुछ कहने की बजाय वह आलाकमान के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं का दावा है कि अखिलेश यादव को लेकर ओबीसी और मुस्लिम वोटों में नाराजगी है। इसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है। पार्टी के नेताओं का यह भी दावा है कि कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में एक अंडरकरेंट है। कर्नाटक चुनाव के बाद पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में भी स्थिति बदली है। हालांकि, यह बात भी सच है कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में 2.33% वोट शेयर मिले और 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 में भी कांग्रेस सिर्फ रायबरेली से जीतने में कामयाब रही। राहुल गांधी अपने गढ़ अमेठी में हार गए थे। 

भाजपा का दबदबा

समाजवादी पार्टी (एसपी), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और अजित सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के 'महागठबंधन' के बाद भी बीजेपी और उसके गठबंधन सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने 64 सीटों (62: बीजेपी और 2: अपना दल-एस) पर जीत हासिल की। विपक्षी तिकड़ी का गठबंधन केवल 15 सीटें हासिल कर सका, जबकि मायावती की बसपा ने 10 सीटें जीतीं। अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा को केवल 5 सीटें मिलीं। पूरे राज्य में एनडीए को 50 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर मिला। विशेष रूप से, भाजपा ने 50% से अधिक वोट शेयर के साथ राज्य में 40 लोकसभा सीटें जीतीं। ये सीटें थीं कैराना, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलन्दशहर, अलीगढ, हाथरस, मथुरा, आगरा, फतेहपुर सीकरी, एटा, आंवला, बरेली, पीलीभीत, शाहजहाँपुर, खीरी, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, लखनऊ, फर्रुखाबाद, इटावा, कानपुर, अकबरपुर, जालौन, झाँसी, हमीरपुर, फ़तेहपुर, फूलपुर, इलाहाबाद, बहराईच, कैसरगंज, गोंडा, महराजगंज, गोरखपुर, कुशी नगर, देवरिया, बांसगाँव, सलेमपुर और वाराणसी। बसपा द्वारा अपने दम पर 2024 का चुनाव लड़ने का फैसला करने और ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के भाजपा से हाथ मिलाने के साथ हाथ मिला लिया है। सवाल यह है कि क्या एसपी-आरएलडी गठबंधन राज्य में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से अकेले लड़ाई लड़ेगा या कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करेगा। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीजेपी राज्य के पश्चिमी हिस्से में अपना विस्तार करने के लिए आरएलडी को लुभाने की कोशिश कर रही है।

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राजनीति में जो सामने से दिखता है, पर्दे के पीछे भी वैसा ही हो, इसकी कोई गारंटी नहीं होती। कागज पर विपक्षी एकता जितनी मजबूत नजर आ रही है, उतना इसका जमीन पर प्रभाव रहेगा, इसको लेकर सवाल बरकरार है। हालांकि विकास की बात तो सभी दल करते हैं, लेकिन चुनावों के दौरान जो राजनीतिक दल जनता की भावनाओं को जीतने में कामयाब होती है, चुनावी परिणाम भी उसी के पक्ष में जाते हैं। और यही तो प्रजातंत्र है।

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