Prajatantra: क्या सोची समझी रणनीति का हिस्सा है Udhayanidhi का बयान, BJP से मुकाबले की है तैयारी

Udhayanidhi
ANI
अंकित सिंह । Sep 4 2023 3:03PM

उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणियों को तमिलनाडु में द्रवित पहचान को फिर से मजबूत करने के प्रयास के रूप में समझा जा सकता है। अप्रत्यक्ष रूप से उदयनिधि ने अपने बयान के जरिए ब्रह्मणवादी परंपराओं और हिंदू रूढ़िवादिता को चुनौती दी है।

देश की राजनीति में धार्मिक एंगल भी समय-समय पर खूब देखा जाता है। अपने वोट बैंक को बनाए रखने के लिए नेताओं की ओर से कई बार किसी जाति या धर्म के खिलाफ कुछ बातें कह दी जाती हैं। मीडिया में तो यह मुद्दा बनता है लेकिन नेताओं को लगता है इससे उन्हें फायदा होगा। अपने समीकरणों को बनाए रखने के लिए भी नेताओं की सोची समझी रणनीति होती है। तमिलनाडु के मंत्री और डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म को लेकर दिए बयान पर बवाल मचा हुआ है। भाजपा जहां जबरदस्त तरीके से हमलावर है और इसे हिंदू धर्म का अपमान बता रही है तो वहीं कांग्रेस सर्वधर्म समभाव का अपना पुराना राग अलाप रही है। हिंदू धार्मिक संगठन भी उदयनिधि के बयान पर हमलावर है। हालांकि इंडिया गठबंधन के कुछ दलों ने इसे निजी बयान बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि आखिर हमेशा हिंदू धर्म ही निशाने पर क्यों आता है? साथ ही साथ हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि तमिलनाडु की राजनीति में उदयनिधि का यह बयान कितना महत्व रखता है?

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उदयनिधि ने क्या कहा

तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) की युवा इकाई के सचिव एवं राज्य के युवा कल्याण मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को समानता एवं सामाजिक न्याय के खिलाफ बताते हुए कहा कि इसे समाप्त किया जाना चाहिए। उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना कोरोना वायरस, मलेरिया, और डेंगू वायरस एवं मच्छरों से होने वाले बुखार से करते हुए कहा कि ऐसी चीजों का विरोध नहीं करना चाहिए बल्कि नष्ट कर देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘सनातनम क्या है? यह संस्कृत से आया शब्द है। सनातन समानता और सामजिक न्याय के खिलाफ होने के अलावा कुछ नहीं हैं।’’ उदयनिधि ने कहा, ‘‘सनातन का क्या अभिप्राय है? यह शास्वत है, जिसे बदला नहीं जा सकता, कोई सवाल नहीं कर सकता है और यही इसका मतलब है।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि सनातन ने लोगों को जातियों के आधार पर बांटा। मंत्री ने कहा कि सब कुछ बदला जाना चाहिए और कुछ भी चिरस्थायी नहीं है। उन्होंने कहा कि वामपंथी आंदोलन और द्रमुक की स्थापना सभी पर सवाल करने के लिए की गई है।

तमिलनाडु की राजनीति में इसका महत्व क्यों

सनातन को लेकर इस तरह का बयान देने के बाद भी उदयनिधि को लेकर डीएमके की ओर से कोई सफाई वाला बयान नहीं आया। जाहिर सी बात है कि तमिलनाडु की राजनीति में यह कोई नया नहीं है। डीएमके पेरियार से प्रेरित है। पेरियार की राजनीति पूरी तरीके से ब्राह्मणवाद और हिंदू धर्म के भीतर जाति व्यवस्था के खिलाफ थी। ऐसे में उदयनिधि का बयान भी इसी का हिस्सा माना जा सकता है। पेरियार तमिलनाडु के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में संस्कृत भाषा और ब्राह्मणवाद के विरोध और द्रविड़ पहचान की जबरदस्त वकालत करने वाले की पहचान रखते थे। वह खुद को हिंदू नहीं बल्कि द्रविड़ मानते थे और वे लगातार ब्राह्मणवादी प्रभुत्व के खिलाफ खड़े रहे। उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणियों को तमिलनाडु में द्रवित पहचान को फिर से मजबूत करने के प्रयास के रूप में समझा जा सकता है। अप्रत्यक्ष रूप से उदयनिधि ने अपने बयान के जरिए ब्रह्मणवादी परंपराओं और हिंदू रूढ़िवादिता को चुनौती दी है। 

भाजपा को सीधी चुनौती

उदयनिधि का यह बयान भाजपा को दी गई सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। हाल के दिनों में भाजपा जबरदस्त तरीके से तमिलनाडु में सक्रिय हैं। उसके प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई एक जबरदस्त यात्रा भी निकाल रहे हैं। भाजपा लगातार तमिलनाडु में अपने हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को बढ़ाने की कोशिश में है। यही कारण है कि उदयनिधि की ओर से द्रविड़ पहचान को फिर से मजबूत करने का प्रयास किया जा सकता है। वहीं, दूसरी ओर भाजपा तमिलनाडु में हिंदू हितों के रक्षक के रूप में खुद को स्थापित करने में लगी हुई है। यही कारण है कि उदयनिधि के बयान पर सबसे पहली प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि उनका बयान 80% हिंदुओं को कत्ल करने के बाद कहता है। 

भाजपा नेताओं ने क्या कहा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि वोट बैंक की राजनीति और तुष्टिकरण के लिए सनातन धर्म का अपमान किया गया है। शाह ने कहा कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बेटे कह रहे हैं कि सनातन धर्म को खत्म कर देना चाहिए। विपक्षी गठबंधन को घमंडिया गठबंधन बताते हुए शाह ने कहा कि गठबंधन वोट बैंक की राजनीति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, लेकिन वे जितना सनातन (धर्म) के खिलाफ बात करेंगे, उतना ही कम नजर आएंगे। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने रविवार को विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) पर ‘‘घृणा’’ एवं ‘‘नफरत’’ फैलाने और भारत की संस्कृति एवं परंपरा पर हमला करने का आरोप लगाते हुए लोगों से इसे खारिज करने की अपील की। नड्डा ने कहा, ‘‘ऐसे घमंडिया गठबंधन को रहने का अधिकार है क्या? क्या सनातन को ऐसे समाप्त होने देंगे? स्टालिन के बेटे ने इसकी तुलना डेंगू, मलेरिया और कोरोना वायरस से की।’’ नड्डा ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ पर तंज कसते हुए कहा, ‘‘क्या मुंबई में (इनकी) यही रणनीति तैयार हुई है? क्या सनातम धर्म को समाप्त करना ही इनकी रणनीति है? क्या यह ‘‘घमंडिया गठबंधन’’ की सोची समझी रणनीति है?’ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इन्हीं के गठबंधन DMK ने सनातन धर्म पर चोट पहुंचाई और कांग्रेस के लोगों ने चुप्पी साध रखी है। मैं अशोक गहलोत से पूछता हूं कि आप क्यों नहीं बोलते? सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जून खरगे क्यों नहीं बोलते कि सनातन धर्म के बारे में उनकी सोच क्या है?

कौन हैं उदयनिधि 

उदय निधि को राजनीति विरासत में मिली है। वह तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और दक्षिण भारत के दिग्गज नेता रहे एम करुणानिधि के पोते हैं। उनके पिता एम के स्टालिन भी फिलहाल मुख्यमंत्री हैं। उदयनिधि को पिछले साल स्टालिन सरकार में खेल और युवा मामलों का मंत्री बनाया गया था। हालांकि, स्टालिन का राजनीति में कोई लंबा करियर अभी नहीं है। उनको राजनीति में आए हुए 4 साल हुए हैं। इससे पहले वह दक्षिण भारत की सिनेमा में एक अभिनेता और निर्माता के तौर पर काम करते रहे हैं। वह 45 वर्ष के हैं और युवाओं में लोकप्रिय भी हैं। अक्सर जींस और टीशर्ट में दिख जाते हैं। 2021 में पहली बार में विधायक बने। 2019 में उन्हें पार्टी के यूथ विंग का सचिव बनाया गया। लोकसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने जमकर प्रचार भी किया। 

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उदयनिधि की टिप्पणी और भाजपा की प्रतिक्रिया कहीं ना कहीं तमिलनाडु की राजनीतिक चालबाजी के तौर पर देखा जा सकता है। जैसे ऐसे देश लोकसभा चुनाव की तरफ बढ़ेगा, इस तरह की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं सामने आती रहेंगी। देखना होगा कि पहचान, संस्कृति और धर्म आने वाले वर्षों में चुनावी परिदृश्य को कितना और कैसे प्रभावित करते हैं। जनता को भी इसके लिए तैयार रहना चाहिए। यही तो प्रजातंत्र है।

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