निषिद्ध नहीं है धर्मांतरण, जबरन धर्म परिवर्तन के दावे की पुष्टि के लिए पर्याप्त सामग्री की है आवश्यकता: दिल्ली उच्च न्यायालय

Delhi High Court
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न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति तुषार राव गेदेला की पीठ ने कहा कि सबसे पहले यह कि धर्मांतरण निषिद्ध नहीं है। यह किसी व्यक्ति का अधिकार है कि वह कोई भी धर्म, अपने जन्म के धर्म, या जिस धर्म को वह चुनना चाहता है, उसे माने। यही वह स्वतंत्रता है, जो हमारा संविधान प्रदान करता है।

नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि जबरन धर्मांतरण के दावे की पुष्टि के लिये पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होनी चाहिए और यह सोशल मीडिया के आंकड़ों पर आधारित नहीं हो सकता, जहां छेड़छाड़ की गई तस्वीरों के उदाहरण हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि जबरन धर्मांतरण का मुद्दा व्यापक प्रभाव वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और वह याचिका पर कोई राय बनाने या सरकार को नोटिस जारी करने से पहले विषय की गहराई से पड़ताल करना चाहती है। याचिका के जरिये, भयादोहन कर या तोहफे एवं धन के जरिये प्रलोभन के द्वारा किये जाने वाले धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

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न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति तुषार राव गेदेला की पीठ ने कहा, ‘‘सबसे पहले यह कि धर्मांतरण निषिद्ध नहीं है। यह किसी व्यक्ति का अधिकार है कि वह कोई भी धर्म, अपने जन्म के धर्म, या जिस धर्म को वह चुनना चाहता है, उसे माने। यही वह स्वतंत्रता है, जो हमारा संविधान प्रदान करता है। आप कह रहे हैं कि किसी व्यक्ति को धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जा रहा है। ’’ पीठ ने कहा, ‘‘धर्म में फरेब जैसी कोई चीज नहीं है। सभी धर्मों में मान्यताएं हैं। मान्यताओं के कुछ वैज्ञानिक आधार हो सकते हैं या नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मान्यता फर्जी है। ऐसा नहीं है। वह किसी व्यक्ति की मान्यता है। उस मान्यता में यदि किसी व्यक्ति को धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जाता है, वह एक अलग मुद्दा है।’’

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि आप कहते हैं कि किसी को धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया तो वह व्यक्ति का विशेषाधिकार है।’’ अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में कहा गया है कि भय दिखाकर धर्मांतरण करना न सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 14,15,21 और 25 का उल्लंघन करता है बल्कि पंथनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ भी है, जो कि संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न हिस्सा है। अदालत ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि इस तरह के अनुरोध का क्या आधार है और जबरन धर्मांतरण के आंकड़े कहां हैं तथा इस तरह के धर्मांतरण की संख्या कितनी है?

पीठ ने सवाल किया, ‘‘रिकॉर्ड में क्या सामग्री है।कुछ नहीं है,आपके द्वारा कोई दस्तावेज, कोई दृष्टांत नहीं दिया गया। मामले की विस्तृत पड़ताल की जरूरत है। हम (ग्रीष्मकालीन) अवकाश के बाद यह करेंगे...आंकड़े कहां हैं? कितने धर्मांतरण हुए हैं ? किसे धर्मांतरित किया गया? आप कह रहे हैं कि सामूहिक धर्मांतरण हो रहा है, तो आंकड़े कहां हैं?’’ याचिकाकर्ता ने जब कहा कि उनके पास जबरन धर्मांतरण पर सोशल मीडिया के आंकड़े हैं, तब पीठ ने कहा, ‘‘हमने (सोशल मीडिया पर) छेड़छाड़ की गई तस्वीरों के दृष्टांत देखे हैं। कुछ उदाहरणों में यह प्रदर्शित किया गया कि घटना हुई है और फिर यह सामने आया कि किसी और देश में 20 साल पहले हुई थी और उस तस्वीर को ऐसे दिखाया जाता है कि यह कल या आज की है। ’’ 

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केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि याचिका में उठाया गया मुद्दा महत्वपूर्ण है। इस पर पीठ ने कहा कि यह व्यापक प्रभाव वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है और अदालत कोई राय बनाने से पहले इसकी गहराई से पड़ताल करना चाहती है। अदालत ने कहा, ‘‘आपने इसे सरकार के संज्ञान में लाया है। यदि सरकार चाहे तो उसके कार्रवाई करने के लिए यह पर्याप्त है। उसे अदालत से निर्देश की जरूरत नहीं है। उसके पास कार्रवाई करने की शक्तियां हैं। ’’ अदालत ने याचिका की आगे की सुनवाई के लिए 25 जुलाई की तारीख निर्धारित कर दी।

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