साल 2017 में जब गुजरात विधानसभा चुनाव की तैयारियां अपने जोरो पर थी तो एक बयान आता है कि गुजरात का अगला मुख्यमंत्री भाजपा से नहीं बल्कि ठाकोर समाज से होगा। गुजरात की सियासत का वो नेता जिसने पहले तो दलगत राजनीति से अलग अपनी पहचान बनाई और फिर कांग्रेस की उंगली थाम विधानसभा के दरवाजे पर दस्तक दी। वो नाम है राधनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक अल्पेश ठाकोर का जिनके आज भाजपा में शामिल हो गए। अल्पेश ठाकोर ने कहा कि वो प्रधानमंत्री और उनके नेतृत्व से प्रभावित हुए है इसके चलते भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं। अल्पेश के भाजपा में शामिल होने और मंत्री पद मिलने की खबरें तो उनके कांग्रेस छोड़ने के बाद से ही आती रहीं। लेकिन अल्पेश का कहना है कि भाजपा उन्हें जो भी जिम्मेदारी देगी वो उसे निभाएंगे।
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पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो अक्सर उनके इस्तीफा देने और भाजपा में शामिल होने की खबरें आती रहती थीं। जब कांग्रेस में एक साथ 4 विधायकों ने अपना इस्तीफा दिया तो, अल्पेश ने भी मीडिया के सामने अपनी बात रखी और कहा कि मैं कांग्रेस से इस्तीफा नहीं दूंगा और संघर्ष का रास्ता चुनता हूं। लेकिन उसके कुछ ही दिन बाद अल्पेश ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया। अब आखिर ऐसी क्या वजह रही कि अल्पेश ठाकोर ने जिस संघर्ष का रास्ता चुना था वो एक महीने में ही हवा हो गई। लेकिन उस दौर में अल्पेश के भाजपा नेता शंकर चौधरी तो कभी गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी के घर बंद कमरे में भी मीटिंग की खबरें लगातार आती रहीं। जिसके बाद आज उनके औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल होने की पुष्टि उन्होंने खुद ही कर दी है।
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अल्पेश ठाकोर जिन्होंने कभी कहा था कि नरेंद्र मोदी एक खास तरह के 80 हजार रुपए किलो वाले मशरूम खाते हैं इसलिए वो इतने गोरे हो गए। इससे पहले अल्पेश की पहचान ओबीसी के नए उभरते युवा के रूप में की थी, लेकिन इसके बाद राधनपुर सीट के विधायक के रूप में जाने जाने लगे। उन्होंने नशाखोरी के खिलाफ अभियान चलाया। अल्पेश को पूरे गुजरात में शराबबंदी के कानून को सख्ती से लागू कराने की लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाता है। उन्होंने ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले ठाकोर समुदाय को संगठित करके आंदोलन शुरू किया था। अल्पेश ने ‘जनता रेड टीम’ बनाई और गैरकानूनी देसी शराब बनाने वालों के यहां छापेमारी शुरू कर दी। बता दें कि गुजरात में 22 से 24 फीसदी ठाकोर हैं। 2011 में अल्पेश ठाकोर ने ठाकोर सेना की स्थापना की। इसे बनाने का उद्देश्य गुजरात की अन्य पिछड़ी जातियों में शामिल ठाकोर समुदाय का उत्थान करना था। 28 सितंबर 2018 को गुजरात के हिम्मतनगर के एक गांव में ठाकोर समाज की 14 महीने की एक बच्ची के साथ बलात्कार हुआ और इस मामले में बिहार के एक युवक पर आरोप लगे। जिसके बाद देखते ही देखते यह विवाद ठाकोर समुदाय बनाम बिहारी का बन जाता है। जिसके बाद बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लोगों को निशाना बनाया जाता है और आरोप लगते हैं अल्पेश की ठाकोर सेना पर। जिसका असर कांग्रेस पार्टी पर भी पड़ता है और बिहार के सहप्रभारी पद से अल्पेश की छुट्टी हो जाती है।
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लेकिन सारे मामले के लगभग 10 महीने बाद अल्पेश कांग्रेस पार्टी से स्थायी रूप से छुट्टी लेकर भाजपा में शामिल हो गए। अब उन्हें विजय रूपाणी की कैबिनेट में भी शामिल करने की खबरें हैं। लेकिन अल्पेश ठाकोर की राजनीति पर नजर डालें तो उनके पिता खोड़ा जी ठाकोर अहमदाबाद से कांग्रेस के ग्रामीण जिला अध्यक्ष रहे हैं। इससे पहले खोड़ा जी भाजपा में शंकर सिंह वाघेला के साथ थे। लेकिन वाघेला ने जब भाजपा छोड़ी और कांग्रेस में शामिल हुए तो खोड़ा जी भी कांग्रेसी हो लिए। हालांकि शंकर सिंह वाघेला ने 2017 में जब कांग्रेस छोड़ी तो अल्पेश के पिता कांग्रेस में ही बने रहे। इससे पहले अल्पेश 2009 से 2012 तक कांग्रेस में थे। उसके बाद उन्होंने दलगत राजनीति से अलग अपनी पहचान बनाई। ओबीसी समाज को एकजुट किया।
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इन सब के बीच कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के सामने फिलहाल सबसे बड़ा चैलेंज मुश्किल मुक्त कांग्रेस हो गया है। कांग्रेस की मुश्किलों की फेहरिस्त भी बहुत लंबी है और दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। गुजरात की सियासत में करीब 52 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) बेताज बादशाह है। राज्य में 146 जातियां ओबीसी की कटेगरी में आती हैं। ओबीसी के युवा चेहरा माने जाने वाले अल्पेश ठाकोर को राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव से पहले उम्मीद के साथ गले लगाया था वही अब भाजपा में शामिल होकर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाने का काम करेंगे। ऐसे में कांग्रेस को गहरी सांस लेनी चाहिए और यह सोचना चाहिए कि लोगों को संगठित कैसे करना है?