किसानों को बार-बार आंदोलन के लिए मजबूर क्यों होना पड़ता है? किसानों से किया वादा पूरा क्यों नहीं करतेः उपराष्ट्रपति धनखड़ ने मंच पर ही कृषि मंत्री को खरी खरी सुनाई
शिवराज सिंह चौहान को समझ नहीं आ रहा था कि करें तो क्या करें। हम आपको बता दें कि उपराष्ट्रपति ने अपने धुआंधार भाषण में कहा कि किसान यदि आज के दिन आंदोलित हैं, उस आंदोलन का आकलन सीमित रूप से करना बहुत बड़ी गलतफहमी और भूल होगी।
किसानों के आंदोलन को लेकर देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मोदी सरकार को आड़े हाथ लेते हुए मंच पर ही कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को खरी खरी सुना दी और कह दिया कि किसानों को हल्के में लेना भारी पड़ेगा। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) जैसे प्रमुख संस्थानों की मौजूदगी के बावजूद किसान संकट में हैं। जगदीप धनखड़ ने कहा कि किसान संकट में हैं और आंदोलन कर रहे हैं तथा यह स्थिति देश के समग्र कल्याण के लिए अच्छी नहीं है।
जगदीप धनखड़ की बातें सुन कर शिवराज सिंह चौहान को समझ नहीं आ रहा था कि करें तो क्या करें। हम आपको बता दें कि उपराष्ट्रपति ने अपने धुआंधार भाषण में कहा कि किसान यदि आज के दिन आंदोलित हैं, उस आंदोलन का आकलन सीमित रूप से करना बहुत बड़ी गलतफहमी और भूल होगी। उन्होंने कहा कि जो किसान सड़क पर नहीं है, वह भी आज के दिन चिंतित हैं, आज के दिन परेशान हैं। उन्होंने कहा कि भारत को विकसित राष्ट्र का दर्जा मिलना है तो हर व्यक्ति की आय को आठ गुना करना है। उस आठ गुना करने में सबसे बड़ा योगदान ग्रामीण अर्थव्यवस्था का है, किसान कल्याण का है। उन्होंने कहा कि मैंने दो दिन पहले मेरी चिंता व्यक्त की थी कि किसान आंदोलित हैं। मैंने किसान भाइयों से आह्वान किया था की हमें निपटारे की ओर बढ़ना चाहिए। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि हम अपनों से नहीं लड़ सकते। हम यह विचारधारा नहीं रख सकते कि उनका पड़ाव सीमित रहेगा, अपने आप थक जाएंगे। उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा को परेशान थोड़ी ना करना है, दिल को चोटिल थोड़ी ना करना है। उन्होंने कहा कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है?
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उन्होंने कहा कि हम तो reward के बजाय जो due है उसको नहीं दे रहे। जो वादा किया गया है, हम उसको देने में भी कंजूसी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैंने जब आह्वान किया तो मुझे अच्छा लगा कि एक प्रतिक्रिया आई है। उन्होंने कहा कि उनका संदेश आया है कि किसान के साथ जो वादा किया वो पूरा क्यों नहीं हुआ? उन्होंने कहा कि जब कोई भी सरकार वादा करती है और वह वादा किसान से जुड़ा हुआ है तब हमें कभी कोई कसर नहीं रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किसान हमारे लिए आदरणीय है, प्रातः स्मरणीय हैं, सदैव वंदनीय है। मैं खुद कृषक पुत्र हूँ, मैं जानता हूँ किसान क्या कुछ नहीं झेलता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसान से वार्ता अविलंब होनी चाहिए और हमें जानकारी होनी चाहिए कि क्या किसान से कोई वादा किया गया था?
उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रधानमंत्री जी का दुनिया को संदेश है कि जटिल समस्याओं का निराकरण वार्ता से होता है। उन्होंने कहा कि माननीय कृषि मंत्री जी, आपसे पहले जो कृषि मंत्री जी थे, क्या उन्होंने लिखित में कोई वादा किया था? यदि अगर वादा किया था तो उसका क्या हुआ? उन्होंने कहा कि हमारा मन सकारात्मक होना चाहिए, रुकावट पैदा करने वाला नहीं होना चाहिए कि किसान को यह कीमत दे देंगे तो इसके दुष्परिणाम होंगे। उन्होंने कहा कि किसान को जो भी कीमत देंगे, उसका पांच गुना देश को मिलेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है। उन्होंने कहा कि यह आकलन बहुत संकीर्ण है कि किसान आंदोलन का मतलब सिर्फ उतना है जो लोग सड़क पर हैं जबकि ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि इस देश के अंदर लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा- "जय जवान, जय किसान"। उस "जय किसान" के साथ हमारा रवैया वैसा ही होना चाहिए, जो लाल बहादुर शास्त्री की कल्पना थी। उन्होंने कहा कि और उसके अंदर क्या जोड़ा गया? माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा- "जय जवान, जय किसान, जय अनुसंधान।" और वर्तमान प्रधानमंत्री जी ने दूरदर्शिता दिखाते हुए इसको पराकाष्ठा पर ले गए- "जय जवान, जय किसान, जय अनुसंधान, जय विज्ञान।"
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कृषि मंत्री जी, एक-एक पल आपका भारी है। मेरा आप से आग्रह है कि कृपया करके मुझे बताइये कि क्या किसान से वादा किया गया था? किया गया वादा क्यों नहीं निभाया गया? वादा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि गत वर्ष भी आंदोलन था, इस वर्ष भी आंदोलन है। कालचक्र घूम रहा है, हम कुछ कर नहीं रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहली बार मैंने भारत को बदलते हुए देखा है। पहली बार मैं महसूस कर रहा हूँ कि विकसित भारत हमारा सपना नहीं लक्ष्य है। दुनिया में भारत कभी इतनी बुलंदी पर नहीं था। जब ऐसा हो रहा है तो मेरा किसान परेशान और पीड़ित क्यों है? किसान अकेला है जो असहाय है। उन्होंने कहा कि मान कर चलिए कि रास्ता भटक गए हैं। हम उस रास्ते पर गए हैं जो खतरनाक है।
उन्होंने कहा कि मुझे बड़ा अच्छा लगा जब माननीय जगजीत सिंह ने सार्वजनिक रूप से पहले तो संज्ञान लिया कि मैंने क्या कहा और फ़िर उन्होंने कहा: पहला, किसान को MSP guarantee कानून चाहिए। खुले मन से देखो खुले मन से सोचो, आकलन करो। देने के क्या फायदे हैं, नहीं देने का क्या नुकसान हैं। आप तुरंत पाओगे इसमें नुकसान ही नुकसान है। दूसरा, Agriculture Minister ने लिखित में जो वादा किया उसका क्या हुआ? धनखड़ ने कहा, ‘‘आत्मावलोकन की आवश्यकता है, क्योंकि किसान संकट में हैं। यदि ऐसे संस्थान (जैसे आईसीएआर और उसके सहयोगी) सक्रिय होते और योगदान दे रहे होते, तो यह स्थिति नहीं होती...ऐसे संस्थान देश के हर कोने में स्थित हैं, लेकिन किसानों की दशा अभी भी वही है।’’
वहीं इस अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत अपने किसानों के बिना एक समृद्ध देश नहीं बन सकता। उन्होंने कहा, ‘‘एक गौरवशाली, समृद्ध भारत का निर्माण किसानों के बिना नहीं हो सकता। आज भी कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान इसकी आत्मा हैं।’’ मंत्री ने कहा कि सीआईआरसीओटी देश का एकमात्र संस्थान है, जो यांत्रिक रूप से चुनी गई कपास के प्रसंस्करण के लिए काम कर रहा है। चौहान ने कहा, ‘‘यांत्रिक रूप से काटे गए कपास के प्रसंस्करण के लिए संयंत्र और मशीनरी को अनुकूलित करने की आवश्यकता है। इसके लिए यहां (मुंबई) एक प्रायोगिक संयंत्र की व्यवस्था की जाएगी। यह देखने के लिए आवश्यक व्यवस्था की जाएगी कि यह कपास जीनोम के लिए एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र कैसे बन सकता है।’’ चौहान ने कहा कि कपास के बीज बहुत महंगे हैं और निजी कंपनियां उन्हें बहुत अधिक कीमत पर किसानों को बेचती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘आईसीएआर को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि किसानों को कम कीमत पर गुणवत्तापूर्ण बीज मिलें। किसानों पर भी ध्यान दें, ताकि उन्हें कपास की खेती से लाभ मिले और वे अपनी आजीविका कमा सकें।’’
चौहान ने कहा कि 2047 तक के लिए सीआईआरसीओटी के लिए एक रूपरेखा बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘हम 2047 तक क्या करेंगे, इसके लिए मुझे इसकी एक रूपरेखा चाहिए। इस पर हमें तेजी से काम करना चाहिए, ताकि हम कपास उत्पादन आदि से जुड़े काम कर सकें। सीआईआरसीओटी को 2047 तक हर हाल में शीर्ष पर होना चाहिए।''
दूसरी ओर, कांग्रेस ने किसानों से जुड़े वादों को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान को लेकर कहा कि वह भी सरकार से यही सवाल पूछ रही है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी कब हकीकत का रूप लेगी। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने उनके इस बयान का हवाला देते हुए एक्स पर पोस्ट किया, “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस यही सवाल लगातार पूछ रही है चेयरमैन सर। एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी कब हकीकत का रूप लेगी? एमएसपी तय करने के लिए स्वामीनाथन फॉर्मूला कब लागू होगा? जिस तरह पूंजीपतियों को कर्ज से राहत दी गई है उसी तरह का लाभ किसानों को कब मिलेगा?''
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