जरा समझ लें झाबुआ का गणित, उपचुनाव में भाजपा सीट बचाने तो कांग्रेस खोया गढ़ पाने की जुगत में

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दिनेश शुक्ल । Sep 26 2019 3:51PM

निर्वाचन आयोग ने हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ ही 17 राज्यों में खाली हुई विधानसभा तथा लोकसभा की सीटों पर उपचुनाव करवाने का ऐलान कर दिया। जिसमें मध्यप्रदेश की झाबुआ विधानसभा सीट भी शामिल है।

मध्यप्रदेश की झाबुआ विधानसभा सीट पर सियासी हलचल शुरू हो गई है। यह पहला मौका होगा जब झाबुआ विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होने जा रहा है। पिछले साल नवम्बर में मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में झाबुआ सीट से बीजेपी प्रत्याशी जीएस डामोर ने जीत दर्ज की थी। पार्टी ने उन्हें दो माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट से एक बार फिर अपना प्रत्याशी बनाया। जीएस डामोर ने लोकसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की। जिसके बाद उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से अपना इस्तीफा दे दिया और लोकसभा सांसद बन गए और यह विधानसभा सीट खाली हो गई। निर्वाचन आयोग ने हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ ही 17 राज्यों में खाली हुई विधानसभा तथा लोकसभा की सीटों पर उपचुनाव करवाने का ऐलान कर दिया। जिसमें मध्यप्रदेश की झाबुआ विधानसभा सीट भी शामिल है।

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झाबुआ विधानसभा सीट की बात करें तो यहां पर पिछले दो बार से भाजपा जीत कर रही है। जबकि कांग्रेस की परंपरागत सीटों में से एक रही झाबुआ सीट पर भाजपा ने सेंध लगाते हुए कांग्रेस की आपसी गुटबाजी के चलते इस सीट पर जीत दर्ज की थी। 2013 विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस प्रत्याशी जेवियर मेड़ा के सामने कांतिलाल भूरिया की भतीजी कलावती भूरिया के निर्दलीय चुनाव लड़ने का फायदा बीजेपी को मिला तो वहीं पिछले साल नवम्बर के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया के पुत्र विक्रांत भूरिया को बीजेपी प्रत्याशी जीएस डामोर ने 10,837 वोटों से हरा दिया। जिसका कारण बने कांग्रेस से बागी नेता जेवियर मेड़ा जिन्हें इस चुनाव में 35,943 वोट मिले। वहीं उपचुनाव के लिए बुधवार को एआईसीसी से जारी लिस्ट में पार्टी ने पूर्व सांसद और प्रदेश अध्यक्ष रहे कांतिलाल भूरिया को झाबुआ से अपना अधिकृत प्रत्याशी बनाया है। 

मिली जानकारी के मुताबिक कांतिलाल भूरिया के नाम पर पूर्व विधायक रहे जेवियर मेड़ा को पार्टी ने राजी कर लिया है। वहीं भाजपा अभी तक अपना उम्मीदवार घोषित नहीं कर पाई। भाजपा में प्रबल उम्मीदवार के रूप में देखा जाए तो निर्मला भूरिया का नाम सबसे आगे हैं। जबकि भाजपा सूत्रों का कहना है कि भाजपा की बातजेवियर मेड़ा से चल रही है अगर वह कांग्रेस से एक बार फिर बगावत करते हैं तो भाजपा उन्हें ही मैदान में उतरेगी। जहां झाबुआ विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है तो वहीं भाजपा अपनी यह सीट बचाने के लिए पूरे दमखम से मैदान में उतरने जा रही है। जिसको लेकर कुछ दिनों पहले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने झाबुआ से चुनावी विगुल फूंक दिया था।

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झाबुआ विधानसभा में यह पहला मौका है जब यहां उपचुनाव हो रहा है। इस विधानसभा में कौन कब जीता इस पर नज़र दौड़ाई जाए तो 2003 की भाजपा लहर में कवे सिंह कालसिंह पर्गी ने यहाँ से जीत दर्ज की। लेकिन 2008 में कांग्रेस प्रत्याशी जेवियर मेड़ा ने उन्हें हरा दिया। कांग्रेस यहां अपनी अंतर कलह के चलते 2013 में भाजपा प्रत्याशी शांतिलाल बिलवाल से जेवियर मेड़ा हार गए, तो वहीं 2018 चुनाव में कांतिलाल भूरिया के पुत्र विक्रांत भूरिया को जीएस डामोर ने शिकस्त दी। झाबुआ विधानसभा सीट पर अब तक 15 चुनाव हुए हैं जिसमें से 10 बार कांग्रेस जीती है तो 2 बार सोशलिस्ट पार्टी जीती। वहीं 3 बार भाजपा ने यहां से जीत दर्ज की है। इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे बापू सिंह डामोर 6 बार विधायक चुने गए। इस सीट पर 1967 से लेकर 2003 तक 36 साल तक कांग्रेस का ही राज रहा। पहली बार हो रहे उपचुनाव में जहां कांग्रेस खोई पकड़ पाने के लिए छटपटा रही है तो भाजपा जीत के बावजूद जड़े नहीं जमा पाने के दाग को दूर करने की कोशिश में है। झाबुआ क्षेत्र में बीजेपी के लिए माहौल साल 2000 में सेवा भारती संस्था द्वारा किए गए हिंदू सम्मेलन के बाद बना। तब संयुक्त झाबुआ जिले की पांचों सीटों पर भाजपा जीत गई थी, लेकिन ये समर्थन 2008 में ही आदिवासी क्षेत्र के लोगों ने वापस ले लिया। एक को छोड़ बाकी सीटें कांग्रेस ने जीत ली थी। वहीं जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन जयस भी आदिवासी बाहुल्य सीट होने के चलते इस पर दावा करता है। जयस अध्यक्ष हीरालाल अलावा ने चुनाव से पहले ही कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने की बात कही है। जिसको लेकर उनकी मुख्यमंत्री कमलनाथ से बात हुई है।

प्रदेश की यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। यहां 21 अक्टूबर को मतदान होगा और मतगणना 24 अक्टूबर को होगी। जिसके लिए 23 सितंबर को अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई। नामांकन भरने की अंतिम तिथि 30 सितंबर है तथा नाम वापस लेने की तारीख 03 अक्टूबर तय कर दी गई है। चुनाव तारीखों की घोषणा के साथ ही झाबुआ विधानसभा में आने वाले झाबुआ और अलीराजपुर जिलों में आदर्श आचरण संहिता लागू हो गई है। झाबुआ सीट पर कुल 356 मतदान केन्द्र हैं, जिनमें से 322 मतदान केन्द्र झाबुआ जिले में एवं 34 मतदान केन्द्र अलीराजपुर जिले में आते हैं। इस सीट पर करीब 2.77 लाख मतदाताओं के नाम मतदान सूची में हैं। चुनाव आयोग ने यह भी साफ किया है कि चुनाव तारीखों की घोषणा होने से पहले जिन मतदाताओं ने मतदान सूची में अपने नाम शामिल करने के लिए आवेदन किया है, उनके नाम भी इसमें जोड़े जाएंगे।

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कुल मिलाकर देखा जाए तो इस आदिवासी बाहुल्य झाबुआ विधानसभा सीट पर सीधेतौर पर कांग्रेस और भाजपा को छोड़कर कोई अन्य दल अपनी दावेदारी नहीं ढोक रहा है। भले ही बीएसपी और सपा जैसी पार्टियां इस चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े करें और निर्दलीय बागी उम्मीदवार भी खड़े हों लेकिन भाजपा या कांग्रेस पार्टी से बागी होकर उम्मीदवारी करने वाले प्रत्याशी ही अपनी पार्टी का समीकरण बिगाडेंगे। वहीं प्रदेश में कांग्रेस शासित कमलनाथ सरकार किसी भी हाल में झाबुआ उपचुनाव जीतने के लिए साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल करेगी। अगर प्रदेश में सरकार होते भी कांग्रेस यह उपचुनाव हारती है तो उसके लिए शर्मिदंगी की बात तो होगी ही, साथ ही अल्पमत की सरकार को एक और झटका लगेगा। क्योंकि प्रदेश में अभी तक कांग्रेस के पास 114 विधायक ही हैं और यह सरकार निर्दलीय और बीएसपी तथा सपा विधायकों के समर्थन से चल रही है। जबकि बीजेपी के 109 की जगह अब 108 विधायक ही रह गए हैं जो जीतने के बाद फिर से 109 के आंकडे तक पहुँचकर कमलनाथ सरकार के लिए मुश्किलें पैदा करने वाला होगा।

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