पराली मुद्दे पर केजरीवाल ने जावड़ेकर को लिखा पत्र, प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाने का दिया सुझाव
पत्र में कहा गया है , ‘‘वैज्ञानिकों ने कहा कि पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरता घट जाती है क्योंकि इससे उसमें मौजूद जीवाणु मर जाते हैं। लेकिन यदि फसल अवशेष को खाद में तब्दील कर दिया जाए तो यह उर्वरक के उपयोग में कमी ला सकता है।’’
नयी दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखा और पराली जलाये जाने से निपटने के लिये यहां भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित कम लागत वाली प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाने का सुझाव दिया। केजरीवाल ने कहा, ‘‘आईएआरआई के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रसायन विकसित किया है जो पराली को (खेतों में ही) सड़ा-गला देता है और इसे खाद में तब्दील कर देता है। किसानों को पराली जलाने की कोई जरूरत नहीं है।’’ संस्थान के विशेषज्ञों जो रसायन विकसित किया है उसे ‘अपघटक कैप्सूल’ नाम दिया है। 25 लीटर घोल तैयार करने के लिये महज चार कैप्सूल का उपयोग किया जा सकता है। इसमें कुछ गुड़ और चने का आटा मिला कर, बनाए गए घोल का एक हेक्टेयर जमीन पर छिड़काव किया जा सकता है।
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पत्र में कहा गया है , ‘‘वैज्ञानिकों ने कहा कि पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरता घट जाती है क्योंकि इससे उसमें मौजूद जीवाणु मर जाते हैं। लेकिन यदि फसल अवशेष को खाद में तब्दील कर दिया जाए तो यह उर्वरक के उपयोग में कमी ला सकता है।’’ मुख्यमंत्री ने कहा कि यह पद्धति पराली जलाये जाने की समस्या का एक अच्छा समाधान हो सकता है और शहर की सरकार इसका बड़े पैमाने पर उपयोग करने जा रही है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राष्ट्रीय राजधानी में पराली बिल्कुल नहीं जलाई जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को भी इसके यथासंभव उपयोग के लिये प्रोत्साहित करना चाहिए।
केजरीवाल ने कहा, ‘‘ऐसे काफी किसान हैं जिनके पास फसल अवशेष (पराली) का प्रबंधन करने के लिये मशीन नहीं है। इसलिये वे इसे जला देते हैं। यह पद्धति (अपघटक कैप्सूल) उर्वरक के उपयोग को घटा सकती है और फसल उत्पादन बढ़ा सकती है। ’’ मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिये केंद्रीय मंत्री से समय भी मांगा।
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गौरतलब है कि अक्टूबर-नवंबर महीने में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसान खेतों में बड़े पैमाने पर पराली जलाते हैं। इससे दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण काफी बढ़ जाता है। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने पर प्रतिबंध के बावजूद किसान इसकी अवज्ञा कर रहे हें क्योंकि धान की फसल की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच उन्हें बहुत कम समय मिल पाता है। पराली से खाद बनाने या उनके मशीनी प्रबंधन में काफी लागत आती है, यह एक मुख्य वजह है कि किसान पराली जलाने का विकल्प चुनते हैं। हालांकि, राज्य सरकारें किसानों औरसहकारी समितियों के अत्याधुनिक कृषि उपकरणों की खरीद के लिये 50 से 80 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है ताकि पराली का प्रबंधन किया जा सके। साथ ही, धान की भूसी आधारित विद्युत संयंत्र लगाये जा रहे हैं और व्यापक जागरूकता भी फैलाई जा रही है। लेकिन ये उपाय कम ही असरदार रहे हैं।
Delhi CM Arvind Kejriwal writes to Union Minister of Environment, Forest & Climate Change Prakash Javadekar over stubble burning issue; he mentions in his letter about the usage of a technology developed by ICAR-Indian Agriculture Research Institute, in Delhi & nearby States. pic.twitter.com/iG9JODlEdR
— ANI (@ANI) September 26, 2020
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