भाजपा के CMs से भी समर्थन मांगेंगी मार्गरेट अल्वा, बोलीं- मैं राज्यसभा के कामकाज में ला सकती हूं बदलाव
अल्वा ने यह भी कहा कि हम यह कह कर पीछे नहीं हट सकते कि हमारे पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है। मार्गेट अल्वा को इस बात की भी उम्मीद है कि तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी अपने फैसले पर एक बार फिर से पुनर्विचार करेंगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए अभी पर्याप्त समय है।
उपराष्ट्रपति चुनाव की रणनीति पर चर्चा के लिए आज विपक्षी नेताओं की बैठक हुई। इस बैठक में विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा भी शामिल हुईं। इन सब के बीच मार्गरेट अल्वा का बड़ा बयान सामने आया है। विपक्ष की साक्षा उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने कहा हा कि मैंने कई राज्यों के सीएम से बात करना शुरू कर दिया है, जो मेरा समर्थन नहीं कर रहे हैं, मैं उनसे मदद मांग रहा हूं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि असम, कर्नाटक के सीएम और योगी आदित्यनाथ, सभी मेरे दोस्त हैं। उन्होंने दावा किया कि मैं राज्यसभा के कामकाज में बदलाव ला सकती हूं। मार्गरेट अल्वा गैर-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दलों में लगातार बढ़ रहे मतभेद और संख्या बल उनके पक्ष में नहीं होने पर चिंतित नहीं हैं। इसको लेकर उन्होंने कहा कि वह चुनावी नतीजों को लेकर बिल्कुल भी परेशान नहीं हैं, क्योंकि वोटों का गणित कभी भी बदल सकता है।
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इसके साथ ही अल्वा ने यह भी कहा कि हम यह कह कर पीछे नहीं हट सकते कि हमारे पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है। मार्गेट अल्वा को इस बात की भी उम्मीद है कि तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी अपने फैसले पर एक बार फिर से पुनर्विचार करेंगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए अभी पर्याप्त समय है। अल्वा ने कहा कि जब मैं आसपास देखती हूं तो काफी डर लगता है। आप जो चाहते हैं, वह खा नहीं सकते। आप जो चाहते हैं, वह पहन नहीं सकते। आप जो चाहते हैं, वह कह नहीं सकते। आप उन लोगों से मिल भी नहीं सकते, जिनसे आप मिलना चाहते हैं। यह कैसा समय है? अल्वा सोमवार को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में विभिन्न दलों के सांसदों से मुलाकात कर उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना अभियान शुरू करेंगी।
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पूर्व राज्यपाल 80 वर्षीय अल्वा ने कहा कि आज के लोकतंत्र की यह ‘त्रासदी’ है कि जनता द्वारा दिया गया जनादेश कायम नहीं रह पाता और धनबल, बाहुबल और धमकियों से निर्वाचन की रूपरेखा बदल जाती है। संसद में चल रहे गतिरोध को लेकर अल्वा ने कहा कि यह सब हो रहा है क्योंकि आसन एक ऐसा समाधान निकालने में ‘असमर्थ’ है जहां विपक्ष की आवाज भी सुनी जाए। उनका कहना था कि एक लोकतंत्र कैसे चल सकता है जब सरकार का यह नारा प्रतीत होता हो,‘मेरे अनुसार चलो अन्यथा कोई रास्ता नहीं है।’
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