PM मोदी ने चल दिया अब कौन सा ऐसा दांव? सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में 136 सांसद, सबसे काबिल वकील को आगे करेगा विपक्ष!
99 सांसदों वाली कांग्रेस और 37 संसद सदस्यों वाली समाजवादी पार्टी अब सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने की तैयारी में हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस और सपा प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अलग अलग याचिकाएं दायर करने की तैयारी कर ली है।
इंडिया गठबंधन में संख्या के हिसाब से वैसे तो 28 पार्टियां हैं। लेकिन इन 28 पार्टियों में कुछ पार्टियां ऐसी हैं जो कांग्रेस की दिखाई राह पर कदमताल करते हुए साथ नहीं चलती है। भले ही संख्याबल दिखाने के लिए कांग्रेस की तरफ से बार बार कहा जाता हो कि 28 पार्टियां हमारे साथ है। लेकिन इन सभी पार्टियों के बीच आपस में ही अल्पसंख्यक तुष्टीकरण या फिर स्पष्ट शब्दों में कहें तो मुस्लिम परस्त राजनीति के लिए एक अलग ही किस्म की प्रतिस्पर्धा छिड़ी रहती है। इस तुष्टीकरण वाली राजनीति के कंपटीशन में अब दो पार्टियां सबसे एक्टिव मोड में नजर आ रही है। 99 सांसदों वाली कांग्रेस और 37 संसद सदस्यों वाली समाजवादी पार्टी अब सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने की तैयारी में हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस और सपा प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के प्रभावी कार्यान्वयन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अलग अलग याचिकाएं दायर करने की तैयारी कर ली है।
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कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि पार्टी की याचिका तैयार है और यह महाभियोग आवेदन के रूप में या चल रही कानूनी कार्यवाही में एक पार्टी को जोड़ने के अनुरोध के रूप में होगी। दोनों याचिकाओं को शीर्ष अदालत के समक्ष चल रही याचिकाओं की श्रृंखला के साथ टैग किए जाने की संभावना है। अदालत के समक्ष पहले से ही दायर कुछ याचिकाओं में अधिनियम की वैधता को चुनौती दी गई है, जबकि बाकी इसे सख्ती से लागू करने की वकालत करती हैं। सूत्रों ने कहा कि इंडिया ब्लॉक नेतृत्व के बीच सुप्रीम कोर्ट में एक संयुक्त याचिका दायर करने पर चर्चा हुई, लेकिन बात नहीं बनी। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टियों ने इसे अपने दम पर करना शुरू कर दिया है, और इसलिए, पार्टियां अपने दम पर याचिकाएं दायर कर रही हैं।
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आपको बता दें कि 1991 में अधिनियमित पूजा स्थल अधिनियम में कहा गया था कि पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वैसा ही रहेगा जैसा 15 अगस्त, 1947 को था। कानून के अनुसार इसका एकमात्र अपवाद राम जन्म भूमि थी। बाबरी मस्जिद इसके अधिनियमन के समय, अयोध्या आंदोलन चल रहा था और बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद अदालत में था। कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि एक वरिष्ठ नेता सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका पर हस्ताक्षरकर्ता होंगे। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमने अभी भी यह तय नहीं किया है कि हस्ताक्षरकर्ता कौन होगा लेकिन हमारा आवेदन तैयार है। आवेदन में शीर्ष अदालत से अधिनियम का सख्ती से कार्यान्वयन सुनिश्चित करने का अनुरोध किया जाएगा और अदालत से तर्क दिया जाएगा कि यदि कानून को खत्म किया जाता है या बदला जाता है, तो यह देश के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करेगा।
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