मानहानि पर दंडात्मक कानून वैध: उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय ने मानहानि से जुड़े कानून के दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की आज पुष्टि की और कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार ‘‘कोई असीम अधिकार नहीं है।’’
उच्चतम न्यायालय ने मानहानि से जुड़े कानून के दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की आज पुष्टि की और कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार ‘‘कोई असीम अधिकार नहीं है।’’ न्यायालय ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, भाजपा नेता सुब्रहमणियम स्वामी एवं अन्य की तरफ से दायर याचिकाओं की एक श्रृंखला पर यह आदेश पारित किया।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत की खंडपीठ ने कहा, ‘‘हमने माना है कि दंडात्मक प्रावधान संवैधानिक रूप से वैध हैं।’’ अदालत ने कहा, ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार कोई असीम अधिकार नहीं है।’’ खंडपीठ ने देश भर के मजिस्ट्रेटों को निर्देश दिया है कि वे मानहानि की निजी शिकायतों पर सम्मन जारी करने पर अत्यंत सतर्कता बरतें। अदालत ने व्यवस्था दी कि आपराधिक मानहानि से जुड़ीं भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 और आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 119 संवैधानिक रूप से वैध हैं। धारा 500 का संबंध मानहानि के लिए दंड के प्रावधानों से है जिसके तहत दो साल की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। अदालत ने कहा कि मानहानि के मामलों में सम्मन जारी करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की श्रृंखला पर निचली अदालत में आपराधिक कार्यवाही पर उनकी ओर से दिया गया स्थगनादेश आठ हफ्ते तक जारी रहेगा। इस दौरान, याचिकाकर्ता आज के फैसले के संदर्भ में राहत पाने के लिए अपनी याचिका संबंधित उच्च न्यायालयों में दायर कर सकते हैं।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को दी गई अंतरिम सुरक्षा आठ हफ्तों तक जारी रहेगी। राहुल की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आदेश सुनाए जाने के बाद कहा कि कांग्रेस नेता को 19 जुलाई को निचली अदालत के समक्ष पेश होना है और आठ हफ्तों के लिए कार्यवाही पर स्थगन का आदेश उन्हें सुरक्षा नहीं दे पाएगी। सिब्बल चाहते थे कि स्थगनादेश को 19 जुलाई तक के लिए बढ़ाया जाए, लेकिन खंडपीठ ने कहा कि वह जुलाई के माह में मामले को पेश कर राहत हासिल कर सकते हैं। मानहानि पर दंडात्मक कानूनों की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि वे ‘‘पुराने (आउटमोडेड) पड़ गए हैं’’ और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के साथ असंगत हो गए हैं। याचिकाओं में कहा गया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 (मानहानि) को निरस्त कर दिया जाए। इसमें कहा गया है कि मानहानि के अपराध के लिए दंडात्मक प्रावधानों को गैर-अपराध बनाने की जरूरत है।
उधर, केन्द्र ने कई आधारों पर कानून को बनाए रखने की पुरजोर वकालत की जिनमें यह भी शामिल है कि यह वक्त के तकाजे पर खरे उतरे हैं। अदालत ने कहा, ‘‘यह समझना मुश्किल है कि आपराधिक मानहानि के प्रावधानों का अभिव्यक्ति के अधिकार पर निषेधकारी प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’ अदालत ने यह भी कहा, ‘‘किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को दूसरे शख्स के इज्जत के अधिकार के साथ संतुलित करना होगा।’’ राहुल को तमिलनाडु में राजनीतिक भाषण देने के सिलसिले में आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत आपराधिक मानहानि के लिए आरोपित किया गया। स्वामी को महाराष्ट्र में राजनीतिक भाषण के लिए इन्हीं धाराओं के तहत आरोपित किया गया। भाजपा के नितिन गडकरी और अन्य ने केजरीवाल के खिलाफ इन्हीं धाराओं के तहत मामला दर्ज कराया है। राहुल और स्वामी की तरह केजरीवाल ने भी कहा कि दंडात्मक प्रावधान ब्रिटिश काल के हैं और पुराने पड़ चुके हैं और लोकतांत्रिक विमर्श से बेमेल हो गए हैं।
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