HC ने राज्य सरकार से शराबबंदी पर नीतिगत फैसला लेने को कहा
अदालत ने यह आदेश बागेश्वर जिले के गरुड़ के निवासी जोशी की जनहित याचिका पर दिया है। उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया था कि सरकारी संरक्षण में शराब की बिक्री से राज्य के लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है। इस सामाजिक बुराई से कई घर बर्बाद हो रहे हैं और शराब पीने की वजह से होने वाली मौतों, बीमारियों और दुर्घटनाओं के लिए किसी मुआवजे का प्रावधान नहीं है।
नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आबकारी कानून लागू करने के लिए छह महीने में नीति बनाने को कहा है जिसमें राज्य में शराबबंदी का प्रावधान है। याचिकाकर्ता डीके जोशी ने बताया कि मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार को गुरुवार को राज्य में चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी लागू करने का नीतिगत फैसला लेने का निर्देश दिया। उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से आबकारी कानून की धारा 37ए अनुपालन सुनिश्चत करने को कहा जिसमें शराबबंदी का प्रावधान है। साथ ही यह सुनिश्चित करने को कहा कि 21 साल से कम उम्र के लोगों को शराब की बिक्री नहीं हो।
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अदालत ने यह आदेश बागेश्वर जिले के गरुड़ के निवासी जोशी की जनहित याचिका पर दिया है। उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया था कि सरकारी संरक्षण में शराब की बिक्री से राज्य के लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है। इस सामाजिक बुराई से कई घर बर्बाद हो रहे हैं और शराब पीने की वजह से होने वाली मौतों, बीमारियों और दुर्घटनाओं के लिए किसी मुआवजे का प्रावधान नहीं है। याचिका के मुताबिक उत्तरप्रदेश सरकार ने 1978 में आबकारी कानून-1910 की धारा 37ए के जरिये संशोधन किया, लेकिन उत्तराखंड सरकार ने राज्य बनने के 19 साल बाद भी इसे लागू नहीं किया, न ही इस प्रावधान के तहत शराब के रोकथाम के लिए कोई कदम उठाया गया।
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इसके उलट राज्य सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए शराब की पंजीकृत दुकानों की संख्या बढ़ा रही है। आबकारी नीति-2019 जिलाधिकारी को विशेष अधिकार देता है कि कोई इलाका शराब से वंचित नहीं रहे। इस बीच सरकार ने अदालत को भरोसा दिया है कि 2002 में आबकारी नीति के तहत कई इलाकों में शराब पर रोक है और इसका अनुपालन किया जा रहा है। उदाहरण के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, चारधाम जैसे धार्मिक स्थानों पर शराब बिक्री पर रोक है।
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