महाराष्ट्र में क्षीण हो रहा है पवार का पावर, चुनावी ''घड़ी'' में सभी संस्थापक सदस्यों ने छोड़ा साथ
महाराष्ट्र की राजनीति को गौर से देखे तो 2009 में 9 लोकसभा सीटें और 62 विधानसभा की सीटें जीतने वाली शरद पवार की पार्टी राकांपा का बुरा दौर 2014 से शुरू हुआ। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में राकांपा लगभघ 16.12 प्रतिशत वोटों के साथ 4 लोकसभा सीट जीतने में सफल हो पाई थी।
महाराष्ट्र जहां विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं। महाराष्ट्र में अपनी खोई हुई सियासी जमीन को वापस पाने की कवायद में जुटे राकांपा सुप्रीमो शरद पवार प्रदेश के गलियारों को नाप रहे हैं। राकांपा के कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं। ऐसे में शरद पवार अपने महाराष्ट्र के दौरे के जरिए आगामी विधानसभा चुनाव में राकांपा के पक्ष में माहौल बनाने की जुगत में हैं। शरद पवार, भारतीय राजनीति की ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने कभी राज्य की राजनीति दबंग तरीके से की थी और उससे ज्यादा केंद्र की राजनीति में पकड़ बनाई। चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे शरद पवार का नाम एक समय देश के प्रधानमंत्री पद के लिए भी चला था, लेकिन उस समय पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने और पवार को रक्षामंत्री के पद से संतोष करना पड़ा था। वर्तमान दौर में लगातार अपने बुरे दौर से गुजर रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी लगातार रसातल की ओर जा रही है। पार्टी के विधायक एक-एक कर पार्टी छोड़ भाजपा और शिवसेना की ओर रूख कर रहे हैं। सतारा के सांसद और छत्रपति शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोसले का बीजेपी से जुड़ना शरद पवार की पार्टी के लिये सबसे ताजा झटका है।
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लोकसभा चुनाव में बुरी तरह विफल रही राकांपा के महाराष्ट्र की 4 लोकसभा सीटों पर सिमट जाने के बाद से ही पार्टी के भविष्य को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगातार लगनी शुरू हो गई थीं। बीच-बीच में ऐसी भी ख़बर आईं कि एनसीपी का कांग्रेस में विलय हो जाएगा। हालांकि बाद में पवार द्वारा इसे नकार दिया गया। लेकिन वर्तमान दौर में पार्टी के अस्तित्व और भविष्य पर गहरा प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है। लगभग 20 वर्ष पूर्व 20 मई 1999 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व करने वाली इटली में जन्मीं सोनिया गांधी के अधिकार पर सवाल करने से निष्कासित होने के बाद शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर द्वारा 25 मई 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया गया था। भारत के निर्वाचन आयोग ने एनसीपी को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी। देश के इतिहास में, इतने कम समय में राष्ट्रीय पार्टी की स्थिति प्राप्त करने वाली यह एकमात्र पार्टी थी।
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