अल्पसंख्यक वोट के सहारे TMC, बंगाल में BJP का बढ़ता 'वोट स्विंग' कितनी बड़ी चुनौती?
भाजपा और तृणमूल के बीच कांटे की टक्कर में गंगा के मैदानी इलाकों के साथ ही जंगलमहल इलाका, उत्तर बंगाल और दक्षिण बंगाल का मतुआ बहुल इलाका अहम भूमिका निभाएगा। मतुआ वोट बैंक को मजबूत करने के लिए ही भाजपा ने चुनाव से ठीक पहले नागरिकता (संशोधन) कानून लागू करने का फैसला किया है। राज्य में करीब एक करोड़ आबादी वाला मतुआ समुदाय 5 सीटों (बशीरहाट, बनगांव, कृष्णनगर, जलपाईगुड़ी और अलीपुर) पर असर डालता है क्योंकि, यहां इनकी आबादी 25-30% तक है।
पूर्वी मिदनापुर में एनआईए टीम पर हमले के बाद लोकसभा चुनाव से पहले बंगाल की राजनीति गरमा गई है। इस घटना पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में ममता बनर्जी की टीएमसी सरकार पर "जबरन वसूली करने वालों और भ्रष्ट नेताओं को बचाने का आरोप लगाया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने तुरंत प्रतिक्रिया दी क्योंकि उन्होंने आरोप लगाया कि संघीय एजेंसियां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले केंद्र के विस्तारित हथियार के रूप में काम कर रही हैं।
सीएए का पड़ेगा प्रभाव?
भाजपा और तृणमूल के बीच कांटे की टक्कर में गंगा के मैदानी इलाकों के साथ ही जंगलमहल इलाका, उत्तर बंगाल और दक्षिण बंगाल का मतुआ बहुल इलाका अहम भूमिका निभाएगा। मतुआ वोट बैंक को मजबूत करने के लिए ही भाजपा ने चुनाव से ठीक पहले नागरिकता (संशोधन) कानून लागू करने का फैसला किया है। राज्य में करीब एक करोड़ आबादी वाला मतुआ समुदाय 5 सीटों (बशीरहाट, बनगांव, कृष्णनगर, जलपाईगुड़ी और अलीपुर) पर असर डालता है क्योंकि, यहां इनकी आबादी 25-30% तक है।
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सबसे ज्यादा सीटें जीतने का रिकॉर्ड टीएमसी के नाम
बंगाल में किसी एक लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने का रिकॉर्ड टीएमसी के नाम है। 2014 में 42 में से 34 सीटें जीती थीं। टीएमसी 2009 के लोकसभा चुनाव से लगातार सबसे ज्यादा सीटें जीत रही है। 2009 में 19 और 2019 में 22 सीटें जीतीं।
बीजेपी का 42 में से 26 सीटें जीतने का लक्ष्य
गंगा के मैदानी इलाके अपनी 16 सीटों के कारण काफी अहम हैं। यहां संगठन की मजबूती के बल पर टीएमसी भाजपा से आगे नजर आती है। उत्तर बंगाल में भी टीएमसी ने अपने पैरों तले की खिसकती जमीन बचाने के लिए आदिवासियों के लिए कई विकास योजनाएं शुरू की है। उधर, अबकी बार चार सौ पार के नारे के साथ मैदान में उतरी भाजपा ने राज्य की 42 में से कम से कम 26 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। टीएमसी ने भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश में 26 नए चेहरों को मैदान में उतारा है।
अल्पसंख्यक वोट के सहारे टीएमसी
टीएमसी अपने अल्पसंख्यक वोट बैंक को बचाने की कवायद में जुटी है। इसी वजह से उसने कांग्रेस और सीपीएम के साथ तालमेल की बजाय अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। मोटे अनुमान के मुताबिक, राज्य में इस तबके की आबादी 30% से ज्यादा है। पिछली बार अल्पसंख्यक वोटों के विभाजन के कारण भाजपा को उत्तर दिनाजपुर और मालदा जिलों की एक-एक सीट पर जीत मिली थी। टीएमसी का लक्ष्य अबकी इस बिखराव को रोकना है। हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी को शिक्षक भर्ती घोटाले और राशन घोटाले में तमाम मंत्रियों नेताओं के जेल में रहने का खामियाजा उठाना पड़ सकता है।
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2019 में किसे कितने वोट
टीएमसी 22 सीट 43.3%
बीजेपी 18 सीट 40.2%
कांग्रेस 2 सीट 5.61%
सीपीएम 0 सीट 6.28%
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