फतेहपुर के चुनावी मैदान में भाजपा के लिये सिरदर्द साबित हो रहे हैं कृपाल परमार

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अगले साल होने वाले विधानसभा उप चुनावों में अबकी बार की हार जीत जरूर असर डालेगी। पिछली बार भी यहां नरेन्दर मोदी के चुनाव प्रचार के बावजूद पार्टी प्रत्याशी चुनाव हार गया था। इस बार भी यहां हालात भले ही बदले हों। लेकिन एक बार फिर यहां भाजपा उम्मीदवार बीच मंझधार में फंसते नजर आ रहे हैं।

फतेहपुर।  हिमाचल प्रदेश के जिला कांगडा का फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र जिसे डिलिमिटेशन से पहले ज्वाली के तौर पर जाना जाता था। इस बार यहां इस माह के अंत में होने जा रहे उप चुनावों को लेकर इन दिनों सुर्खियों में हैं। यहां पिछले दिनों कांग्रेस नेता विधायक सुजान सिंह पठानिया के निधन के बाद उप चुनाव होने जा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी की यह परंपरागत सीट रही है। इलाके से कभी सुजान सिंह पठानिया चुने गये, तो कभी भाजपा से राजन सुशांत।

 

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लेकिन भाजपा के लिये यह सीट सिरदर्द ही रही है। हालांकि इस सीट के हारने से भाजपा सरकार को कोई खास असर नहीं पडेगा। लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा उप चुनावों में अबकी बार की हार जीत जरूर असर डालेगी। पिछली बार भी यहां नरेन्दर मोदी के चुनाव प्रचार के बावजूद पार्टी प्रत्याशी चुनाव हार गया था। इस बार भी यहां हालात भले ही बदले हों। लेकिन एक बार फिर यहां भाजपा उम्मीदवार बीच मंझधार में फंसते नजर आ रहे हैं। भाजपा के पूर्व सांसद कृपाल परमार चुनावी हार जीत में अहम भूमिका निभायेंगे।  

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भाजपा ने इस बार बलदेव ठाकुर को मैदान में उतारा है। लेकिन उन्हें अपनी ही पार्टी के नेता कृपाल परमार की उपेक्षा का सामना करना पड रहा है। अपना टिकट कटने के बाद कृपाल परमार ने चुनाव प्रचार से किनारा कर लिया है। जिससे भाजपा का चुनाव प्रचार पटरी से उतरता नजर आ रहा है। जिसका फायदा राजन सुशांत को मिलता दिखाई दे रहा है।  

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पिछले विधानसभा चुनावों में बलदेव ठाकुर ने भाजपा प्रत्याशी कृपाल परमार को हराने में अहम भूमिका निभाई थी । जिससे सुजान सिंह पठानिया चुनाव जीते। बलदेव ठाकुर को 2012 में भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा था । लेकिन तब राजन सुशांत की पत्नी सुधा सुशांत के मैदान में आने से चुनाव हार गये ।  2017 में उन्होंने टिकट न मिलने पर भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लडा व फिर चुनाव हारे । लेकिन इस बार बलदेव  ठाकुर को टिकट तो मिला,लेकिन कृपाल परमार ने इस पर मुंह फुला लिया है। व चुनावी प्रचार से हट गये है।

चुनावी मैदान में इस बार सुजान सिंह पठानिया तो नहीं हैं,लेकिन उनकी विरासत को आगे बढाने के लिये उनके बेटे भवानी सिंह पठानिया ने कांग्रेस टिकट मिला है। भवानी सिंह अपनी एक कंपनी की नौकरी को छोड कर राजनिति में कूदे हैं।  वहीं दूसरी ओर पूर्व सांसद राजन सुशांत ने भाजपा से बगावत पहले ही कर रखी है। व अपनी एक अलग पार्टी बनाकर राजनैतिक मैदान में है। 

पूर्व सांसद राजन सुशांत अपनी सभाआेंं में अपने विधायक व सांसद रहते हुए इलाके में करवाए गए विकास कार्यों से लोगों को अवगत करा रहे हैं, वहीं मौजूदा प्रदेश सरकार पर भी कई आरोप लगाते हैं। वह यहां पिछले कई दिनों से पुरानी पेंशन बहाल करने के मामले में धरने पर बैठे हैं ने कहा कि फतेहपुर की जनता ने उन्हें 26 साल की उम्र में जीतवाकर विधानसभा भेजा था। इस बार भी ऐसा ही होगा।

उन्होंने विधायक बनने के बाद उस समय भी काफी विकास करवाया था। वह फतेहपुर हल्के से चार बार विधायक व एक बार सांसद रहे हैं। इस दौरान उन्होंने जो जो विकास कार्य करवाए हैं, उससे फतेहपुर की जनता भली भांति परिचित हैं। अपने कार्यकाल में उन्होंने डीसी आरएडंआर कार्यालय राजा का तालाब में खुलवाने के साथ साथ फतेहपुर के कई दफ्तर खुलवाए। प्रदेश की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना शाहनहर का काम शुरू करवाया और उसका दफ्तर फतेहपुर में खुलवाया। इससे कई लोगों को रोजगार दिलवाया।  लेकिन भाजपा ने अभी तक यहां कुछ भी नहीं किया। सुशांत के समर्थक दावा कर रहे हैं कि मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी व सुशांत के बीच ही है। भाजपा मुकाबले से बाहर हो चुकी है।  

वहीं,कांग्रेस पार्टी मान कर चल रही है कि इस बार उपचुनाव में भवानी सिंह पठानिया के मैदान में उतरने से सहानूभूति लहर का लाभ पार्टी को मिलेगा।  भवानी सिंह अपनी सभाओं में जाति धर्म संप्रदाय से उपर उठकर लोगों से मतदान करने की अपील कर रहे हैं।

लेकिन भाजपा के उम्मीदवार बलदेव ठाकुर के लिये इस बार कृपाल परमार की गैर मौजूदगी में चुनाव जीतना इतना आसान नहीं है।  भले ही उनके विरोधी भवानी सिंह व सुशांत के मुकाबले उनके पास अधिक संसाधन है। उनके लिये सबसे बडा सिरदर्द परमार ही है। उन्हें अभी तक भाजपा माने में नाकाम रही है। भाजपा उम्मीदवार के लिये वन मंत्री राकेश पठानिया के प्रभाव वाली नुरपूर से इस हल्के में मिली पंचायतों का क्या रूख रहता है। यह भी देखने वाली बात होगी। अभी तक यहां भाजपा नरेन्दर मोदी या सीएम जय राम ठाकुर का प्रभाव देखने को नहीं मिलता।  पिछली बार भी मोदी की चुनावी रैली के बावजूद भाजपा उम्मीदवार चुनाव हार गये थे।

इलाका पंजाब से सटा है। और कांग्रेस का प्रभाव यहां देखने को मिलता है। बलदेव ठाकुर यहां से चुनाव उसी सूरत में जीत पायेंगे, जब उन्हें परमार  खुलकर समर्थन दें और कांग्रेस नेता भवानी सिंह के प्रति लोगों का खास रूझान न हो, राजन सुशांत को पिछली बार से अधिक वोट इस बार न मिलें।  सबसे महत्वपूर्ण वन मत्री राकेश पठानिया के प्रभाव वाली 19 पंचायतों के मतदाताओं का रवैया बलदेव ठाकुर के प्रति कैसा रहता है।  

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