Shaurya Path: Bangladesh, India-Maldives, Iran-Israel और Russia-Ukraine संबंधी मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

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बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने एक सवाल के जवाब में कहा कि इन महीनों के बीच मुइज्जू को यह भी समझ आ गया है कि चीन जो मदद दे रहा है वह भारी कर्ज की तरह है जबकि भारत जो मदद दे रहा है वह पड़ोसी देशों के प्रति उसकी लचीली नीति की बदौलत है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह बांग्लादेश और अमेरिका के संबंधों, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मालदीव यात्रा, ईरान-इजराइल तनाव और रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े मुद्दों पर बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न-1. एक समाचार रिपोर्ट में शेख हसीना के हवाले से दावा किया गया कि उन्होंने अमेरिका को सेंट मार्टिन द्वीप नहीं दिया इसलिए उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया गया। हालांकि इस दावे की सत्यता प्रमाणित नहीं हुई है लेकिन यह तो बताया ही जाता है कि सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिका की नजर पहले से है। हम यह जानना चाहते हैं कि सेंट मार्टिन द्वीप का अमेरिका के लिए क्या रणनीतिक महत्व है?

उत्तर- सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिका की नजर पहले से है। अमेरिका जानता है कि यहां से भारत और चीन दोनों पर ही नजर रखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि अमेरिका इस क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग की बात करता है लेकिन सेंट मार्टिन द्वीप पर उसकी नजर बने रहना दर्शाता है कि वह इस क्षेत्र में आकर भारत पर भी नियंत्रण करना चाहता है। उन्होंने कहा कि शेख हसीना के हवाले से जो दावा किया गया था उसकी सत्यता भले प्रमाणित नहीं हुई हो लेकिन यह तथ्य तो सभी जानते ही हैं कि अमेरिका सेंट मार्टिन द्वीप पर अपना सैन्य बेस बनाना चाहता है।

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प्रश्न-2. भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हाल की मालदीव यात्रा काफी सफल रही। आखिर दोनों देशों के संबंधों में आया तनाव यकायत दूर कैसे होता नजर आ रहा है?

उत्तर- गत दिसम्बर से भारत और मालदीव के संबंधों में जो तनाव आया था वह काफी हद तक कम होता दिख रहा है। उन्होंने कहा कि शुरू में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को लगा कि चीन के समर्थन से वह अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे। लेकिन इन छह-सात महीनों में मुइज्जू को समझ आ गया है कि भारत और भारतीयों की मदद के बिना काम चलने वाला नहीं हैं। उन्होंने कहा कि भारतीयों ने बॉयकॉट मालदीव अभियान चलाकर मालदीव की पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुँचाया है। उन्होंने कहा कि मालदीव के होटल खाली पड़े हैं, टैक्सी वाले खाली खड़े हैं और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग भी खाली बैठे हैं इसलिए वहां की सरकार पर दबाव पड़ रहा था कि वह भारत से अपने संबंध सुधारे।

बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इन महीनों के बीच मुइज्जू को यह भी समझ आ गया है कि चीन जो मदद दे रहा है वह भारी कर्ज की तरह है जबकि भारत जो मदद दे रहा है वह पड़ोसी देशों के प्रति उसकी लचीली नीति की बदौलत है। उन्होंने कहा कि यही कारण था कि जब भारत में चुनावों के बाद नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में मुइज्जू को शामिल होने का न्यौता दिया गया था तो वह भागे भागे चले आये थे। उन्होंने कहा कि इसके अलावा मालदीव के एक मंत्री भी हाल ही में भारत आये थे और दोनों देशों ने तमाम मुद्दों का हल निकालने के लिए जो फोरम बनाया है उसकी बैठक भी हाल ही में दिल्ली में हुई थी जिसके बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर मालदीव गये।

बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत और मालदीव के संबंध बहुत गहरे हैं और जब जब वहां की सरकार या जनता को जरूरत पड़ी है तो नई दिल्ली ने पूरा साथ दिया है। उन्होंने कहा कि मुइज्जू भले भारत से नाराजगी जता रहे थे और भारत को कभी अपना सैन्य दल वापस बुलाने तो कभी और कुछ करने को कह रहे थे लेकिन दिल्ली ने सब कुछ शांत स्वभाव से किया और सही समय का इंतजार किया। उन्होंने कहा कि अब जब मुइज्जू को बात समझ आ गयी है तो वहां का विपक्ष भी इसका स्वागत कर रहा है। उन्होंने कहा कि मालदीव के मुख्य विपक्षी दल मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी ने राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अपनी भारत नीति में ‘‘अचानक किए गए बदलाव’’ का स्वागत करते हुए कहा है कि माले इस बात को लेकर हमेशा आश्वस्त रहा है कि देश पर जब भी संकट आएगा और वह मदद के लिए पुकारेगा, तो नई दिल्ली सबसे पहले सहायता करेगा।

बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी अपनी मालदीव यात्रा के दौरान स्पष्ट कर दिया था कि मालदीव हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख साझेदार है तथा दोनों देश अपने सहयोग को आधुनिक साझेदारी में बदलने की आकांक्षा रखते हैं। उन्होंने कहा कि भारत मालदीव में प्रभावशाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं पर समान जोर देता है। उन्होंने कहा कि भारत वहां पहले से ही 65 परियोजनाओं में भागीदारी कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत अपने मालदीव के मित्रों की उभरती जरूरतों और प्राथमिकताओं के प्रति जागरूक है तथा दोनों सरकारें उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप समाधान प्रदान करने का प्रयास करती हैं।

प्रश्न-3. ईरान चाह कर भी इजराइल पर हमला करने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रहा है? साथ ही इजराइल जिस तरह आक्रामकता से गाजा पर हमले बढ़ा रहा है क्या उसको देखते हुए संघर्षविराम की सभी संभावनाएं क्षीण हो चुकी हैं?

उत्तर- दरअसल ईरान देख रहा है कि अमेरिका ने इजराइल पर अपना सुरक्षा कवच लगा दिया है ऐसे में यदि कोई हमला किया जाता है तो उसके विफल होने के ही आसार हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा जिस अंदाज में अमेरिका और इजराइल मिलकर ईरान को चेतावनी दे रहे हैं उससे तेहरान हिला हुआ है। उन्होंने कहा कि ईरान की ओर से पाले जा रहे आतंकी गुटों ने भी लगता है कि चुप्पी साध ली है। उन्होंने कहा कि एक अमेरिकी अधिकारी ने चेतावनी दी है कि अगर ईरान हमास नेता इस्माइल हानिये की हत्या के जवाब में इजरायल पर हमला करता है तो उसे "प्रलयकारी" परिणाम भुगतने होंगे। उन्होंने कहा कि अमेरिका साफ कर चुका है कि ईरान का हमला गाजा युद्धविराम की गति को पटरी से उतारने के बराबर होगा।

बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडन भी कह चुके हैं कि कतर में दो दिनों की वार्ता के बाद युद्धविराम के आसार लग रहे हैं इसलिए किसी को हमले से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि बाइडन ने जिस लहजे में यह बात कही उसमें चेतावनी थी कि यदि अमेरिका और अन्य मध्यस्थों के प्रयासों को विफल करने का प्रयास किया गया तो उसके गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने कहा कि ईरान ने तेहरान में 31 जुलाई को हुए हमले के जवाब में इज़राइल को चेतावनी दी है। लेकिन हमास नेता की मौत की जिम्मेदारी अब तक इजराइल ने नहीं ली है। उन्होंने कहा कि हालांकि यह बात भी है कि जिस तरह का हमला ईरान में हुआ था वह अकेले इजराइल नहीं कर सकता, उसमें अमेरिका और इजराइन दोनों का ही हाथ हो सकता है।

बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर इज़रायली विदेश मंत्री इज़रायल काट्ज़ भी कह चुके हैं कि अगर इस्लामी गणतंत्र इज़रायल पर हमला करता है तो उन्हें ईरान के अंदर "महत्वपूर्ण लक्ष्यों पर हमला करने" में अन्य देशों से भी समर्थन मिलने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि ईरान जानता है कि यदि उसने हमला किया तो अमेरिका, इजराइल, फ्रांस और ब्रिटेन मिलकर जवाब दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि ईरान यह समझ गया है कि उसके किसी भी हमले से बचने और तगड़ा पलटवार करने की सारी तैयारी कर ली गयी है इसलिए वह चुप बैठा है।

प्रश्न-4. यूक्रेनी सैनिक अब रूस में घुस कर दुश्मन से लड़ रहे हैं। तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुके इस युद्ध में आये इस नये मोड़ को कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- जिस तरह यूक्रेन रूस को उसके घर में घुसकर मार रहा है उससे समूची दुनिया हैरान रह गयी है। यूक्रेन के सैनिक 6 अगस्त को घुसपैठ शुरू करने के बाद से अब तक रूस में 35 किमी (21 मील) तक घुस आए हैं। कीव का कहना है कि उसे रूसी भूमि पर कब्जा करने में कोई दिलचस्पी नहीं है और वह अपने सीमावर्ती क्षेत्रों को रूस से बचाने के लिए एक बफर जोन बना रहा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेनी सैनिक बड़े जोखिम के साथ आगे बढ़ रहे हैं और रूस को वापस अपने पैर जमाने से रोकना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन ने पिछले हफ्ते पश्चिमी रूसी क्षेत्र कुर्स्क में हजारों सैनिकों को तैनात किया। यूक्रेन ने अपने सैनिकों द्वारा जब्त किए गए शहरों में रूसी झंडे उतार दिए और पहली बार युद्ध में मास्को पर बढ़त बना ली।

बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन अपने उत्तर को रूसी हमलों से बचाने के लिए जब्त किए गए रूसी क्षेत्र को "बफर ज़ोन" के रूप में उपयोग करेगा। उन्होंने कहा कि कीव ने कुर्स्क के कब्जे वाले हिस्से में एक सैन्य कमांडेंट का कार्यालय स्थापित किया है। उन्होंने कहा कि कब्ज़ा किया गया क्षेत्र 1,150 वर्ग किमी से अधिक है। उन्होंने कहा कि कुर्स्क में यूक्रेन का लक्ष्य यह भी है कि डोनबास के पूर्वी यूक्रेनी क्षेत्र से रूसी सेना को भगाया जाये जहां उसने लगातार बढ़त हासिल की है।

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बिग्रेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूस ने भी कहा है कि वह सीमा सुरक्षा बढ़ाएगा, कमान और नियंत्रण में सुधार करेगा और कुर्स्क में यूक्रेनी घुसपैठ के बाद अतिरिक्त बल भेजेगा। इसके साथ ही रूस ने यूक्रेन द्वारा पश्चिमी हथियारों के इस्तेमाल के खिलाफ भी चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए यह हमला बड़ा झटका तो है ही साथ ही, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से रूस पर सबसे बड़ा आक्रमण है जिसने रूसी सेनाओं की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया है। उन्होंने कहा कि पुतिन ने कहा कि रूस हमले का उचित जवाब देगा लेकिन पहला काम रूसी क्षेत्र से सभी यूक्रेनी सैनिकों को बाहर निकालना है। 

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