महागठबंधन बनाया था भाजपा से लड़ने के लिए, अब आपस में ही लड़ रहे हैं
2020 में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन अगर ऐसी स्थिति रही तो महागठबंधन के लिए आगे की राह मुश्किलों भरी रहने वाली है। एक बात जरूर है कि इन दलों के लिए लालू की अनुपस्थिति ने एक शून्यता पैदा कर दी है।
लोकसभा चुनाव से पहले बिहार और उत्तर प्रदेश में भाजपा से मुकाबला करने के लिए महागठबंधन बना था। लेकिन लोकसभा चुनाव में आए नतीजों ने महागठबंधन की हवा निकाल कर रख दी थी। महागठबंधन के बावजूद भाजपा ने यूपी में 80 में से 64 सीटों पर कब्जा कर लिया था। वहीं, बिहार में यह गठबंधन 40 में से महज एक सीट पर जैसे तैसे जीत दर्ज कर पाया। दोनों जगह का महागठबंधन लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बिखरने लगा। उत्तर प्रदेश में आधिकारिक तौर पर इसका ऐलान हो चुका है जबकि बिहार में यह आईसीयू में जाता दिख रहा है। आज बात बिहार की करेंगे। अब 5 विधानसभा सीटों और 1 लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के ऐलान के बाद से ही महागठबंधन टूटने की कगार पर है। 5 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए सभी दल अपने-अपने दावे कर रहे हैं। कांग्रेस, हम और वीआईपी लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी पर हमलावर है वहीं राष्ट्रीय लोक समता पार्टी फिलहाल चुप्पी साधे हुए है।
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महागठबंधन का झगड़ा खुलकर उस वक्त सामने आया जब आरजेडी ने भागलपुर के नाथनगर सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए रबिया खातून को टिकट दे दिया। जीतन राम मांझी शुरू से ही इस सीट पर अपना दावा ठोक रहे थे। मामला आगे बढ़ते हुए जाकर सिमरी बख्तियारपुर सीट पर जा अटका। यहां भी आरजेडी ने जफर आलम को टिकट दे दिया। इस सीट पर चुनाव लड़ने के लिए मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी दावा ठोक रही थी। आरजेडी के इस कदम के बाद से जीतन राम मांझी जहां नाथ नगर सीट पर अपने उम्मीदवार उतारने की बात कर रहे हैं वही सिमरी बख्तियारपुर में मुकेश साहनी भी अपने उम्मीदवार उतारेंगे। बात अब कांग्रेस की करते हैं। कांग्रेस इस उपचुनाव को अकेले अपने दम पर लड़ने पर विचार कर रही है हालांकि फैसला आलाकमान को लेना है। गठबंधन के सहयोगी इस बात से नाराज हैं कि आरजेडी एकतरफा फैसला ले रही है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब महागठबंधन में सिर फुटव्वल मची हुई है।
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लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से लगातार महागठबंधन में आरजेडी के सहयोगी दल तेजस्वी यादव पर हमलावर हैं। महागठबंधन में शामिल दलों का मानना है कि लोकसभा चुनाव में तेजस्वी को आगे करके महागठबंधन ने बड़ी गलती की थी। इसके अलावा तेजस्वी को लेकर महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और हम ने साफ कर दिया है कि तेजस्वी उनके नेता नहीं हो सकते हैं लेकिन आरजेडी इस बात पर अड़ी है कि वह तेजस्वी के ही नेतृत्व में आगे बढ़ेगी। इसके अलावा कांग्रेस के लिए बिहार में एक विकट स्थिति यह है कि कांग्रेस बिहार में अपने कोर वोटर को तलाशने में जुटी हुई है। ऐसा माना जाता है कि भाजपा के उदय से पहले बिहार में कांग्रेस के कोर वोटर सवर्ण हुआ करते थे लेकिन आरजेडी के रवैये से वे कांग्रेस से टूटकर भाजपा से जुड़ गए हैं। ऐसे में बिहार कांग्रेस के नेता यह मानते हैं कि आरजेडी से अलग होकर चुनाव लड़ने से शायद पार्टी को फायदा हो सकता है।
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2020 में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन अगर ऐसी स्थिति रही तो महागठबंधन के लिए आगे की राह मुश्किलों भरी रहने वाली है। एक बात जरूर है कि इन दलों के लिए लालू की अनुपस्थिति ने एक शून्यता पैदा कर दी है। साथ ही साथ भाजपा के बढ़ते प्रभाव और नीतीश की छवि इन दलों को उभरने से रोक रही है। आरजेडी का 15 सालों का शासन भी कांग्रेस, हम और वीआईपी जैसी पार्टियों के लिए नुकसानदायक है क्योंकि भाजपा या फिर जदयू हमेशा लालू यादव के जंगलराज का मुद्दा उठाती रहेगी। ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प रहने वाला है कि क्या 2020 के चुनाव में महागठबंधन का वजूद कायम रहता है या फिर सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं। इसके अलावा यह भी देखना होगा कि तेजस्वी यादव का प्रभाव इन दलों पर कितना रहता है और आरजेडी उन्हें क्या मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर आगे बढ़ रही है?
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