Shaurya Path: Russia-Ukraine War, India-Sri Lanka, India-China और PM Modi Kuwait Visit से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि डोभाल और वांग ने अक्टूबर के सैनिकों को पीछे हटाने के समझौते के कार्यान्वयन की सकारात्मक पुष्टि की, जिसके परिणामस्वरूप प्रासंगिक क्षेत्रों में गश्त संबंधी गतिविधियां बहाल हुई हैं।
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह रूस-यूक्रेन युद्ध, भारत-चीन वार्ता, श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुवैत दौरे से जुड़े मुद्दों पर बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. रूस-यूक्रेन युद्ध में नया अपडेट क्या है? रूसी सेना के एक शीर्ष जनरल के मारे जाने से क्या संदेश गया है?
उत्तर- फरवरी 2022 से जबसे यह युद्ध चल रहा है तबसे रूस के 9 जनरल मारे जा चुके हैं लेकिन अब जो जनरल मारे गये हैं वह काफी विशेष थे इसलिए पुतिन का गुस्सा भड़कना स्वाभाविक है और वह इस मौत का बदला जरूर लेंगे। उन्होंने कहा कि इसके अलावा इस समय की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रूसी राष्ट्रपति ने अपने वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में जो बातें कही हैं उससे भविष्य के काफी संकेत मिले हैं।
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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि वह युद्ध समाप्त करने पर डोनाल्ड ट्रम्प के साथ संभावित बातचीत के दौरान समझौता करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि पुतिन ने साथ ही यह भी कहा है कि रूसी सेनाएं युद्ध के मैदान पर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि पुतिन ने सवालों का जवाब देते हुए एक अमेरिकी समाचार चैनल के रिपोर्टर से कहा कि वह ट्रम्प से मिलने के लिए तैयार हैं, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने वर्षों से उनसे बात नहीं की है। पुतिन ने सवालों के जवाब में इस दावे को खारिज कर दिया कि रूस कमजोर स्थिति में था। उन्होंने कहा कि 2022 में यूक्रेन में सैनिकों को जाने का आदेश देने के बाद से रूस हमेशा मजबूत स्थिति में रहा है। पुतिन ने कहा कि रूसी सेनाएं पूरे मोर्चे पर आगे बढ़ते हुए यूक्रेन में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रही हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पुतिन का यह भी कहना है कि उन्हें नहीं पता कि रूस कब कुर्स्क क्षेत्र पर नियंत्रण हासिल करेगा, जहां इस साल की शुरुआत में यूक्रेनी सेना के आने के बाद से लड़ाई जारी है। उन्होंने कहा कि पुतिन ने साथ ही इज़राइल द्वारा सीरियाई क्षेत्र पर कब्ज़ा करने की निंदा की है और कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि इज़राइल किसी समय सीरिया छोड़ देगा। उन्होंने कहा कि पुतिन ने यह भी कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि तुर्किये और कुर्द लड़ाकों के बीच कोई झड़प नहीं होगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा पुतिन का कहना है कि रूस और चीन के बीच संबंध पहले से कहीं अधिक घनिष्ठ हैं। उन्होंने कहा कि रूस और चीन अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने कार्यों का समन्वय कर रहे हैं और वह ऐसा करना जारी रखेंगे।
प्रश्न-2. भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों की बीजिंग में हो रही वार्ता क्या संदेश दे रही है?
उत्तर- यह वार्ता बेहद सफल रही है। उन्होंने कहा कि भारत ने चीन के साथ सीमा विवाद के निष्पक्ष, उचित और परस्पर स्वीकार्य समाधान पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, नदी से संबंधित आंकड़ों को साझा करने और सीमा व्यापार सहित सीमा पार सहयोग के लिए सकारात्मक दिशा पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापक वार्ता की। उन्होंने कहा कि हालांकि, विशेष प्रतिनिधि (एसआर) स्तर की 23वीं वार्ता के संबंध में भारत के बयान में छह सूत्री सहमति का उल्लेख नहीं किया गया है जिसका वार्ता के अंत में चीनी पक्ष द्वारा जारी बयान में जिक्र किया गया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि दोनों पक्षों ने जमीनी स्तर पर शांतिपूर्ण स्थिति सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि सीमा पर मुद्दे द्विपक्षीय संबंधों के सामान्य विकास में बाधा न बनें। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय ने कहा है कि डोभाल और वांग क्षेत्रीय और वैश्विक शांति एवं समृद्धि के लिए स्थिर और सौहार्दपूर्ण भारत-चीन संबंधों की महत्ता पर सहमत हुए हैं। उन्होंने कहा कि विशेष प्रतिनिधि वार्ता तंत्र को पुनर्जीवित करने का निर्णय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 23 अक्टूबर को कज़ान में हुई बैठक में लिया गया था। इसके दो दिन पहले ही भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख में डेमचोक और देपसांग में सेनाओं की वापसी के लिए समझौता किया था, जिससे क्षेत्र में चार साल से अधिक समय से जारी सीमा गतिरोध प्रभावी रूप से समाप्त हो गया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि एसआर ने सीमा मुद्दे के समाधान के लिए निष्पक्ष, उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य ढांचे की मांग करते हुए समग्र द्विपक्षीय संबंधों के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को बनाए रखने के महत्व को दोहराया और इस प्रक्रिया में और अधिक जीवंतता लाने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि एसआर वार्ता पांच साल के अंतराल के बाद हुई। एसआर वार्ता का पिछला दौर दिसंबर 2019 में नयी दिल्ली में आयोजित किया गया था। उन्होंने कहा कि वार्ता के लिए भारत के विशेष प्रतिनिधि एनएसए डोभाल थे जबकि चीनी पक्ष का नेतृत्व विदेश मंत्री वांग ने किया, जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य भी हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने विस्तृत बयान में कहा है कि डोभाल और वांग ने अक्टूबर के सैनिकों को पीछे हटाने के समझौते के कार्यान्वयन की सकारात्मक पुष्टि की, जिसके परिणामस्वरूप प्रासंगिक क्षेत्रों में गश्त संबंधी गतिविधियां बहाल हुई हैं। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर चीन की विज्ञप्ति में कहा गया है कि डोभाल और वांग यी ने विशेष प्रतिनिधि वार्ता के दौरान सार्थक चर्चा की और छह सूत्री आम सहमति पर पहुंचे, जिनमें सीमाओं पर शांति बनाए रखने और संबंधों के स्वस्थ एवं स्थिर विकास को बढ़ावा देने के लिए आगे भी कदम उठाना शामिल है। उन्होंने कहा कि चीन की विज्ञप्ति के मुताबिक पांच वर्षों के अंतराल के बाद हुई पहली बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने सीमा मुद्दों पर दोनों देशों के बीच निकले समाधान का सकारात्मक मूल्यांकन किया तथा दोहराया कि कार्यान्वयन जारी रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि विज्ञप्ति के मुताबिक दोनों पदाधिकारियों का मानना था कि सीमा मुद्दे को द्विपक्षीय संबंधों की समग्र स्थिति के परिप्रेक्ष्य में उचित तरीके से संभाला जाना चाहिए, ताकि संबंधों के विकास पर इसका असर न पड़े। उन्होंने कहा कि इसमें कहा गया है कि दोनों पक्ष सीमा क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने तथा द्विपक्षीय संबंधों के स्वस्थ और स्थिर विकास को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने पर सहमत हुए।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि विज्ञप्ति के मुताबिक दोनों पक्षों ने 2005 में सीमा मुद्दे के समाधान के लिए दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों द्वारा सहमत राजनीतिक दिशानिर्देशों के अनुसार सीमा मुद्दे का निष्पक्ष, उचित और परस्पर स्वीकार्य समाधान तलाशने तथा इस प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा कि इसमें कहा गया है कि दोनों पक्षों ने सीमा की स्थिति का आकलन किया और सीमा क्षेत्र में प्रबंधन और नियंत्रण नियमों को और अधिक परिष्कृत करने, विश्वास बहाली के उपायों को मजबूत करने तथा सीमा पर स्थायी शांति और स्थिरता हासिल करने पर सहमति जताई। उन्होंने कहा कि इसमें कहा गया है कि दोनों देश सीमा पार आदान-प्रदान और सहयोग को मजबूत करने तथा तिब्बत, चीन में भारतीय तीर्थयात्रियों की यात्रा फिर से शुरू करने, सीमा पार नदी सहयोग और नाथूला सीमा व्यापार को बढ़ावा देने पर सहमत हुए।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर चीन के विदेश मंत्रालय के बयान के मुताबिक दोनों पक्षों ने विशेष प्रतिनिधियों के तंत्र को और मजबूत करने, कूटनीतिक और सैन्य वार्ता समन्वय और सहयोग को बढ़ाने तथा विशेष प्रतिनिधियों की बैठक में लिए गए निर्णयों के अनुवर्ती कार्यान्वयन में चीन-भारत सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) को अच्छा काम करने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने अगले वर्ष भारत में विशेष प्रतिनिधियों की बैठक का एक नया दौर आयोजित करने पर सहमति जताई और विशिष्ट समय का निर्धारण राजनयिक माध्यमों से किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, डोभाल और वांग ने आपसी हितों के द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। उन्होंने कहा कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने, सीमा पार नदियों और सीमा व्यापार पर आंकड़े साझा करने सहित सीमा पार सहयोग और आदान-प्रदान के लिए सकारात्मक चर्चा की। उन्होंने कहा कि डोभाल ने वार्ता के बाद चीन के उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की। डोभाल ने वांग को अगले दौर की विशेष प्रतिनिधि बैठक के लिए पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तिथि पर भारत आने का निमंत्रण भी दिया है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि वार्ता का जो दौर शुरू हुआ है वह शांति को स्थायित्व प्रदान करने में अहम भूमिका निभाएगा।
प्रश्न-3. श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा किन मायनों में उपयोगी रही?
उत्तर- यह यात्रा दोनों देशों के लिए लाभप्रद रही। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात यह है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुर कुमार दिसानायक ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को स्पष्ट रूप से आश्वासन दिया है कि द्वीप राष्ट्र की धरती का भारत के हितों के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह आश्वासन श्रीलंका पर प्रभाव बढ़ाने के चीन के प्रयासों पर भारत की चिंताओं के बीच आया है। उन्होंने कहा कि भारत की तीन दिवसीय यात्रा पर आए दिसानायक ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ व्यापक बातचीत की। इस दौरान भारत और श्रीलंका ने अपनी साझेदारी को विस्तार देने के लिए एक रक्षा सहयोग समझौते को जल्द अंतिम रूप देने का संकल्प लिया और बिजली ग्रिड कनेक्टिविटी एवं बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन स्थापित कर ऊर्जा संबंधों को मजबूत करने का निर्णय भी लिया। उन्होंने कहा कि मीडिया को जारी किये गये अपने बयान में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वह और श्रीलंकाई राष्ट्रपति इस बात पर ‘‘पूर्ण सहमत’’ हैं कि दोनों देशों के सुरक्षा हित आपस में जुड़े हैं और इस क्रम में सुरक्षा सहयोग समझौते को शीघ्र अंतिम रूप देने का निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि मोदी ने दिसानायक को आर्थिक सुधार और स्थिरता का प्रयास कर रहे द्वीप राष्ट्र को भारत के लगातार समर्थन से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि दो साल पहले श्रीलंका को बड़े पैमाने पर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था और भारत ने उसे चार अरब अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता दी थी। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने अधिकारियों को ऋण पुनर्गठन पर द्विपक्षीय समझौता ज्ञापन पर चर्चा को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मोदी से मुलाकात के दौरान श्रीलंकाई नेता ने अपनी टिप्पणी में कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री ने श्रीलंका की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की हमेशा रक्षा करने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि श्रीलंकाई नेता ने यह भी कहा कि मैंने भी प्रधानमंत्री को यह आश्वासन दिया है कि हम अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी ऐसे काम के लिए नहीं होने देंगे जो भारत के हितों के लिए हानिकारक हो। उन्होंने कहा कि दिसानायक ने कहा है कि भारत के साथ सहयोग निश्चित रूप से फलेगा-फूलेगा। और मैं भारत के लिए हमारे निरंतर समर्थन का आश्वासन देना चाहता हूं। उन्होंने कहा कि साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की है कि दोनों देशों के बीच संपर्क सुविधा बेहतर करने के लिए रामेश्वरम और तलाईमनार के बीच नौका सेवा शुरू की जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि हमने संयुक्त रूप से निर्णय लिया है कि नागपत्तनम-कांकेसंथुराई नौका सेवा की सफल शुरुआत के बाद हम रामेश्वरम और तलाईमन्नार के बीच भी नौका सेवा शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि वार्ता में मछुआरों से संबंधित मुद्दे पर भी चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि हमने मछुआरों की आजीविका से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा की। हम इस बात पर सहमत हैं कि हमें इस मामले में मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने तमिलों के मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा कि भारत को उम्मीद है कि श्रीलंका सरकार समुदाय की आकांक्षाओं को पूरा करेगी।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वार्ता के दौरान दिसानायक ने आपातकालीन वित्तपोषण और चार अरब अमेरिकी डॉलर के विदेशी मुद्रा समर्थन सहित ‘‘अद्वितीय एवं बहु-आयामी’’ सहायता के माध्यम से श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में भारत के समर्थन के लिए मोदी को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने कहा कि हमने लगभग दो साल पहले एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना किया था और भारत ने उस दलदल से बाहर निकलने में हमारा भरपूर समर्थन किया। इसके बाद भी भारत ने हमारी काफी मदद की, खासकर ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया में।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि साथ ही भारत और श्रीलंका ने अपनी साझेदारी को विस्तार देने के लिए भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण अपनाते हुए रक्षा सहयोग समझौता को जल्द अंतिम रूप देने का संकल्प लिया है और बिजली ग्रिड कनेक्टिविटी एवं बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन स्थापित करके ऊर्जा संबंधों को मजबूत करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के साथ भी ‘‘सार्थक’’ वार्ता की। उन्होंने कहा कि साथ ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी कहा है कि भारत विश्वसनीय साझेदार के रूप में श्रीलंका के सतत आर्थिक विकास को समर्थन देना जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुर कुमार दिसानायक और उनके प्रतिनिधिमंडल का राष्ट्रपति भवन में स्वागत करते हुए मुर्मू ने हाल में हुए राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव में दिसानायक की जीत के लिए उन्हें बधाई भी दी।
प्रश्न-4. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुवैत दौरे का क्या रणनीतिक महत्व है?
उत्तर- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21-22 दिसंबर को कुवैत का दौरा करेंगे, जो 43 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की खाड़ी देश की पहली यात्रा होगी। उन्होंने कहा कि मोदी के इस महीने सऊदी अरब की यात्रा पर जाने की भी उम्मीद थी, लेकिन तारीखों को अंतिम रूप देने में देरी के कारण अब यह यात्रा अगले साल होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि भारत के लिए कच्चे तेल और एलपीजी का एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता और दस लाख की आबादी वाले भारतीय समुदाय का घर, कुवैत एकमात्र खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देश है जहां मोदी ने अभी तक दौरा नहीं किया है। उन्होंने कहा कि कुवैत के पास वर्तमान में जीसीसी की अध्यक्षता है। उन्होंने कहा कि कुवैत के विदेश मंत्री अब्दुल्ला अली अल-याहया ने इस महीने की शुरुआत में भारत का दौरा किया था और मोदी से मुलाकात कर उन्हें देश का दौरा करने का निमंत्रण दिया था। उन्होंने कहा कि इसके अलावा सितंबर में न्यूयॉर्क में कुवैत के क्राउन प्रिंस शेख सबा खालिद अल-हमद अल-सबा के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हुए मोदी ने द्विपक्षीय संबंधों में बढ़ती गति पर संतोष व्यक्त किया था। उन्होंने कहा कि मोदी ने भारत दौरे पर आए विदेश मंत्री के साथ पश्चिम एशिया की स्थिति पर चर्चा की थी और क्षेत्र में जल्द शांति, सुरक्षा और स्थिरता की वापसी के लिए समर्थन व्यक्त किया था। उन्होंने कहा कि कुवैत ने 1 दिसंबर को 6 सदस्यीय जीसीसी देशों के एक शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी, जिसमें उसने तत्काल युद्धविराम का आह्वान किया था और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से निर्दोष नागरिकों के लिए अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा प्रदान करने और "सुरक्षित गलियारे खोलने और तत्काल आगमन" सुनिश्चित करने का आग्रह किया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस सप्ताह के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुवैत यात्रा खाड़ी क्षेत्र के साथ भारत के विस्तारित राजनयिक जुड़ाव में आखिरी अंतर को पाट देगी जो देश की सुरक्षा और समृद्धि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि उनकी यात्रा दमिश्क में असद राजवंश के पतन के तुरंत बाद हो रही है, जिसके परिणामों में मध्य पूर्व में क्षेत्रीय व्यवस्था का आमूल-चूल पुनर्गठन शामिल हो सकता है। उन्होंने कहा कि जब अगस्त 1990 में इराकी नेता सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर आक्रमण किया और कब्जा कर लिया, तो दिल्ली में गठबंधन सरकार इसकी स्पष्ट रूप से निंदा करने में सक्षम नहीं थी कि सद्दाम हुसैन ने कुवैत को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मिटा देने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा कि लेकिन मोदी के नेतृत्व में भारत-कुवैत संबंध नये जोश के साथ आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कुवैत में विदेशी कर्मियों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है।
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