मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ अपराध ‘भयावह’, नहीं चाहते राज्य की पुलिस मामले को देखे: न्यायालय

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केंद्र ने 27 जुलाई को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उसने मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने से संबंधित मामले में जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है। केंद्र ने कहा था कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी अपराध के मामले में सरकार कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति रखती है। गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अपने सचिव अजय कुमार भल्ला के माध्यम से दायर एक हलफनामे में शीर्ष अदालत से मामले की सुनवाई को समय पर पूरा करने के लिए इसे मणिपुर के बाहर स्थानांतरित करने का भी आग्रह किया है। मामले में अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने के वीडियो को सोमवार को “भयावह” करार देते हुए प्राथमिकी दर्ज करने में हुई देरी की वजह पता लगाने का निर्देश दिया। इसके अलावा अदालत ने जांच की निगरानी के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की समिति या फिर विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का सुझाव दिया। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने जातीय हिंसा से संबंधित लगभग 6,000 मामलों में राज्य द्वारा की गई कार्रवाई के बारे में रिपोर्ट मांगी और कहा कि मणिपुर पुलिस को इन खबरों के मद्देनजर अपनी जांच जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि पुलिसकर्मियों ने ही महिलाओं को भीड़ के हवाले कर दिया था। इस पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने पूछा कि राज्य की पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने में 14 दिन क्यों लगे। पीठ ने कहा कि वह इस बात से हैरान है कि मीडिया में कई बातें सामने आने के बावजूद मणिपुर सरकार के पास आज भी तथ्य नहीं हैं। पीठ ने पूछा, “पुलिस क्या कर रही थी? वीडियो मामले से संबंधित प्राथमिकी दर्ज होने के एक महीने और तीन दिन बीतने के बाद 24 जून को मजिस्ट्रेट अदालत को क्यों भेजी गई?” पीठ ने कहा, “यह भयावह है।

मीडिया में खबरें आई हैं कि पुलिस ने इन महिलाओं को दंगाई भीड़ के हवाले कर दिया था। हम नहीं चाहते कि पुलिस इस मामले को संभाले।” अदालत ने पूछा कि घटना के तुरंत बाद प्राथमिकी दर्ज करने में क्या बाधा थी? अदालत ने कहा कि वह नहीं चाहती की राज्य की पुलिस मामले की जांच करे क्योंकि उन्होंने महिलाओं को वस्तुत: दंगाई भीड़ को सौंप दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हिंसाग्रस्त राज्य में स्थिति की निगरानी के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) या पूर्व न्यायाधीशों वाली एक समिति का गठन कर सकती है। हालांकि यह मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र और मणिपुर की ओर से पेश विधि अधिकारियों की दलीलों पर निर्भर करेगा। पीठ ने मणिपुर हिंसा से संबंधित विभिन्न याचिकाओं को सुनवाई के लिए मंगलवार को सूचीबद्ध किया है। अदालत ने कहा कि महिलाओं को निर्वस्त्र करके उन्हें घुमाने का यह वीडियो चार मई को सामने आया था, ऐसे में मणिपुर पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने में 14 दिन का समय क्यों लगा और 18 मई को मामला दर्ज किया गया। केंद्र ने 27 जुलाई को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उसने मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने से संबंधित मामले में जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है। केंद्र सरकार ने समयबद्ध तरीके से सुनवाई पूरी करने के लिए शीर्ष अदालत से मामले को मणिपुर से बाहर स्थानांतरित करने का आग्रह किया था। पीठ ने कहा, “यह भयावह है। मीडिया में खबरें आई हैं कि पुलिस ने इन महिलाओं को दंगाई भीड़ के हवाले कर दिया था।

हम नहीं चाहते कि पुलिस इस मामले को संभाले।” जब अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सवालों का जवाब देने के लिए समय मांगा, तो पीठ ने कहा कि उसके पास समय की कमी है और राज्य को उन लोगों को राहत प्रदान करने की बहुत जरूरत है जिन्होंने अपने प्रियजनों और घर समेत सब कुछ खो दिया है। पीठ ने कहा कि घटना चार मई को हुई थी और अब, लगभग तीन महीने बीत चुके हैं जिसका मतलब है कि महत्वपूर्ण सबूत मिटाए और नष्ट किए जा सकते हैं। अदालत ने कहा, “हमें लोगों की जिंदगी पटरी पर लानी है। हम यहां से लोगों के जीवन को पटरी पर लाने की जरूरत को लेकर चिंतित हैं। बहुत कुछ खो चुका है लेकिन सब कुछ नहीं खोया है।” पीठ ने राज्य सरकार से जातीय हिंसा से प्रभावित राज्य में दर्ज जीरो एफआईआर की संख्या और अब तक हुईं गिरफ्तारियों के बारे में विवरण देने को कहा। ‘जीरो एफआईआर’ किसी भी थाने में दर्ज की जा सकती है, भले ही अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में हुआ हो या नहीं। पीठ ने पूछा कि अब तक कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया है और कितने लोग न्यायिक हिरासत में हैं। अदालत ने पीड़ितों के लिए कानूनी सहायता की स्थिति और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत कितने बयान दर्ज किए गए हैं, इसके बारे में भी पूछा। आईपीसी की धारा 164 मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज कराने से संबंधित है। पीठ ने पूछा कि लंबे जातीय संघर्ष से प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए भारत सरकार से किस तरह के राहत पैकेज की उम्मीद है।

पीठ ने कहा कि वीडियो में दिख रही पीड़ित महिलाओं का कहना है कि पुलिस ने उन्हें भीड़ को सौंप दिया था। अदालत ने कहा, “यह निर्भया (2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला) जैसी स्थिति नहीं है। वह घटना भी भयावह थी लेकिन अपनी तरह का अकेला मामला था। यह कोई इक्का-दुक्का घटना नहीं है।” अदालत ने कहा कि सुधार के लिए कदम उठाए जाने चाहिए क्योंकि हिंसा अब भी जारी है। पीठ ने कहा, “हम यह भी जानना चाहते हैं कि राज्य में प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए क्या पैकेज उपलब्ध कराया जा रहा है।” सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि अगर शीर्ष अदालत जांच की निगरानी करती है तो भारत सरकार को कोई आपत्ति नहीं है। बिना किसी आपत्ति के, केंद्र मामले की निगरानी और इसकी सुनवाई को मणिपुर से बाहर स्थानांतरित करने पर सहमत हो गया। मेहता ने कहा कि जांच करने वाली सीबीआई टीम में कम से कम एक महिला अधिकारी शामिल होगी जो संयुक्त निदेशक स्तर से नीचे की नहीं होगी और यह टीम शीर्ष अदालत को रिपोर्ट करेगी। जब मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार शीर्ष अदालत से मुकदमे को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने का आग्रह करती है, तो पीठ ने कहा, “यह बाद का चरण है।

आज हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जांच ठीक से आगे बढ़े।” मेहता ने जवाब दिया, “इसीलिए हमने बिना किसी आपत्ति के कहा है कि आप इसकी निगरानी करें। कुछ भी नहीं छिपाया जा रहा है।” प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने के जो तथ्य अदालत के सामने लाए गए हैं, वे सार्वजनिक जानकारी हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, मुझे आश्चर्य है कि मणिपुरसरकार के पास अब भी तथ्य नहीं हैं। पीठ ने कहा, “अगर ये तथ्य आंशिक रूप से सच हैं, तो हम इस स्तर पर यह नहीं कह रहे हैं कि इसमें कोई मिलीभगत है क्योंकि यह जांच का विषय है…। पीड़ितों के बयान हैं कि पुलिस ने उन्हें भीड़ को सौंप दिया था।” जब मामला सुनवाई के लिए आया तो वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उन दो महिलाओं की ओर से पक्ष रखा जिन्हें चार मई के एक वीडियो में कुछ लोगों द्वारा निर्वस्त्र करके घुमाते हुए दिखाया गया था। सिब्बल ने कहा कि उन्होंने मामले में एक याचिका दायर की है। सुनवाई की शुरुआत में, चार मई के वीडियो में नजर आईं दो महिलाओं की ओर से पेश सिब्बल ने कहा कि उन्होंने मामले में एक याचिका दायर की है। उन्होंने कहा कि दोनों पीड़ित अपने मामले की सुनवाई असम स्थानांतरित किए जाने का विरोध कर रही हैं। मेहता ने सिब्बल की दलीलों का जवाब दिया और कहा कि केंद्र ने कभी नहीं कहा कि मुकदमा असम स्थानांतरित किया जाए। केंद्र ने कहा है कि सुनवाई मणिपुर के बाहर किसी राज्य में होनी चाहिए। सिब्बल ने राज्य पुलिस पर हिंसा करने वालों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया और कहा कि पीड़िता चाहती हैं कि मामले की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए जिस पर उन्हें भरोसा हो।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए सीबीआई को जांच जारी रखनी चाहिए। इसके अलावा सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि हिंसा मामले में उसके हस्तक्षेप की सीमा इस पर निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या किया है और अगर अदालत संतुष्ट है कि अधिकारियों ने पर्याप्त रूप से काम किया है, तो वह बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं कर सकती। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “हमारे हस्तक्षेप की सीमा इस बात पर भी निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या किया है। अगर हम संतुष्ट हैं कि सरकार ने अब तक पर्याप्त काम किया है, तो हम बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते। लेकिन अगर हम संतुष्ट नहीं हैं, तो हमें लगता है कि हमें तुरंत हस्तक्षेप करने की अत्यधिक और तत्काल आवश्यकता है।” एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने एसआईटी जांच का अनुरोध किया और कहा कि सीबीआई में ज्यादा विश्वास नहीं बचा है क्योंकि केंद्र ने दुर्भाग्य से राज्य में जो हो रहा था उस पर अपनी आंखें बंद कर लीं। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि पहला काम आत्मविश्वास पैदा करना है क्योंकि बलात्कार की पीड़िता सदमे के कारण इसके बारे में बात नहीं कर पा रहीं। वकील वृंदा ग्रोवर ने उस घटना का जिक्र किया जिसमें मणिपुर में कथित तौर पर दो महिलाओं से सामूहिक बलात्कार के बाद उनकी हत्या कर दी गई। उन्होंने कहा कि पीड़ितों के परिवारों को उनके शवों के बारे में नहीं पता है। वकील शोभा गुप्ता और निज़ाम पाशा समेत कई अन्य वकीलों ने दलीलें पेश कीं। शीर्ष अदालत ने 20 जुलाई को कहा था कि वह हिंसाग्रस्त मणिपुर की इस घटना से बहुत दुखी है और हिंसा के लिए औजार के रूप में महिलाओं का इस्तेमाल करना एक संवैधानिक लोकतंत्र में पूरी तरह अस्वीकार्य है।

केंद्र ने 27 जुलाई को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उसने मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने से संबंधित मामले में जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है। केंद्र ने कहा था कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी अपराध के मामले में सरकार कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति रखती है। गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अपने सचिव अजय कुमार भल्ला के माध्यम से दायर एक हलफनामे में शीर्ष अदालत से मामले की सुनवाई को समय पर पूरा करने के लिए इसे मणिपुर के बाहर स्थानांतरित करने का भी आग्रह किया है। मामले में अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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