कृषि कानूनों पर प्रधानमंत्री के फैसले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वो जनता की बात सुनते हैं, पाक के मंसूबे भी हुए फेल
श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व का दिन वैसे तो अपना खास महत्व रखता है लेकिन पीएम मोदी की घोषणा के साथ ही ये और भी खास हो गया। इससे पहले ही करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने का भी ऐलान किया गया था।
22 यानी लखनऊ में आज किसानों की महापंचायत का दिन है। महापंचायत से पहले राकेश टिकैत ने कहा है कि ये किसान विरोधी सरकार की ताबुत में आखिर किल होगा। संयुक्त किसान मोर्चा की सरकार को चिट्ठी भी लिखी गई है। तीनों कृषि कानूनों के रद्द होने के बाद ये किसानों की पहली महापंचायत है। 19 नवंबर को प्रधानमंत्री ने तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान किया था। श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व का दिन वैसे तो अपना खास महत्व रखता है लेकिन पीएम मोदी की घोषणा के साथ ही ये और भी खास हो गया। इससे पहले ही करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने का भी ऐलान किया गया था। पीएम मोदी के कृषि कानून वापस लेने की घोषणा के बाद किसान अपनी कई और मांगों को पूरा करने की जिद पर अड़े हैं। लेकिन इन सब से इतर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसला का पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने स्वागत किया है।
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अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में लेख लिखकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि कोई भी राष्ट्रवादी, कोई भी व्यक्ति जो हमारे किसान और कृषि क्षेत्र के कल्याण के बारे में सोचता है, इस घोषणा का स्वागत करेगा। प्रधानमंत्री मोदी के फैसले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह जनता की बात सुनते हैं। अमरिंदर सिंह ने लिखा कि अपने संबोधन में उन्होंने किसानों के लिए उनकी सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों की रूपरेखा तैयार की। कैप्टन ने इसे कोई सशर्त या चरणबद्ध वापसी नहीं बल्कि पीएम द्वारा उठाया गया दृढ़ निर्णय बताया। प्रधानमंत्री ने किसी और से नहीं बल्कि खुद इसकी घोषणा की जबकि किसी और के द्वारा घोषणा करना या संसद के पटल पर इसकी घोषणा करना भी आसान था।
फैसले को सियासी कमजोरी के रूप में देखना गलत
फिर भी हार-जीत के किसी भी राजनीतिक विचार के बिना किया गया था। प्रधानमंत्री के फैसले को "पीछे हटने" या "कमजोरी" के रूप में देखना सही नहीं है। लोकतंत्र में लोगों की इच्छा सुनने से बड़ा कुछ नहीं होता और ऐसा करने वाले नेता से बड़ा कोई प्नजातांत्रिक नहीं होता। एक सैनिक के रूप में जिसे वर्षों से हमारी मातृभूमि की सेवा करने का सम्मान मिला है, मैं इस कदम का स्वागत करता हूं। ज़मीनी स्तर पर कड़वाहट दिनोंदिन और तीखी होती जा रही थी।
सिख धर्म का इस्तेमाल राजनीति के लिए न करें
यह हमारे किसान हैं जो हमारे देश को खिलाते हैं। इसी तरह, मैं सभी से आग्रह करता हूं कि सिख धर्म का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए न करें। 1980 के दशक की यादें और घाव सभी के देखने के लिए हैं। अगर कोई इन मुद्दों पर राजनीति करेगा तो जनता उन्हें सबक सिखाएगी। वहीं सिखों के पहले गुरू श्री गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व के विशेष दिन पर कृषि कानून वापसी की घोषणा की। इससे साफ है कि वह सिखों से बेहतर रिश्ता कायम करना चाहते हैं। पिछले साल वह दिल्ली के 2 गुरुद्वारों में माथा टेक चुके हैं।
पाक के मंसूबों को किया फेल
पाकिस्तान जैसे देश जो युद्ध के मैदान में भारत से कभी नहीं जीत सका। इसलिए वो हमारे देशभक्त किसानों का उपयोग करके एक छद्म लड़ाई के जरिये भारत में अशांति फैलाने की मंशा लिए बैठे थे। प्रधानमंत्री की इस एक घोषणा ने उन आधे-अधूरे सपनों को हवा-हवाई कर दिया। बड़े स्तर देखा जाए तो ये राजनीति करने का समय नहीं है, कम से कम किसानों से संबंधित मुद्दों पर तो कतई नहीं। हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है।
कांग्रेस को दिखाया आईना
इस फैसले के राजनीतिक रंग के बारे में विशेष रूप से मेरी पिछली पार्टी द्वारा बहुत सारी बातें की जा रही है। मैं ऐसे लोगों को आईना दिखाना चाहता हूं। सीएए का विरोध 2019 के अंत में शुरू हुआ और बाद के दिल्ली चुनावों में कांग्रेस को दूसरी बार शून्य मिला। उन्होंने कोविड लॉकडाउन के दौरान प्रवासियों की वापसी का राजनीतिकरण करने की कोशिश की लेकिन बिहार में राजद के साथ सरकार बनाने में सफल नहीं हो सके। इस साल मई में विधानसभा चुनावों में कोविड और कृषि कानूनों के चरम पर, कांग्रेस केरल में नहीं जीत पाई, भले ही राज्य में वाम और कांग्रेस के बीच बारी-बारी से सत्ता हस्तानांतरण का इतिहास रहा हो।
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