अफगानिस्तान में फंसे अपने नागरिकों को लाने के लिए सरकार की मेहनत और कूटनीतिक प्रयासों के बारे में हर भारतीय को जानना चाहिए
भारत ने 16अगस्त को काबुल से 40 भारतीयों को विमान से दिल्ली लाकर लोगों को सुरक्षित लाने के जटिल मिशन की शुरुआत की थी। अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों को वायुसेना के विमान द्वारा लाया जा रहा है।
अफगानिस्तान के हालात पर भारत की नजर लगातार बनी हुई है। केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक में अफगानिस्तान में चलाए जा रहे मिशन एयरलिफ्ट की पूरी जानकारी दी। अफगानिस्तान में फंसे अब तक करीब 800 लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है। हरेक नागरिकों को वतन वापसी करवाना सरकार की पहली प्राथमिकता है। तालिबान और अफगानिस्तान को लेकर वेच एंड वॉच पॉलिसी भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से अपनाया जा रहा है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद काबुल से भारतीय नागरिकों और अफगान सहयोगियों को सुरक्षित लाने के भारत के जटिल मिशन का नाम ‘ऑपरेशन देवी शक्ति’ रखा गया है। भारत ने 16अगस्त को काबुल से 40 भारतीयों को विमान से दिल्ली लाकर लोगों को सुरक्षित लाने के जटिल मिशन की शुरुआत की थी। अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों को वायुसेना के विमान द्वारा लाया जा रहा है। देखने और सुनने में यह काफी आसान लगता है। लेकिन इसके पीछे भारत सरकार की कितनी मेहनत और कितनी कूटनीति है उसे भी हरेक हिन्दुस्तानी को जरूर जानना चाहिए।
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अमेरिका ने भी इस बात को माना है कि अफगानिस्तान से हवाईमार्ग से लोगों की निकासी इतिहास का सबसे कठिन अभियान है। दरअसल, अफगानिस्तान जाने के लिये हमारे पास कोई सीधा प्लेन रुट नही है। इसके लिये सबसे कम दूरी का रास्ता भारत के प़ोसी मुल्क पाकिस्तान से होकर गुजरता है। लेकिन हमेशा की तरह इसमें वो इसमें सबसे बड़ा अड़ंगा है। जिसकी वजह से भारतीय विमानों को लंबी दूरी तय कर ईरान से होकर गुजरना पड़ता है। लेकिन किसी भी देश की सीमा से गुजरने के लिए एयर स्पेस की मंजूरी लेनी जरूरी होती है। भारत सरकार ने ईरान से भारतीय वायुसेना के विमानों के लिए मंजूरी हासिल की। लेकिन अनुमति हासिल करने के बाद एक बड़ा पेंच ये था कि भारतीय प्लेन सीधे काबुल नहीं उतर सकता था। भारत के संबंध तालिबान के साथ कभी अच्छे नहीं रहे हैं।
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तालिबान पर भरोसा भी नहीं किया जा सकता था। इसलिए वायुसेना का प्लेन वहां ज्यादा देर तक खड़ा नहीं रखा जा सकता था। दूसरी तरफ काबुल एयर पोर्ट में मची अफरा-तफरी और भारी भीड़ के मद्देनजर भी यह संभव नहीं था कि भारतीय प्लेन वहाँ खड़े रहे। इसके लिए भारत ने एक रास्ता निकाला और उसने ताजिकिस्तान एयरपोर्ट का सहारा लिया। भारत सरकार के प्रयास पर वायुसेना के प्लेन को ताजिकिस्तान एयरपोर्ट के इस्तेमाल की अनुमति मिल गयी। अब भारत सरकार के पास दूसरी परेशानी भी थी कि भारतीयो को काबुल एयरपोर्ट तक कैसे पहुँचाया जाये? क्योंकि तालिबान के कब्जे के बाद तालिबान लड़ाकों ने जगह-जगह अपनी चेक पोस्ट खड़ी कर दी और वह काबुल एयरपोर्ट आने वाले हर व्यक्ति कि न केवल पूरी तलाशी लेते है बल्कि उसमें अड़ंगा भी लगाते हैं।
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भारतीय अधिकारियों ने इसका हल भी ढूढ़ निकाला। उन्होंने काबुल एयरपोर्ट के पास ही एक बड़े से गैराज का इंतजाम किया जहां वह लगभग 150-200 भारतीयों को एक साथ इकट्ठा कर सकते थे। अब रोजाना सबसे पहले भारतीयों को गैराज में इकठ्ठा किया जाता है। भारतीयों को इकठ्ठे करने का यह काम रात दिन चलता है। इसके लिये भारतीय अधिकारी खुद अपनी गाड़ी लेकर उस स्थान में पहुंचते है जहां पर भारतीय ठहरे होते है। उन्हें लेकर वह जगह-जगह बनी तालिबानी चेक पोस्टों पर माथा पच्ची करते हुए उन्हें काबुल एयरपोर्ट से सटे गैराज में पहुंचाते है। जब गैराज में पर्याप्त भारतीय इकट्ठे हो जाते हैं तो इसकी सूचना भारतीय अधिकारी कजाकिस्तान में खड़े भारतीय वायुसेना के अधिकारियों और काबुल एयरपोर्ट में तैनात अमेंरिकी अधिकारियों तक पहुचाते हैं। उल्लेखनीय है कि काबुल एयरपोर्ट का कंट्रोल और सिक्योरिटी कंट्रोल अमेरिकी सेना के हाथ में है। इसके बाद अमेरिकी सेना द्वारा भारत के प्लेन को उतरने के लिये क्लियरेन्स दी जाती है। तब भारतीय वायुसेना का प्लेन वहाँ से उड़कर काबुल पहुचता है, प्लेन की लैंडिंग होते-होते गैराज से सभी भारतीय अमेरिकी सेना की गाड़ी में एयरपोर्ट के अंदर पहुंच जाते हैं और लोगों को इसमें चढ़ा दिया जाता है।
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