पहले समर्थन, फिर आलोचना, आखिर अखिलेश यादव को क्या संदेश देना चाहते हैं मायावती
मंगलवार को जिस तरीके से मायावती ने ट्वीट किया था, उसके बाद से मीडिया में इस बात की उम्मीद जगी थी कि बिहार की ही तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी महागठबंधन की कोशिश की जा सकती है। हालांकि, आज एक बार फिर से मायावती ने सपा को लेकर सख्त टिप्पणी कर दी है।
देश में कुछ ऐसे नेता हैं जिनके राजनीतिक चाल को समझ पाना बेहद मुश्किल है। उन्हीं नेताओं में से एक हैं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती। मायावती की उत्तर प्रदेश में थोड़ी राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई है। लेकिन वह अपनी सक्रियता को लगातार बनाए हुए हैं। मंगलवार को मायावती ने अखिलेश यादव के समर्थन में कुछ ट्वीट किए थे। तो वही आज यानी कि बुधवार को उन्होंने खुलकर समाजवादी पार्टी की आलोचना की है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मायावती अखिलेश यादव को क्या संदेश देना चाहती हैं? मंगलवार को जिस तरीके से मायावती ने ट्वीट किया था, उसके बाद से मीडिया में इस बात की उम्मीद जगी थी कि बिहार की ही तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी महागठबंधन की कोशिश की जा सकती है। हालांकि, आज एक बार फिर से मायावती ने सपा को लेकर सख्त टिप्पणी कर दी है।
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मायावती का ट्वीट
सबसे पहले जानते हैं कि आखिर आज और कल मायावती ने क्या ट्वीट किया था। आज की बात करें तो मायावती ने लिखा कि भाजपा की घोर जातिवादी, साम्प्रदायिक व जनहित-विरोधी नीतियों आदि के विरुद्ध उत्तर प्रदेश की सेक्युलर शक्तियों ने सपा को वोट देकर यहाँ प्रमुख विपक्षी पार्टी तो बना दिया, किन्तु यह पार्टी भाजपा को कड़ी टक्कर देने में विफल साबित होती हुई साफ दिख रही है, क्यों? उन्होंने आगे लिखा कि यही कारण है कि भाजपा सरकार को यूपी की करोड़ों जनता के हित व कल्याण के विरुद्ध पूरी तरह से निरंकुश व जनविरोधी सोच व कार्यशैली के साथ काम करने की छूट मिली हुई है। विधान सभा में भी भारी संख्या बल होने के बावजूद सरकार के विरुद्ध सपा काफी लाचार व कमजोर दिखती है, अति-चिन्तनीय।
मंगलवार का ट्वीट
मंगलवार को बसपा प्रमुख ने लिखा था कि विपक्षी पार्टियों को सरकार की जनविरोधी नीतियों व उसकी निरंकुशता तथा जुल्म-ज्यादती आदि को लेकर धरना-प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं देना भाजपा सरकार की नई तानाशाही प्रवृति हो गई है। साथ ही, बात-बात पर मुकदमे व लोगों की गिरफ्तारी एवं विरोध को कुचलने की बनी सरकारी धारणा अति-घातक। महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, बदहाल सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था आदि के प्रति यूपी सरकार की लापरवाही के विरुद्ध धरना-प्रदर्शन नहीं करने देने व उनपर दमन चक्र के पहले भाजपा जरूर सोचे कि विधानभवन के सामने बात-बात पर सड़क जाम करके आमजनजीवन ठप करने का उनका क्रूर इतिहास है।
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सियासी संकेत
दरअसल, मंगलवार को यह माना गया कि 2024 चुनाव से पहले विपक्षी एकजुटता के तहत मायावती और अखिलेश यादव एक साथ आ सकते हैं। इसमें कुछ और राजनीतिक दल प्रयास करेंगे। 2019 के चुनाव में अपने गिले-शिकवे भुलाकर मायावती और अखिलेश यादव एक साथ आए थे। हालांकि, इस चुनाव में दोनों को कुछ खास सफलता हाथ नहीं लगी थी। इस बार फिर से विपक्षी एकजुटता को मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, मायावती अखिलेश के साथ और अखिलेश के खिलाफ खुद को रख कर यह दिखाने की कोशिश कर रही हैं कि भले ही उनकी पार्टी के विधायकों की संख्या कम हुई है लेकिन उत्तर प्रदेश में उनका जनाधार बरकरार है। अखिलेश को यह भी संदेश देना चाहती हैं कि अगर हम आपके साथ आते भी हैं तो अपनी शर्त पर आएंगे।
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