जानिए आखिर क्यों महाराष्ट्र अलग- थलग पड़े Uddhav Thackeray? CM बनने के चक्कर में पलटा 'गेम', अब दोष BJP पर डाला
उद्धव ठाकरे को शिवसेना के सबसे मजबूत स्तंभ के रूप में माना जाता है, लेकिन आज के दौर में उनकी राजनीतिक सवालों के घेरे में है। जिसको लेकर अब सवाल उठ रहे हैं कि जब शिवसेना का पास 105 सीटें थीं और वह सरकार में थी, तो उनकी ही पार्टी ने उद्धव को ठोकर क्यों मार दी।
महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे को शिवसेना के सबसे मजबूत स्तंभ के रूप में माना जाता है, लेकिन आज के दौर में उनकी राजनीतिक सवालों के घेरे में है। जिसको लेकर अब सवाल उठ रहे हैं कि जब शिवसेना का पास 105 सीटें थीं और वह सरकार में थी, तो उनकी ही पार्टी ने उद्धव को ठोकर क्यों मार दी। 2022 में जब उद्धव सरकार गिरी थी तो वह भी शिवसेना की ही वजह से। इसके बाद भी तत्कालीन सीएम रहे उद्धव ठाकरे ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और वे शिवसेना के एक बड़े धड़े के विरोध में अडिग बने रहे। इसका नतीजा स्पष्ट था कि कांग्रेस और एनसीपी भी उनकी कुर्सी नहीं बचा पाई।
उद्धव ठाकरे शिवसेना के टुकड़ों को सहेजने में विफल रहने के बाद अब दोष बीजेपी पर मढ़ रहे हैं कि भाजपा ने उन्हें भुलावे में रखा और धोखा दिया। राजनीति में उनके इस बयान के कई मायने हो सकते हैं, लेकिन अगर सीधा सा अर्थ लगाया जाए, तो उनका संकेत साफ नजर आता है। उनके इस बयान के मायने ये हैं कि बीजेपी को शिंदे का साथ नहीं बल्कि उद्धव ठाकरे का साथ देना था, ताकि वे महाराष्ट्र की सत्ता में बने रहते। लेकिन हुआ उनकी (उद्धव ठाकरे) अपेक्षा के ठीक उल्टा। दरअसल, शिवसेना जब दो धड़ों में बंटी तो बीजेपी ने शिंदे गुट का साथ दिया था और फिर से बीजेपी ने शिंदे गुट की सरकार ने शपथ ली।
हालांकि, इस सबके बीच एक बात तो ये स्पष्ट हो गई है कि महाराष्ट्र में उस वक्त कोई भी दल हो, सबको ये पता था कि बिना बीजेपी के समर्थन के सिर्फ सीएम ही नहीं कोई दल उस वक्त सरकार तक नहीं बना सकता था। अब उद्धव ठाकरे का ताजा बयान इस ओर साफ इशारा करता है कि उन्होंने शिंदे को इसलिए अधिक महत्व नहीं दिया क्योकिं उन्हें अपेक्षा भाजपा से थी लेकिन बीजेपी ने उन्हें किसी तरह का संकेत नहीं दिया। इसलिए ऐसे में उद्धव ठाकरे की एक बार फिर से सीएम बनने की महत्वाकांक्षा जागी और उन्होंने शिवसेना के सिद्धांत और विचारधारा को साइड में रखते हुए कांग्रेस-एनसीपी से हाथ मिला लिया। लेकिन पूरा खेल तब बिगड़ गया जब शिंदे ने भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार का दावा ठोंक दिया।
अब ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ये भी है कि महाराष्ट्र में शिंदे को महत्व ना देकर उद्धव ठाकरे ने उनके विश्वास के साथ खिलवाड़ करने का काम किया। जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है। हालात ये हैं अब महाविकास अघाड़ी के नेताओं के बीच उद्धव का कद कहां है, ये स्पष्ट देखा जा सकता है। उनके पास पार्टी संगठन या फिर सरकार का नेतृत्व करने की कोई क्षमता नहीं रह गई है। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे ने अब महायुति में अपनी वापसी की डोर भी काट दी है। बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिलीं, इसलिए महायुति को 161 सीटों पर बहुमत मिला था। लेकिन आज उद्धव ठाकरे अलग- थलग पड़ गए हैं। इसकी वजह उनकी मुख्यमंत्री बनने की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ही मानी जा रही है।
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