Prajatantra: राजस्थान में कांग्रेस के लिए ये हैं पांच बड़ी चुनौतियां जो BJP को दे रही जीत का भरोसा
कई लोकलुभावन वादे करने और महंगाई को लेकर जनता के समक्ष कई बड़े कदम उठाने के बावजूद भी कांग्रेस के समक्ष कई बड़ी चुनौतियां हैं। आज हम आपको ऐसी पांच चुनौतियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने कांग्रेस के लिए सिर दर्द पैदा किया हुआ है और भाजपा को जीत का भरोसा दे रही हैं।
राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए शनिवार को वोट डाले जाएंगे। राजस्थान में 200 विधानसभा की सीटें हैं और यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। राजस्थान के पिछले दो दशक के इतिहास को देखें तो हर 5 साल में यहां सत्ता परिवर्तन होता रहा है। यही कारण है कि वर्तमान की कांग्रेस सरकार के समक्ष कई बड़ी चुनौतियां हैं तो दूसरी ओर भाजपा सत्ता में लौटने को लेकर पूरी तरीके से उत्साहित नजर आ रही है। कई लोकलुभावन वादे करने और महंगाई को लेकर जनता के समक्ष कई बड़े कदम उठाने के बावजूद भी कांग्रेस के समक्ष कई बड़ी चुनौतियां हैं। आज हम आपको ऐसी पांच चुनौतियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने कांग्रेस के लिए सिर दर्द पैदा किया हुआ है और भाजपा को जीत का भरोसा दे रही हैं।
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परीक्षा पेपर लीक
परीक्षा पेपर लीक का भूत कांग्रेस को परेशान कर रहा है। भाजपा लगातार इस मुद्दे को उठा रही है जिसकी वजह से युवाओं का पार्टी पर विश्वास बढ़ा है। पेपर लीक की घटनाओं में प्रभावी ढंग से निपटने में विफल रही गहलोत के नेतृत्व वाली वर्तमान कांग्रेस सरकार की आलोचना की गई है। इसका ज्वलंत उदाहरण शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा की भूमिका है। डोटासरा सहित कांग्रेस नेताओं पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी ने भाजपा को अपने लाभ के लिए स्थिति का फायदा उठाने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किया है। परीक्षा रद्द करने और गिरफ़्तारियाँ करने वाली पेपर लीक गाथा राज्य की शिक्षा प्रणाली पर बार-बार लगने वाला दाग बन गई है।
संगठनात्मक संरचना
राजस्थान में कांग्रेस संगठन 2018 की तरह मजबूत नजर नहीं आ रहा है। कई जगहों पर पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों की हाल में ही नियुक्ती हुई हैं। अधिकारियों के लिए खुद को ढालने और स्थापित करने के लिए बहुत कम समय मिला है। पार्टी के भीतर आंतरिक कलह ने मामले को और अधिक जटिल बना दिया है, जिससे एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। अपनी चुनावी संभावनाओं को बढ़ाने के लिए, कांग्रेस को तत्काल अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करना चाहिए, जिससे उसके नेताओं के बीच एकजुटता सुनिश्चित हो सके। हालांकि, चुनावी मैदान में बागी उम्मीदवारों ने भी कांग्रेस के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं।
सत्ता विरोधी लहर
गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। 2018 सत्ता विरोधी लहर का प्राथमिक कारण भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में सरकार की विफलता, बार-बार होने वाले परीक्षा पेपर लीक, महिलाओं के खिलाफ अपराध शामिल है। आलोचना कांग्रेस के आर्थिक प्रबंधन और बेरोजगारी, बढ़ती जीवनयापन लागत और कृषि संकट जैसी सामाजिक चिंताओं की कथित उपेक्षा तक फैली हुई है। यह असंतोष सत्ता विरोधी भावनाओं को तीव्र करता है, जिससे भाजपा को अधिक कुशल और उत्तरदायी शासन का वादा करने का अवसर मिलता है। कांग्रेस के भीतर आंतरिक कलह का लाभ उठाते हुए, भाजपा वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट मतदाताओं को प्रभावित करने के इरादे से, सत्ताधारी की विफलताओं पर जोर देती है।
अशोक गहलोत और सचिन पायलट फैक्टर
राजस्थान के राजनीतिक परिदृश्य में, सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में उभरे हैं, जो लगातार तीन बार इस पद पर रहे हैं। व्यापक पहुंच और मजबूत जन संपर्क के साथ-साथ एक अच्छी तरह से संरचित कार्यक्रम की विशेषता वाली गहलोत की नेतृत्व शैली, कांग्रेस को आगामी चुनावों में सत्ता के लिए एक सम्मोहक दावेदारी के लिए तैयार करती है। उनका नेतृत्व आधारशिला बन जाता है जिस पर पार्टी की आकांक्षाएं टिकी होती हैं। हालांकि, सचिन पायलट के साथ उनका लंबा चला टकराव पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। पार्टी भले ही एकजुट होकर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है लेकिन कहीं ना कहीं यह कांग्रेस को लगातार परेशान कर रही है। दोनों की ओर से फिलहाल कांग्रेस और गांधी परिवार को वोट देने की अपील की जा रही है। एक गतिशील और करिश्माई नेता पायलट, राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति बनकर उभरे हैं। उनकी गुर्जर समुदाय की जड़ें और ग्रामीण मुद्दों पर पकड़ इन क्षेत्रों में एक मजबूत समर्थन आधार स्थापित करती है। हालांकि, खबर यह है कि गुर्जर समुदाय अशोक गहलोत और कांग्रेस पर पायलट को धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं और इस बार खुलकर भाजपा के पक्ष में खड़े हैं।
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भाजपा का डैमेड कंट्रोल
राजस्थान चुनाव को लेकर भाजपा ने आखिरी चरणों में पूरी तरीके से डैमेज कंट्रोल कर लिया। पार्टी के अंदर कई गुट दिखाई दे रहे थे। हालांकि चुनावी मौसम में पार्टी ने सामूहिक नेतृत्व पर जोर देकर इसे कम करने की कोशिश की। साथ ही साथ कुछ सांसदों और केंद्रीय नेताओं को चुनावी मैदान में उतार दिया। पिछले दो दशक से राजस्थान में पार्टी का चेहरा रहीं वसुंधरा राजे को भी राजस्थान में भाजपा की ओर से प्रमुखता दी गई। ऐसे में उनके समर्थकों में भी उत्साह है। भाजपा के बड़े नेता चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या अमित शाह, सभी ने खुलकर वसुंधरा राजे की सराहना की। भाजपा ने पार्टी के भीतर उठने वाले बगावत के सुर को भी कम करने की कोशिश की और सभी को मना कर अपने साथ जोड़े रखा।
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