Prabhasakshi Exit Poll: सवा दो महीने की देशव्यापी Chunav Yatra के दौरान की गयीं Ground Reports पर आधारित सटीक एग्जिट पोल

Prabhasakshi Exit Poll
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इस चुनाव में भी एक दूसरे पर हमले करने और एक दूसरे की शिकायत करने के लिए निर्वाचन आयोग के दफ्तर जाना राजनीतिक दलों की दिनचर्या रही। ईवीएम पर चुनाव के दौरान तो ज्यादा हमले नहीं हुए लेकिन देखना होगा कि क्या चुनाव परिणाम के बाद भी ईवीएम पर निशाना नहीं साधा जाता?

सातवें चरण का चुनाव संपन्न होते ही इस पृथ्वी के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की निर्वाचन प्रक्रिया से जुड़ा एक बड़ा काम संपन्न हुआ। देखा जाये तो कमोबेश शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए इस चुनाव के लिए भारतीय निर्वाचन आयोग सराहना का पात्र है। निर्वाचन प्रक्रिया में शामिल सभी अधिकारी, कर्मचारी, सुरक्षा बल और लोकतंत्र के इस महापर्व को सफल बनाने में किसी ना किसी प्रकार की सेवाएं प्रदान करने वाले लोग भी बधाई के पात्र हैं। बधाई के पात्र सभी राजनीतिक दल भी हैं जिन्होंने चुनाव में बढ़-चढ़कर भाग लिया और हमारे लोकतंत्र को मजबूत बनाया। हमारे मतदाता यानि भारत के भाग्य विधाता की इस चुनाव में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही क्योंकि उनके मतदान के बिना यह यज्ञ सफल नहीं हो पाता। हालांकि मतदान प्रतिशत चिंता का विषय रहा। सरकार और निर्वाचन आयोग को देखना होगा कि आगे इसको कैसे सुधारा जा सकता है। कम मतदान का एक प्रमुख कारण गर्मी का मौसम रहा। वैसे तो देश में चुनाव सितंबर-अक्टूबर में ही होते थे लेकिन अटलजी की ओर से 2004 में छह महीने पहले लोकसभा चुनाव करा दिये जाने के चलते अब यह अप्रैल-मई महीने में कराये जाते हैं। ऐसे में जबकि भारत 'एक देश, एक चुनाव' की ओर कदम बढ़ा रहा है तब इसका भी कुछ उपाय निकाला जाना चाहिए कि चुनाव इस प्रचंड गर्मी की बजाय थोड़ा पहले या बाद में कराये जायें।

इस चुनाव की एक और खास बात यह रही कि जहां पिछला चुनाव व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से जनता तक अपनी बात पहुँचा कर लड़ा गया था वहीं इस बार यूट्यूब चैनलों की भी बहुत बड़ी भूमिका रही। इसके अलावा इस चुनाव में मटन, मछली, मंगलसूत्र, पाकिस्तान, मुसलमान और मुजरा जैसे शब्द भी चुनाव प्रचार के केंद्र में बने रहे। इस चुनाव में भी नेताओं ने एक दूसरे पर निजी हमले करने में कोई गुरेज नहीं किया। इस चुनाव में भी एक दूसरे पर हमले करने और एक दूसरे की शिकायत करने के लिए निर्वाचन आयोग के दफ्तर जाना राजनीतिक दलों की दिनचर्या रही। ईवीएम पर चुनाव के दौरान तो ज्यादा हमले नहीं हुए लेकिन देखना होगा कि क्या चुनाव परिणाम के बाद भी ईवीएम नेताओं के निशाने पर आने से बच पाती है या नहीं?

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प्रधानमंत्री का प्रचार अभियान

जहां तक इस चुनाव के स्टार प्रचारकों की बात है तो आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे ज्यादा प्रभावी तरीके से प्रचार किया। उन्होंने बृहस्पतिवार को पंजाब के होशियारपुर में एक रैली के साथ अपने चुनावी अभियान का समापन किया। इसके साथ ही उन्होंने निर्वाचन आयोग द्वारा 16 मार्च को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा किए जाने के बाद से कुल 206 जनसभाएं और रोड शो किए। प्रधानमंत्री ने इससे पहले 2019 के चुनावों के दौरान लगभग 145 सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था। इस बार उन्होंने इससे ज्यादा चुनाव प्रचार किया और जनसभाओं को संबोधित किया। इस बार चुनाव प्रचार का समय 76 दिनों का था, जबकि पांच साल पहले चुनाव में 68 दिन थे। हम आपको बता दें कि निर्वाचन आयोग ने जब चुनावों की घोषणा की थी तो मोदी दक्षिण भारत के राजनीतिक दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने 15 मार्च से 17 मार्च के बीच तीन दिनों में दक्षिण भारत के सभी पांच राज्यों को कवर किया था। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की इस चुनाव में कोशिश तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने की है। इन तीनों राज्यों में 2019 के चुनाव में भाजपा एक भी सीट जीत नहीं सकी थी। बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी के इस धुआंधार चुनाव प्रचार का जनता पर कितना असर रहा, इसका पता तो 4 जून को ही लगेगा जब चुनाव परिणाम घोषित होंगे। वैसे देखा जाये तो करीब 73 साल की उम्र में मोदी ने जितनी सभाएं की और जो दूरी तय की, इस मामले में उनके नजदीक भी कोई नेता नहीं टिकता। वह अपनी पार्टी के लिए मतदाताओं को आकर्षित वाला सबसे बड़ा आकर्षण रहे। इस दौरान दिए गए भाषणों के लिए आलोचकों ने उनकी आलोचना भी की तो भाजपा के उत्साही समर्थकों का जोश भी बढ़ा। प्रधानमंत्री ने इस दौरान कुल 80 मीडिया साक्षात्कार भी दिए। मतदान शुरू होने के बाद से औसतन उन्होंने प्रतिदिन एक से अधिक साक्षात्कार दिए। मोदी बृहस्पतिवार शाम से एक जून तक ध्यान लगाने के लिए कन्याकुमारी में रहे। इस दौरान वह स्वामी विवेकानंद से जुड़े स्थल पर ध्यान कर रहे हैं।

विपक्ष का प्रचार अभियान

दूसरी ओर विपक्ष की बात करें तो आपको बता दें कि काग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान कुल 107 जनसभाओं और अन्य चुनावी कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। पार्टी के प्रमुख नेता के रूप में राहुल गांधी ने विभिन्न राज्यों में पार्टी के पक्ष में जनसभाएं की तथा रोड शो, संवाद कार्यक्रमों तथा 'न्याय सम्मेलन' और 'न्याय मंच' जैसे कई प्रमुख कार्यक्रमों में भाग लिया। राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के सातवें चरण के मतदान से पहले चुनाव प्रचार के आखिरी दिन पजाब में कांग्रेस के पक्ष में प्रचार किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के साथ कुछ जनसभाओं को संबोधित कर 'इंडिया' गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगे। राहुल गांधी ने इस बार केरल के वायनाड और उत्तर प्रदेश के रायबरेली लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लडा है। इसके अलावा, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने 55 दिन में 108 जनसभाए और रोड शो किये। प्रियंका गांधी वाड्रा ने 100 से अधिक मीडिया बाइट्स, एक टीवी इंटरव्यू और पाच प्रिंट इंटरव्यू भी दिए। उन्होंने कुल छह राज्यों एवं एक केंद्र शासित प्रदेश में प्रचार किया।

अन्य प्रमुख नेताओं का प्रचार अभियान

इसके अलावा जिन अन्य नेताओं की सभाओं में सर्वाधिक भीड उमड़ी उनमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्‌डा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, असम के मुख्यमंत्री हिमत बिस्व शर्मा, एआईएमआईएम के प्रमुख अस‌दुद्दीन ओवैसी, बसपा प्रमुख मायावती, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शामिल रही। देखना होगा कि चार जून को इनमें से कौन-सा नेता सबसे प्रभावी बन कर उभरता है।

एक्जिट पोल का परिणाम

जहां तक चुनाव परिणाम की बात है तो वह तो चार जून को ही पता चलेंगे लेकिन हमने अपनी सवा दो महीने तक चली चुनाव यात्रा के दौरान जनता से बातचीत के आधार पर जो संभावित चुनाव परिणाम का आकलन किया है यानि प्रभासाक्षी का जो एग्जिट पोल है वह देश में लगातार तीसरी बार मोदी सरकार बनने की भविष्यवाणी कर रहा है। हम आपको बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी हमने अपनी देशव्यापी कवरेज के बाद भाजपा की सीटों की संख्या 300 के पार होने का जो आकलन किया था वह सही सिद्ध हुआ था। 2024 के लिए भी हमारा अपना आकलन है कि भाजपा अपने बलबूते 315 से 335 के बीच और एनडीए के साथ 370 सीटों तक पहुँच सकती है। हम आपको बता दें कि भाजपा ने 2014 और 2019 के चुनावों में जिन राज्यों में शत प्रतिशत सीटें जीती थीं उनमें गुजरात को छोड़कर बाकी राज्यों में उसे एकाध सीट का नुकसान होने की संभावना है लेकिन पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु और पंजाब इस बार भाजपा की सीटों में इजाफा करने जा रहे हैं जिससे उसका आंकड़ा पिछली बार के 303 से बढ़कर इस बार 335 तक जा सकता है। तीसरी बार मोदी सरकार बनने में उत्तर प्रदेश सबसे प्रभावी भूमिका निभा रहा है क्योंकि यहां भाजपा और एनडीए मिलकर 65 सीटों से ज्यादा हासिल करता दिख रहा है। इसी प्रकार कांग्रेस पार्टी इस बार 50 सीटों का आंकड़ा पार कर रही है और इंडिया गठबंधन कुल मिलाकर 125 सीटों के आसपास रह सकता है। अन्य सीटें क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों के पास जाने की संभावना है।

-नीरज कुमार दुबे

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