पीएम मोदी हैं भारतीय संस्कृति और परंपरा के ध्वजवाहक : अमित शाह

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[email protected] । Jan 19 2020 12:03PM

प्रधानमंत्री ने चार अगस्त 2014 को पांचवीं सदी के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा अर्चना की थी। उन्होंने मंदिर को 2500 किलोग्राम चंदन की लकड़ी भी दी थीं। शाह ने धर्मनिरपक्षेता की गलत व्याख्या करने और देश की श्रेष्ठ चीजों का सम्मान करने से रोकने को लेकर पिछली सरकारों की आलोचना भी की।

बेंगलुरु। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारतीय संस्कृति और परंपरा का “ध्वजवाहक” बताया। वेदांत भारती द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में शाह ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी भारतीय संस्कृति और परंपरा के ध्वजवाहक के रूप में दुनिया का दौरा कर रहे हैं।’’ अपनी बात के समर्थन में भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि मोदी ने प्रधानमंत्री की शपथ लेने से पहले वाराणसी में गंगा में डुबकी लगायी और वह गंगा आरती में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ कि मोदी ने पशुपतिनाथ मंदिर में भारत सरकार की ओर से विशेष प्रार्थना के लिए लाल चंदन भेजा।

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प्रधानमंत्री ने चार अगस्त 2014 को पांचवीं सदी के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा अर्चना की थी। उन्होंने मंदिर को 2500 किलोग्राम चंदन की लकड़ी भी दी थीं। शाह ने धर्मनिरपक्षेता की गलत व्याख्या करने और देश की श्रेष्ठ चीजों का सम्मान करने से रोकने को लेकर पिछली सरकारों की आलोचना भी की। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन लंबे समयांतराल के बाद हमारे पास ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो संदेश देते हैं कि दुनिया को देने के लिए हमारे पास काफी चीजें हैं।’’ आदि शंकराचार्य लिखित ‘विवेकादीपिनी’ के पाठ के लिए यहां पैलेस ग्राउंड में आयोजित कार्यक्रम में विद्यार्थियों की एक बड़ी सभा को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि एक साथ मंत्रोच्चार से मस्तिष्क, तन और मन मजबूत होते हैं। उन्होंने कहा,‘‘ वेदों, उपनिषदों और पुराणों की शिक्षाओं का प्रसार करना समय की मांग की है और वेदांत भारतीय पूरी तन्मयता से यह कर रहा है।’’

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आदि शंकराचार्य के बारे में केंद्रीय मंत्री ने कहा, “वैसे तो कम उम्र में उनका निधन हो गया, लेकिन उन्होंने सात बार पूरे देश का भ्रमण किया और चार मठ स्थापित किये एवं उनमें से प्रत्येक को चारों वेदों में एक को संभाल रखने की जिम्मेदारी सौंपी।’’उन्होंने कहा कि आदि शंकर ऐसे समय में पैदा हुए जब हिंदू धर्म विभिन्न संप्रदायों में बंटा था और उनके बीच आपस में संघर्ष होते थे, लेकिन ये महान दार्शनिक ने सभी संप्रदायों को एक छत के नीचे लाए। शाह ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने दस नाम परंपरा की शुरुआत की जो जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सक्षम थी।उन्होंने कहा, ‘‘जो लोग पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन की बात करते हैं, मैं उन्हें इन दस नामों-- अरण्य, आश्रम, भारती, गिरि, पुरी, पर्वत, सरस्वती, सागर, तीर्थ और वन को पढ़ने को कहना चाहता हूं।” उन्होंने कहा कि संन्यासियों की यह दशनाम व्यवस्था उन क्षेत्रों की रक्षा के लिए बनायी गयी थी, जिनकी जिम्मेदारी उन्हें दी गयी थी। केंद्रीय मंत्री बेंगलुरु में पूरना प्रज्ञा विद्यापीठ भी गये और उन्होंने पेजावर के संत विश्वेश तीर्थ को श्रद्धांजलि दी। उनका निधन पिछले महीने 29 दिसंबर को हुआ था।

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