सिर्फ बजट बढ़ाकर नहीं सुधारी जा सकती देश की शिक्षा-व्यवस्था, कई अन्य कारक भी जरूरी - प्रोफेसर, Ravindra Gupta

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Anoop Prajapati । Sep 3 2024 6:50PM

हम सभी को पता है कि अगर हमें विकसित देश बनना है तो शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति करनी होगी। किसी भी देश के विकास में शिक्षा का बड़ा योगदान रहता है। अगर कोई सरकार शिक्षा में निवेश करती है तो देश का भविष्य मजबूत होता है। भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है।

हम लगातार विकसित भारत की बात कर रहे हैं। उस दिशा में तेजी से बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हम सभी को पता है कि अगर हमें विकसित देश बनना है तो शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति करनी होगी। किसी भी देश के विकास में शिक्षा का बड़ा योगदान रहता है। अगर कोई सरकार शिक्षा में निवेश करती है तो देश का भविष्य मजबूत होता है। भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है। हालांकि शिक्षा के बजट को देखें तो अभी भी सकल घरेलू उत्पाद के 6% आवंटन को हासिल करने में यह काफी संघर्ष करता हुआ दिखाई दे रहा है। तमाम कोशिशें के बावजूद भी 4.6% के आसपास है। पिछले 10 साल की बात करें तो शिक्षा के बजट में लगातार वृद्धि हुई है। लेकिन जिस अनुपात में होना चाहिए वैसा नहीं हुआ है। केंद्र ने 2024-25 के लिए शिक्षा मंत्रालय को 1.20 लाख करोड़ रुपये से अधिक आवंटित किए हैं, जबकि पिछले वित्त वर्ष में संशोधित अनुमान 1.29 लाख करोड़ रुपये से अधिक था। उच्च शिक्षा नियामक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के लिए अनुदान 60 प्रतिशत से अधिक घटा दिया गया है। इसका हमारी शिक्षा व्यवस्था पर क्या असर पड़ता है? विश्वविद्यालय वित्तीय संसाधनों को कैसे मैनेज करते हैं? इसी को हमने जानने की कोशिश की है। हमने बातचीत की है प्रोफेसर रविंद्र गुप्ता से जो कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य) के प्राचार्य हैं।

प्रश्न - बजट का शिक्षा से क्या सरोकार है और यह छात्रों को किस प्रकार से प्रभावित करता है?

जवाब - वास्तव में देश में बजट की चर्चा होना स्वाभाविक है। जिससे आम लोगों को भी पता चल सके की किस क्षेत्र में सरकार ने कितना पैसा खर्च किया है। प्रोफेसर गुप्ता के मुताबिक सिर्फ बजट ही एकमात्र साधन नहीं है, जिससे शिक्षा की उत्कृष्ट और गुणवत्ता की जांच की जा सके। उन्होंने बताया कि सिर्फ पैसे और सुख-सुविधा देने से ही शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ नहीं की जा सकती है। भले ही यह एक बहुत बड़ा फैक्टर है, लेकिन इसके अलावा भी कई अन्य चीजें भी शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। इसके साथ ही हमें बजट उपयोग करने वाले तंत्र पर अधिक ध्यान रखना चाहिए। जिससे स्पष्ट हो सके कि बजट का कितना सदुपयोग और दुरुपयोग हो रहा है। उनके अनुसार, सरकारें भी इस निगरानी करने की दिशा में पिछले कुछ समय से अपने कदम बढ़ा रही हैं। उन्होंने बताया कि भले ही सरकार ने शिक्षा के लिए बजट में कुछ कमी की है लेकिन जरूरत पड़ने पर सरकार अगले बजट में इस धन को बढा भी सकती है।

प्रश्न - बजट कम करने का पढ़ाई की व्यवस्थाओं पर क्या सचमुच असर पड़ता है ? 

जवाब - जी हां, व्यवस्थाओं पर जरूर कुछ हद तक निश्चित रूप से असर पड़ता है, लेकिन लगभग प्रत्येक राज्य में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलकर सरकार उस कमी को भरने का भी लगातार प्रयास कर रही है। 

प्रश्न - सरकारी शिक्षण संस्थानों में फीस वृद्धि का विद्यार्थियों और उनके परिवार पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

जवाब - फीस की वृद्धि का अध्ययन करने के साथ-साथ हमें यह भी देखना चाहिए कि शुल्क में कितने समय बाद और कुल कितनी बढ़ोत्तरी हुई है। सरकारी संस्थानों में मिलने वाली तमाम सुख-सुविधाओं का कुछ हिस्सा छात्रों से वसूलना कहीं से भी गैरबाजिब नहीं है। इसके अलावा भी बढ़ती हुई महंगाई को लेकर सरकारों को इस तरह के कुछ जरूरी निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। प्रोफेसर गुप्ता के मुताबिक, फीस बढ़ोत्तरी के बावजूद भी सरकार अति पिछड़े और गरीब वर्ग के विद्यार्थियों के लिए हमेशा ही साथ खड़ी रहती है। जिससे उन पर किसी भी प्रकार का आर्थिक बोझ ना पड़े। 

प्रश्न - क्या सरकारी संस्थाओं को अनुदान ना देकर सरकार उन्हें उनके हाल पर छोड़ने का विचार कर चुकी है ? 

जवाब - नहीं इस प्रकार के सवाल का कोई भी औचित्य नहीं है, क्योंकि वर्तमान समय में भी यूजीसी से हमें एक निश्चित अनुदान लगातार प्राप्त हो रहा है। जो पैसा अब यूजीसी की तरफ से ना आकर सीधा भारतीय रिजर्व बैंक से हमें मिलता है। जिसके लिए सिफारिस यूजीसी ही करता है। इसके अलावा संस्थान को ऋण लेने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। बल्कि संस्थान में विकास कार्यों के लिए हमें यह अनुदान राशि के रूप में ही बजट प्राप्त होता है। जिसमें से सिर्फ प्राप्त बजट का एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा हमें 10 से 15 सालों के बीच किस्त के रूप में सरकार को वापस लौटाना पड़ता है।

प्रश्न - सरकार ने 2019 में 50 नए उत्कृष्ट संस्थान बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन वर्तमान में सिर्फ 20 संस्थान ही बन सके हैं। इस योजना में सरकार को कहां समस्या आ रही है ? 

जवाब - इस दौरान कोविड बीच में आने के बाद भी सरकार निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही है। चूँकि संस्थान को बेहतर बनाने का जिम्मा उसके शिक्षकों और विद्यार्थियों पर होता है। इसलिए सरकार उस दिशा में आगे बढ़ रही है। केंद्र सरकार चाहती है कि उन संस्थानों में सबसे पहले शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच बेहतर तालमेल और आपसी सामंजस्य स्थापित किया जाए। जिससे संस्थान स्वतः ही उच्च श्रेणी में अपना स्थान बना लेगा। इसके अलावा भी संस्थान को उत्कृष्ट बनाने के लिए सरकार ने जो भी पैरामीटर तय किए हैं, उन पर आगे बढ़ाने का काम हमारे अध्यापकों का ही है। प्रोफेसर रविंद्र गुप्ता के मुताबिक, इसमें भी बजट सिर्फ एक कारण नहीं है। 

प्रश्न - 2014 से लगातार आंकड़ों में बजट बढ़ रहा है, लेकिन उच्च शिक्षा समेत कई जगह पर सरकार ने कटौती की है। इसको लेकर सरकार क्या विचार कर रही है ? 

जवाब - इसका प्रमुख कारण है कि अभी अधिकांश विद्यार्थी हायर एजुकेशन की तरफ नहीं जा रहे हैं। जहां फिलहाल 100 विद्यार्थी शोध में होने चाहिए थे, वहां इस समय सिर्फ 27 से 28 विद्यार्थी ही हैं। इसलिए सरकार बजट को स्कूल और स्नातक स्तर पर अधिक खर्च करके उन विद्यार्थियों को शोध की तरफ लाने पर विचार कर रही है। इस कटौती का उपयोग सरकार स्कूल में ड्रॉप आउट कम करने पर भी इस्तेमाल कर रही है। जिससे विद्यार्थी छोटी कक्षाओं में कम-से-कम विद्यालय छोड़ें। 

प्रश्न - क्या आरक्षण को नजर में रखकर भी सरकार बजट तैयार करती है, इसके साथ ही सरकार शिक्षा व्यवस्था में विद्यार्थियों को सब्सिडी किस प्रकार मुहैया करवाती है ? 

उत्तर - सरकार गरीब और पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए कई प्रकार की छात्रवृत्ति योजनाओं के माध्यम से उनतक पैसा पहुंचाती है। जिससे पहले उनके द्वारा जमा की हुई फीस छात्रवृत्ति आने के बाद उनको वापस कर दी जाती है। इसके अलावा भी संस्थान अपने निजी स्तर पर भी उन गरीब छात्र-छात्राओं के लिए विशेष प्रावधान भी करते हैं।

प्रश्न - क्या EWS जैसे नए आरक्षण के प्रावधान से शिक्षण संस्थानों पर कोई अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है ? 

उत्तर - ईडब्ल्यूएस का कोटा लागू होने से प्रत्येक संस्थान में सीटों की संख्या में भी बढ़ोतरी कर दी गई है। इस सबके बावजूद भी इस नई आरक्षण व्यवस्था में कुछ समस्याएं हैं। जिन्हें सरकार हल करने पर विशेष ध्यान दे रही है। 

प्रश्न - 140 करोड़ की आबादी वाले देश में शिक्षा व्यवस्था को लेकर कई मोर्चों पर सरकार के सामने विभिन्न प्रकार की समस्याएं हैं। इन सबको लेकर सरकार किस प्रकार की और नई योजनाएं बना सकती है ? 

जवाब - किसी भी देश की सरकार को उसे आगे बढ़ाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और स्वास्थ्य पर निश्चित रूप से विशेष ध्यान देना चाहिए। वैसे सबसे महत्वपूर्ण घटक शिक्षा की है। इसमें किसी विदेशी मॉडल के अध्ययन की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अपने आसपास की शिक्षा से जुड़ी समस्याओं को देखकर ही हम व्यवस्थाओं को और भी बेहतर बना सकते हैं। 

प्रश्न - क्या नई शिक्षा नीति को सरकार सही ढंग से लागू करवा पा रही है ? 

उत्तर - 2020 में आयी नई शिक्षा नीति पूरी तरह से भारत की शिक्षा व्यवस्था से संबंधित नीति है। इसके पहले भी पूर्ववर्ती सरकारों ने शिक्षा नीतियां बनाई हैं। जिससे धीरे-धीरे ही सही लेकिन शिक्षा के स्तर में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन 2020 की इस शिक्षा नीति में विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनने पर विशेष जोर दिया गया है। जो भविष्य में एक बहुत ही बेहतर फैसला साबित होगा। 2020 की यह शिक्षा नीति अंग्रेजी मानसिकता से भी देश के भविष्य को दूर लेकर जाएगी। जो छात्रों को नौकरी ढूंढने की बजाय नौकरी देने पर विशेष बोल देगी। हालांकि, सरकार को इस नीति को लागू करने में कुछ समस्याएं जरूर आ रही हैं। लेकिन समय के साथ-साथ इन समस्याओं को भी दूर कर लिया जाएगा। 

प्रश्न - एक राष्ट्र, एक पाठ्यक्रम की वर्तमान समय में कितनी आवश्यकता है? 

जवाब - एक राष्ट्र, एक पाठ्यक्रम की नीति शिक्षा व्यवस्था को और भी मजबूत करेगी। देश में कई जगहों पर अलग-अलग विषय और पढ़ाई के तरीके हैं। जिनमें एकता लाकर पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था को और भी अधिक बेहतर बनाया जा सकता है।

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