क्या कन्हैया के भाषणों की बदौलत कांग्रेस की होगी नैया पार? पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट
अपनी नई पारी की शुरूआत करते समय कन्हैया के पास अपनी सबसे बड़ी ताकत है जो बीजेपी की राष्ट्रीय और हिंदुत्व की राजनीति के लिए एक आक्रामक जवाब देती है। अब जब कन्हैया कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, तो उनके लिए फिलहाल चुनौती पार्टी के दिग्गजों से निपटने की हो सकती है।
नयी दिल्ली। जेएनयू की छात्र राजनीति से उभरे कन्हैया कुमार अब कांग्रेस पार्टी को जॉइन कर चुके हैं। कांग्रेस में कन्हैया कुमार का आना नई संभावनाओं की रूप रेखा तैयार कर सकती है। कन्हैया कुमार अक्सर अपने भाषण को लेकर सुर्खियों में बने रहते हैं। सरकार से विभिन्न मुद्दों पर कन्हैया के अपने अलग सवाल होते हैं। जो अपने भाषण के दौरान भी वो उठाते रहते हैं। कहीं न कहीं कांग्रेस को कन्हैया कुमार की इन गतिविधियों का पूरा-पूरा फायदा मिल सकता है।
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बता दें कि जेएनयू के कैंपस से निकले नारों ' हम क्या मांगे आज़ादी' के कारण सुर्खियों में आये। कन्हैया कुमार अब कांग्रेस जॉइन कर चुके हैं। इससे पहले कन्हैया कुमार सीपीआई के टिकट पर बिहार में अपने संसदीय क्षेत्र बेगूसराय से भाजपा के गिरिराज सिंह के खिलाफ चुनाव में उतर चुके हैं। हालांकि इस चुनाव के दौरान भी उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। लोकसभा 2019 के चुनाव को वे बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह से हार गए थे।
बिहार कांग्रेस मुख्यालय में कन्हैया का इंतज़ार
काफी समय से पटना में कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय के पास बहने वाली गंगा की धारा पहले कम हो गई थी। लेकिन अब, वर्षों में पहली बार, सदाकत आश्रम सुर्खियों में है, अपने नए मेहमान कन्हैया कुमार के आने का इंतजार कर रहा है।
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कन्हैया ने कांग्रेस पर जताया भरोसा
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष 29 सितंबर को दिल्ली में कांग्रेस में शामिल हुए, मीडिया से बात करते हुए कन्हैया ने कहा ” मैंने देश की सबसे पुरानी और सबसे लोकतांत्रिक (पार्टी) को चुना है। कई युवाओं को लगता है कि अगर कांग्रेस नहीं होगी तो देश नहीं होगा'।
जेएनयू पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने सरकार से तीखे सवालों और आरोपों के ज़रिये एक निडर नेता की छवि बनाई जिससे वो पीछे कभी नहीं हटे फिर चाहे वो 2016 में देशद्रोही के मामले में गिरफ्तारी ही क्यों न हो। ऐसे में, कन्हैया की तीखी बहस और सटीक सवालों का कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी को फायदा मिल सकता है।
आपको बताते चलें कि जहां कन्हैया के पास मजबूत पार्टी नहीं थी, वहीं बिहार कांग्रेस के पास मजबूत नेता नहीं था। पार्टी, जो 1990 में राज्य में आखिरी बार सत्ता में थी। कांग्रेस के पास एक ऐसा नेता नहीं है जो इसे तीन दशकों की राजनीतिक जड़ता से उठा सके।
कन्हैया, कैसे हैं अलग
कन्हैया को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है जो अपने प्रतिद्वंद्वी को घूर सकता है। केंद्र के CAA और NRC के विरोध के चरम के समय भी उन्होंने भाजपा पर निशाना साधा था। उन्होंने सीमांचल क्षेत्र (अररिया, पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज) में रैलियों की एक श्रृंखला शुरू की, जिसमें भारी भीड़ थी। उनकी पूर्णिया रैली ने लगभग 1 लाख लोगों को आकर्षित किया। हालांकि थोड़ी देर के लिए भी कन्हैया की रैलियों ने बीजेपी को बैकफुट पर धकेल दिया था।
कन्हैया के सामने चुनौती
अपनी नई पारी की शुरूआत करते समय कन्हैया के पास अपनी सबसे बड़ी ताकत है जो बीजेपी की राष्ट्रीय और हिंदुत्व की राजनीति के लिए एक आक्रामक जवाब देती है। अब जब कन्हैया कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, तो उनके लिए फिलहाल चुनौती पार्टी के दिग्गजों से निपटने की हो सकती है।
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