चैनलों की विश्वसनीयता पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने दिया बयान, कहा- ब्रेकिंग की प्रतियोगिता के कारण चैनलों ने खोई अपनी विश्वसनीयता

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आज के समय में मीडिया के मूल्य बदल गए है। मीडिया में बहसें इतनी उग्र हो जाती हैं कि साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने लगती हैं। इस कारण असल समाचार दब जाते है, जिससे देश और समाज का नुकसान होता है। अब विचार युक्त खबरें जनता को परोसी जाती है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क की 21वीं वर्षगाँठ पर आयोजित विचार मंथन कार्यक्रम की परिचर्चा जारी है। आजादी के अमृत काल में देश का हर क्षेत्र बदल रहा है तरक्की कर रहा है तो मीडिया क्यों पीछे रहे। मीडिया भी तकनीक का सहयोग लेकर खुद में नयापन लाते हुए तेजी से आगे बढ़ रहा है। परन्तु आगे बढ़ने की इस होड़ में मीडिया के प्रति जनता का विश्वास कम होता जा रहा है। आज ऐसी स्थिति आ गयी है कि कोई भी खबर अगर आपके टीवी, मोबाइल या कम्प्यूटर पर आयी है तो आप उस पर तभी विश्वास करते हैं जब एक दो जगह उसके बारे में पड़ताल कर लेते हैं। यही नहीं विभिन्न सामयिक विषयों पर टीवी चैनलों पर जो बहसें होती हैं वह मुद्दे से जुड़े पहलुओं को उबारने और समस्या के प्रति लोगों को जागरूक करने की बजाय इतनी तीखी हो जाती हैं कि लोग एक दूसरे के माता पिता पर जुबानी हमला करने लग जाते हैं या फिर यह बहसें इतनी उग्र हो जाती हैं कि साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने लगती हैं। इस सारे शोर में असल समाचार दब कर रह जाते हैं। इस सबसे यकीनन देश और समाज का नुकसान होता है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने इस मुद्दे पर अपने विचार साझा किए है।

उन्होंने परिचर्चा की शुरूआत करते हुए कहा कि लंबे अरसे से सामाजिक मूल्य बदलें है मगर मीडिया के मूल्य भी बदले है। पत्रकारिता की शिक्षा के दौरान मर्यादा की शिक्षा सिखाई जाती थी, मगर आज के समय में विचार युक्त खबरें जनता को परोसी जाती है। भारत में पत्रकारिता पर साम्य वादी का असर देखने को मिला है। एक जमाना हुआ करता था जब लिखे हुए शब्दों की साख हुआ करती थी, जिसे साक्ष्य तौर पर समाज में स्वीकारा जाता था। आज के समय में वीडियो का चलन बढ़ा है मगर वीडियो भी एडिट होकर आते हैं जिससे इनकी विश्वसनीयता पर भरोसा करना मुश्किल होता है।

समाचार चैनलों पर पहले ब्रेकिंग देने का अलग ही कॉम्पिटीशन चलता है, मगर पहले के समय में समाचार की पुष्टि ना होने तक उसे प्रकाशित ना करना ही पत्रकार का दायित्व हुआ करता था। आज के समय में जहां पत्रकार समाचार देता है वहीं न्यूज डेस्क भी अपना काम सही से नहीं करता और बिना पुष्टि के ही समाचार प्रकाशित करने की अनुमति देता है। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा कि ऐसे में कई बार ऐसे समाचार प्रकाशित या ब्रॉडकास्ट हो जाते हैं जो कभी घटित नहीं हुए। आज के समय में न्यूज चैनल या न्यूज पेपर काम असत्य को परोसने में जुटे रहते है। तर्क सम्मत न्यूज का प्रदर्शन अब कम हो गया है।

आजकल समाचार चैनलों पर लोग जानकारों के नाम पर नकली, गैर क्वालिफाइड लोगों को भी बैठा लेते हैं, जिससे उनके द्वारा कहे गए बयानों पर किस हद तक व्यक्ति भरोसा करते है। ऐसे लोगों के कारण न्यूज चैनलों पर होने वाले वाद विवाद की गुणवत्ता में भी काफी परिवर्तन देखने को मिलता है। एक समय था जब समाचार चैनलों पर डिबेट की गुणवत्ता उत्तम स्तर की होती थी तब इन डिबेट को देखने के लिए दर्शक उत्सुक रहते थे मगर आज के समय में ऐसा माहौल नहीं रहा है। अब समाचार चैनलों की विश्वस्नीयता पर भी काफी सवाल उठे है।

मीडिया चैनलों का दायित्व है कि सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा दिया जाए, अगर सामाजिक सुरक्षा को राष्ट्रीय स्तर पर बिगाड़ने का काम किया जा रहा है तो ऐसे दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और उनपर रोक लगानी चाहिए।

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