अब अधिकतर प्रमुख संसदीय समितियों के अध्यक्ष भाजपा के सदस्य
वित्त और विदेश मामलों की समितियों के अध्यक्ष अब भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं जिनकी कमान पिछली लोकसभा में कांग्रेस नेताओं के हाथ में थी।
नयी दिल्ली। संसद की स्थाई समितियों के गठन में इस बार इनके महत्व तथा राज्यसभा में गैर-राजग और गैर-संप्रग दलों के साथ भाजपा की समझ का प्रभाव साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। इसका नतीजा है कि अधिकतर समितियों के अध्यक्ष भाजपा के सदस्य बनाये गये हैं। वित्त और विदेश मामलों की समितियों के अध्यक्ष अब भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं जिनकी कमान पिछली लोकसभा में कांग्रेस नेताओं के हाथ में थी। मुख्य विपक्षी दल इस समय केवल गृह मामलों पर एक महत्वपूर्ण संसदीय स्थाई समिति की अगुवाई कर रहा है।
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पिछली लोकसभा में वित्त पर स्थाई समिति के अध्यक्ष वरिष्ठ कांग्रेसी नेता वीरप्पा मोइली तथा विदेश मामलों पर संसदीय स्थाई समिति के अध्यक्ष वरिष्ठ पार्टी नेता शशि थरूर थे। तब इन समितियों में क्रमश: नोटबंदी और भारत-चीन के बीच रहे डोकलाम गतिरोध पर पड़ताल की थी। इन समितियों ने इन दोनों मुद्दों पर क्रमश: तत्कालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और विदेश सचिव एस जयशंकर को तलब किया था। वित्त पर संसदीय समिति के अध्यक्ष अब भाजपा सदस्य जयंत सिन्हा तथा विदेश मामलों पर समिति के अध्यक्ष पी पी चौधरी होंगे।
मोदी सरकार को आड़े हाथ लेते हुए थरूर ने कहा कि सरकार ने अब विदेश मामलों पर संसदीय स्थाई समिति की अध्यक्षता विपक्षी दल द्वारा करने की परंपरा समाप्त करने का फैसला किया है और अब एक भाजपा सांसद इसे जवाबदेह ठहराएंगे। कांग्रेस नेता ने कहा कि परिपक्व लोकतंत्र के रूप में हमारी ‘सॉफ्ट पॉवर’, छवि और अंतरराष्ट्रीय साख को एक और झटका लगा है। संसद की कुल 24 विभाग संबंधी स्थाई समितियों में से 16 लोकसभा की तथा 8 राज्यसभा की हैं। प्रत्येक समिति में 31 सदस्य होते हैं जिनमें 21 सदस्य लोकसभा के और 10 राज्यसभा के होते हैं। समिति के अध्यक्ष का चुनाव भी इन सदस्यों में से किया जाता है।
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राज्यसभा की आठ स्थाई समितियों में से पहले भाजपा और उसके सहयोगी दल चार समितियों की अध्यक्षता कर रहे थे, लेकिन अब सत्तारूढ़ दल केवल तीन समितियों की अगुवाई कर रहा है। दो समितियों के अध्यक्ष वाईएसआर कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति के सदस्य हैं। ये दोनों ही दल गैर-संप्रग तथा गैर-राजग हैं। भाजपा के सहयोगी दलों अकाली दल तथा जदयू के बजाय अब वाणिज्य और उद्योग संबंधी संसदीय समितियों का अध्यक्ष क्रमश: वाईएसआर कांग्रेस तथा टीआरएस सदस्य को बनाया गया है। उक्त दोनों ही दल सत्तारूढ़ राजग का हिस्सा नहीं हैं लेकिन महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने में उच्च सदन में सरकार का साथ दे चुके हैं जहां वह बहुमत में नहीं है।
राज्यसभा से जुड़ी बाकी तीन समितियों के अध्यक्ष विपक्षी दलों के सदस्य हैं। गृह मामलों से संबंधित स्थाई समिति समेत दो महत्वपूर्ण समितियों के अध्यक्ष कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य हैं, वहीं एक समिति के अध्यक्ष सपा के सदस्य हैं। परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर स्थाई समिति के अध्यक्ष अब भाजपा के एक राज्यसभा सदस्य हैं। पहले इसके अध्यक्ष तृणमूल कांग्रेस के सदस्य डेरेक ओब्रायन थे और उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कंपनी एयर इंडिया के विनिवेश के सरकार के कदम का कड़ा विरोध किया था। तृणमूल कांग्रेस पिछली बार राज्यसभा और लोकसभा की एक-एक समिति की कमान संभाल रही थी, वहीं उसके पास इस बार केवल लोकसभा की एक समिति की अध्यक्षता बची है।
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लोकसभा में 10 संसदीय समितियों के अध्यक्ष भाजपा के सदस्य बने हुए हैं, वहीं कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, जदयू, शिवसेना तथा बीजद के सदस्य एक-एक समिति के अध्यक्ष होंगे। कांग्रेस अब केवल सूचना प्रौद्योगिकी पर समिति की कमान संभालेगी और थरूर इस समिति के अध्यक्ष होंगे। इनके अलावा रेलवे पर स्थाई समिति के अध्यक्ष भी भाजपा के सदस्य होंगे। पहले इसके अध्यक्ष तृणमूल कांग्रेस के सदस्य थे। अब तृणमूल कांग्रेस के सदस्य केवल खाद्य और उपभोक्ता मामलों पर समिति के अध्यक्ष होंगे। इस बार तेलुगूदेशम पार्टी के किसी सदस्य को किसी भी समिति का अध्यक्ष नहीं बनाया गया है। पहले तेदेपा सदस्य एक समिति के अध्यक्ष थे। संसदीय स्थाई समितियों के सदस्यों और अध्यक्षों को लोकसभा अध्यक्ष तथा राज्यसभा के सभापति मनोनीत करते हैं।
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