पंडित नेहरू का पद बचाने के लिए राष्ट्रपति के पास गई थीं इंदिरा गांधी: जयराम रमेश
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी। कांग्रेस नेता रमेश ने कहा कि दोनों मेनन एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे लेकिन ब्रिटिश वायसराय को दोनों का साथ मिला।
नयी दिल्ली। जवाहर लाल नेहरू के मुख्य सलाहकार वी के कृष्ण मेनन और वल्लभ भाई पटेल के प्रमुख सहयोगी वी पी मेनन ने दोनों कांग्रेस नेताओं को इस बात की जानकारी दी थी कि देश का विभाजन अवश्यंभावी है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी। कांग्रेस नेता रमेश ने कहा कि दोनों मेनन एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे लेकिन ब्रिटिश वायसराय को दोनों का साथ मिला।
In light of the fake news doing the rounds that Pandit Jawaharlal Nehru did not want Sardar Vallabhbhai Patel in his cabinet, sharing a series of letters & documents.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) February 13, 2020
Here's the truth:
1. Nehru letter to Mountbatten of July 19th 1947 with Patel right on top of new cabinet list pic.twitter.com/j5pe2GGvAA
रमेश ने कहा, ‘‘उस दौरान दो मेनन मौजूद थे। पटेल के मुख्य सलाहकार वी पी मेनन थे और नेहरू के सलाहकार कृष्ण मेनन थे। कृष्ण मेनन, वी पी मेनन को पसंद नहीं करते थे और यह भावना परस्पर थी। माउंट बेटन को दोनों का साथ मिला। दोनों मेनन माउंट बेटन से मिल कर नेहरू और पटेल क्या सोचते हैं, इस बारे में उन्हें बताया।’’ रमेश ने यहां अपनी पुस्तक ‘‘ए चेकर्ड ब्रिलियेंस : द मेनी लाइव्स आफ वी के कृष्ण मेनन’’ पर चर्चा के दौरान यह बात कही। उन्होंने कहा, ‘‘उस दौरान कृष्ण मेनन ने नेहरू को यह समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की कि देश का बंटवारा अवश्यंभावी है....दोनों मेनन का यह विचार था कि मुस्लिम लीग एवं कांग्रेस एक साथ काम नहीं कर सकते हैं।’’
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राज्यसभा सदस्य ने इस दौरान 1962 में चीन के हाथों हार के बाद कृष्ण मेनन के इस्तीफे के बारे में एक रोचक प्रसंग सुनाया। रमेश ने कहा, ‘‘कृष्ण मेनन का इस्तीफा नेहरू ने अपने नेहरू जैकेट की जेब में रख लिया। वह कांग्रेस के 400 सांसदों की बैठक में शामिल होने गये। महावीर त्यागी नामक एक सांसद खड़े हुए और नेहरू से कहा : ‘पंडितजी अगर आपने कृष्ण मेनन का इस्तीफा नहीं लिया तो आपको इस्तीफा देना होगा।’’ पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘इंदिरा गांधी उस वक्त (तत्कालीन) राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन के पास गयीं और उनसे कहा कि आप मेरे पिता को उनसे बचाईये, उन्हें इस्तीफा स्वीकार करने के लिए कहिए।’
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