Prabhasakshi NewsRoom: अगले महीने शुरू हो सकता है देश में जनगणना का काम, Congress बोली- जाति की भी गणना हो
विपक्ष के अलावा सरकार के समर्थक और विरोधी अर्थशास्त्रियों ने भी जनगणना में देरी की आलोचना की है क्योंकि इससे आर्थिक डेटा, मुद्रास्फीति और नौकरियों के अनुमान सहित कई अन्य प्रकार का सही डाटा उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
भारत में जनगणना का कार्य आखिरकार अगले माह से शुरू होने के आसार हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक जनगणना का काम सितंबर से शुरू हो सकता है। हम आपको बता दें कि भारत में हर दस वर्ष में जनगणना का कार्य कराया जाता है। इस लिहाज से पिछली जनगणना 2021 में होनी थी लेकिन कोरोना महामारी के चलते इसे टाल दिया गया था। अब बताया जा रहा है कि अगले माह से जनगणना का कार्य शुरू हो सकता है जिसे पूरा होने में लगभग 18 महीने का समय लगेगा। हम आपको बता दें कि विपक्ष मोदी सरकार को इस बात के लिए घेर रहा है कि वह जनगणना नहीं करा पा रही है। विपक्ष यह भी कह रहा है कि जब भी जनगणना हो वह जाति आधारित गणना हो।
विपक्ष के अलावा सरकार के समर्थक और विरोधी अर्थशास्त्रियों ने भी जनगणना में देरी की आलोचना की है क्योंकि इससे आर्थिक डेटा, मुद्रास्फीति और नौकरियों के अनुमान सहित कई अन्य प्रकार का सही डाटा उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। हम आपको बता दें कि वर्तमान में सरकारी योजनाएं 2011 में की गयी अंतिम जनगणना के आधार पर चल रही हैं। जनगणना का कार्य केंद्रीय गृह मंत्रालय कराता है और सांख्यिकी तथा कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय इसकी निगरानी और समयसीमा तय करता है। बताया जा रहा है कि जनगणना कराने के फैसले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यालय से हरी झंडी मिलने का इंतजार है। वैसे पिछले साल जारी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने पिछले साल दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन को पीछे छोड़ दिया था।
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वैसे जनगणना की बात अभी मीडिया रिपोर्टों के हवाले से ही बाहर आई है। सरकार ने इन रिपोर्टों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई है। इस बीच, कांग्रेस ने जाति आधारित जनगणना की मांग एक बार फिर उठाते हुए कहा है कि जनगणना की प्रश्नावली में एक अतिरिक्त कॉलम जोड़कर अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) का जातिवार आंकड़ा एकत्र किया जा सकता है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि ऐसा होने से जाति जनगणना की व्यापक मांग पूरी होगी और सकारात्मक कार्य वाले कार्यक्रमों को और मजबूत आधार मिलेगा।
रमेश ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘भारत में हर 10 साल में नियमित रूप से जनगणना होती रही है। पिछली जनगणना 2021 में होनी थी और 2021 की जनगणना न होने का मतलब है कि आर्थिक योजना और सामाजिक न्याय के कार्यक्रमों के लिए जरूरी महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र नहीं की जा सकी है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013/पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 12 करोड़ से ज़्यादा भारतीयों को उनका कानूनी हक नहीं मिल पा रहा है।’’ उन्होंने कहा, "अब ऐसी खबरें हैं कि केंद्र सरकार अगले कुछ महीनों में लंबे समय से लंबित और अस्वीकार्य रूप से विलंबित इस जनगणना को करवा सकती है।" रमेश ने कहा, ‘‘1951 से हर जनगणना में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की आबादी के बारे में जातिवार आंकड़ा एकत्र किया जाता रहा है। बिना किसी परेशानी के सिर्फ एक अतिरिक्त कॉलम जोड़कर जनगणना की प्रश्नावली में ओबीसी आबादी के बारे में भी जातिवार आंकड़ा एकत्र किया जा सकता है।" उन्होंने कहा कि ऐसा होने से जाति संबंधी जनगणना की व्यापक मांग पूरी होगी और सकारात्मक कार्य वाले कार्यक्रमों को और मजबूत आधार मिलेगा। रमेश ने कहा कि जनगणना संविधान की सातवीं अनुसूची के क्रमांक 69 में सूचीबद्ध है और यह केंद्रीय सूची के अंतर्गत आता है जिसका अर्थ है कि जनगणना कराना केवल केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है।
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