Manipur issue का समाधान होगा, भाजपा त्रिपुरा के जनजातीय इलाके में अपनी पैठ बना रही : माणिक साहा
‘पीटीआई-भाषा’ के साथ विशेष साक्षात्कार में साहा ने यह भी दावा किया कि भाजपा राज्य के जनजातीय इलाके में अपनी पैठ बना रही है जो अब तक जनजातीय संगठन टिपरा मोथा का गढ़ था और उनका मानना है कि यह क्षेत्र ‘‘अपनी ही समस्याओं’’ से जूझ रहा है।
अगरतला। इस वर्ष की शुरुआत में त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सत्ता में लाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले मुख्यमंत्री माणिक साहा का मानना है कि पड़ोसी राज्य मणिपुर में ‘‘समस्याओं का समय रहते समाधान हो जाएगा’’। ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ विशेष साक्षात्कार में साहा ने यह भी दावा किया कि भाजपा राज्य के जनजातीय इलाके में अपनी पैठ बना रही है जो अब तक जनजातीय संगठन टिपरा मोथा का गढ़ था और उनका मानना है कि यह क्षेत्र ‘‘अपनी ही समस्याओं’’ से जूझ रहा है। मुख्यमंत्री साहा (70) ने कहा, ‘‘मणिपुर में पहले भी इस तरह की चीजें (समस्याएं) हुई हैं। मेरा मानना है कि समय रहते (जातीय हिंसा) मामले को सुलझा लिया जाएगा।’’
उनके अपने राज्य में जहां जनजातीय संघर्ष और हिंसा का लंबा इतिहास रहा है, वहां इस सप्ताह की शुरुआत में कुकी समुदाय एवं जमपुई पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले जनजातीय समुदाय के लोगों ने मणिपुर में जारी हिंसा को लेकर प्रदर्शन किया था। टिपरा मोथा का गठन चार वर्ष पूर्व हुआ था। राज्य के पूर्व राजघराने के वंशज प्रोद्युत माणिक्य देबबर्मा और पूर्व उग्रवादी बिजॉय कुमार ह्रांगखॉल के नेतृत्व में टिपरा मोथा आदिवासी नियंत्रित ग्रेटर टिपरालैंड के साथ-साथ त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के लिए अधिक धन और स्वायत्तता की मांग को लेकर त्रिपुरा सरकार और केंद्र से बातचीत कर रहे हैं। मणिपुर में पिछले तीन महीनों से जातीय हिंसा जारी रही है। मणिपुर हिंसा के विरोध में कुकी और अन्य जनजातीय समुदायों के लोगों ने इन जातीय हिंसा के समाधान के रूप में एक अलग प्रशासन या मणिपुर से वृहद स्वायत्तता की मांग की है।
नेताओं के साथ बातचीत अभी शुरू नहीं हुई है। दंत चिकित्सक (सर्जन) से राजनेता बने साहा को लगता है कि इससे आगामी 2024 के संसदीय चुनावों में पार्टी की छवि खराब नहीं होगी। उन्होंने दावा किया कि टिपरा मोथा के भीतर असंतोष है और संकेत दिया कि इसका मतदाता आधार कम हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘उनकी (टिपरा मोथा) अपनी समस्याएं हैं। हम जनजातीय क्षेत्रों तक पहुंच बना रहे हैं... जनजातीय संगठनों के माध्यम से हमारी स्थिति मजबूत हुई है।’’ टिपरा मोथा ने 60 सदस्यीय त्रिपुरा विधानसभा में 13 सीटें जीती थीं और लगभग 20 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और माना जाता है कि उसने त्रिकोणीय चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाई थी, जिसके परिणामस्वरूप गैर-जनजातीय बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में प्राप्त वोट प्रतिशत के कारण कई विपक्षी उम्मीदवारों की हार हुई थी। इससे भाजपा को इन क्षेत्रों में अपनी बढ़त सुनिश्चित करने में मदद मिली। टिपरा मोथा के ‘शांति’ समझौते के तहत भाजपा सरकार में शामिल होने की अटकलों के बीच साहा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘वर्तमान में हमारे पास ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है।’’
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हालांकि उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘राजनीति में सब कुछ संभव है।’’ साहा ने यह भी विश्वास जताया कि उनकी पार्टी राज्य से दोनों लोकसभा सीटें जीतेगी, जिनमें से एक जनजातीय समुदाय के लिए सुरक्षित है। उन्होंने कहा, ‘‘कोई समस्या नहीं होगी। पिछली बार हमने दोनों सीटें जीतीं... इस बार हम बड़े अंतर से जीतेंगे।’’ उन्होंने दावा किया, ‘‘प्रधानमंत्री की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति ने हमें कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं दी हैं।’’ भाजपा एक नयी रेलवे लाइन सहित राजमार्ग और रेलवे निर्माण कार्य कर रही है, जो बांग्लादेश और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से होते हुए मुख्य भूमि भारत की यात्रा के समय में कटौती करेगी। साहा ने बताया, ‘‘त्रिपुरा में सबरूम से चटगांव तक की सड़कें हमें एक तरफ दक्षिण पूर्व एशिया से कनेक्टिविटी प्रदान करेंगी, वहीं बांग्लादेश के माध्यम से रेलवे लाइन कोलकाता तक यात्रा के समय में कटौती करेगी।
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