विजय दिवस स्पेशल: जब पाक सैनिकों ने कहा- हमें माधुरी दीक्षित दे दो, हम चले जाएंगे, कैप्टन विक्रम बत्रा ने दिया ऐसा जवाब, जानकर होगा गर्व
किस्तानी घुसपैठियों ने विक्रम बत्रा से बोला कि माधुरी दीक्षित हमे दे दो, हम चले जाएंगे। इस बात कैप्टन विक्रम बत्रा मुस्कुराए और इसका जवाब अपनी एके-47 से फायर करते हुए दिया और कहा विद लव फ्रॉम माधुरी।
मई 1999 की बात है जम्मू कश्मीर में ये गर्मियों के दिन थे और बर्फ बिघल रही थी। मई का पहला हफ्ता शुरू ही हुआ था कि सेना को पता चला कि करगिल में पाकिस्तानी घुसपैठिए आ गए हैं। कई अहम चोटियों पर उनका कब्जा हो गया है। 26 मई 1999 को एयरफोर्स ने घुसपैठियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 6 जून को भारतीय सेना ने पाकिस्तान से हुई 1971 की जंग के बाद का सबसे बड़ा ऑपरेशन शुरू किया। सेना के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्वाइंट 5140 को अपने कब्जे में वापस लेनी की थी। 13 जम्मू कश्मीर राइफल के कैप्टन विक्रम बत्रा को दुश्मनों से इस चोटी को वापस लेने की जिम्मेदारी मिली।
प्वाइंट 5140 की जीत
कारगिल की चोटियों पर बैठे पाकिस्तानी सेना से लड़ाई आसान नहीं थी। लेकिन सधी हुई रणनीति और वीरता से कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी यूनिट ने प्वाइंट 5140 की लड़ाई जीत ली और वहां पर तिरंगा फहरा दिया। लेकिन कैप्टन विक्रम बत्रा को पता था कि उनकी मंजिल कुछ और है। विक्रम बत्रा के पिता ने मीडिया से बात करते हुए बताया था कि उनके बेटे ने जंग के दौरान न केवल अपने एक साथी की जान बचाई बल्कि एक सूबेदार को इसलिए खतरे में नहीं डाला, क्योंकि वे शादी-शुदा थे और उनके बच्चे थे। प्वाइंट 5140 जीतने के बाद बत्रा ने कहा था "ये दिल मांगे मोर" ये लाइने पूरे कारगिल युद्ध का नारा बन गए थे।
प्वाइंट 4875 जीतने के मिशन के लिए खुद आगे आएं
कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता ने बताया था कि उनके बेटे ने प्लाइंड 5140 जीतने के बाद खुद ही प्वाइंट 4875 जीतने के मिशन में जाने के लिए आगे आ गए। इस चोटी पर बैठकर दुश्मन लगातार नेशनल हाइवे की तरफ फायरिंग कर रहा था। जिसके चलते भारतीय सेना के ट्रक और काफिले को निकलने में काफी दिक्कत आ रही थी। यही वजह थी कि भारतीय सेना को जल्द से जल्द इस चोटी पर विजय हासिल करनी थी। कैप्टन विक्रम बत्रा न केवल इस चोटी पर चढ़े बल्कि तोपों, मोटार्र, रॉकेट लॉन्चर की भयानक गोलीबारी के बीच अकेले ही पांच घुसपैठियों को मार गिराया। चोटी पर बैठे पाकिस्तानी सेना के कमांडर ने ये कहा था कि शेर शाह ऊपर मत आना वापस नहीं जाओगे। इस पर कैप्टन बत्रा ने जवाब दिया था कि एक घंटे में पता चल जाएगा कौन जाएगा और कैसे जाएगा। चोटी पर कब्जा तो हो गया लेकिन कैप्टन बत्रा बुरी तरह घायल हो गए। इसी भयानक लड़ाई में 7 जुलाई 1999 को पाकिस्तान के पांच जवानों को मार गिराते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा ने भी देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया। जिसके बाद ‘प्वाइंट 4875’ को बत्रा टॉप के नाम से भी जाना जाने लगा जो नियंत्रण रेखा से सटी एक पहाड़ी का शीर्ष है। इसका नाम परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बत्रा के नाम पर रखा गया है।
ऐसा रहा शुरुआती सफर
9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के बत्रा परिवार में दो किलकारियां एक साथ गूंजी थी। हूबहू एक से दिखने वाले दोनो भाई विक्रम और विशाल को लव और कुश भी बुलाते थे। मां कमल बत्रा खुद टीचर थी। बेटों को प्राथमिक शिक्षा घर पर ही दी। पर एक बार बेटों ने स्कूल में दाखिला लिया तो विक्रम दिलों पर राज करने लगे। पालमपुर से स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद विक्रम ने चंडीगढ़ में स्नातक की पढ़ाई की जिसके दौरान ही उन्होंने एनसीसी का सी सर्टिफिकेट हासिल किया और दिल्ली में हुई गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया। 1997 में 19 महीने की ट्रेनिंग के बाद कैप्टन बत्रा को 13 वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन किया गया था। उनकी बटालियन, 13 जेएके आरआईएफ को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश जाने का आदेश मिला। लेकिन 5 जून को बटालियन के आदेश बदल दिए गए और उन्हें द्रास, जम्मू और कश्मीर स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया।
युद्ध के दौरान पाक सौनिको ने कहा- हमें माधुरी दीक्षित दे दो
जब भारत-पाकिस्तान के बीच ये जंग छिड़ी हुई थी, तब भारतीय जवान मस्को वैली पर कब्जा करने के बाद आगे बढ़ रहा था और भारतीय फौजियों का उत्साह, जोश बुलंद था और वो वीर की तरह लगातार आगे बढ़ रहे थे। उस वक्त वो एक पाकिस्तानी बंकर के पास थे, जहां दोनों देशों की सेना आमने-सामने थी और लगातार एक दूसरे से भिड़ रही थी। उसी दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों ने विक्रम बत्रा से बोला कि माधुरी दीक्षित हमे दे दो, हम चले जाएंगे। इस बात कैप्टन विक्रम बत्रा मुस्कुराए और इसका जवाब अपनी एके-47 से फायर करते हुए दिया और कहा विद लव फ्रॉम माधुरी और कई पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। कैप्टन बत्रा और माधुरी दीक्षित की यह चर्चा काफी मशहूर हैं और कारगिल के दौरान जंग लड़ने वाले सैनिक इसे हमेशा याद करते हैं।
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