कांग्रेस का आरोप ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कब्जा कर बेंची 500 करोड़ की जमीन
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यदि उक्त भूमि माधवराव सिंधिया के नाम पर मान भी लिया जाये तो भी उनका स्वर्गवास होने के बाद उनके वारिस पत्नी, पुत्र और पुत्री के नाम नामांतरित होनी थी और तीनों उत्तराधिकारियों द्वारा ट्रस्ट को दान रजिस्टर्ड दान पत्र द्वारा होनी थी जो कि नहीं हुई
ग्वालियर। मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष मुरारीलाल दुबे और मीडिया प्रमुख (ग्वालियर-चम्बल संभाग) के.के. मिश्रा ने सिंधिया परिवार को भू-माफिया बताते हुये बेशकीमती जमीनों को बेंचने के आरोप लगाए है। सरकारी बेशकीमती जमीनों से जुडे मामले उजागर करते हुये कांग्रेस पदाधिकारियों ने आरोप लगाते हुए कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके परिवार ने कोटेश्वर बाग, कोटेश्वर, भूतेश्वर देवस्थल और सर्वे क्र.-15 की सरकारी भूमि पर कब्जा कर उसे अनाधिकृत रूप से बेच दिया। इन भूमियों की कीमत करीब 500 करोड़ रूपये आंकी गई है।
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कांग्रेस पदाधिकारियों मुरालीलाल दुबे और के.के. मिश्रा ने अपने आरोपों को स्पष्ट करते हुये बताया कि कोटेश्वर बाग की भूमि जो राजघराने की अनुमोदित सूची क्र.-4 के 27 नंबर पर अंकित है। इसका आधिपत्य दिनांक- 15.04.1950 को कार्यपालन यंत्री, पी.डब्ल्यू.डी. के गिर्द डिवीजन द्वारा लेकर इसी दिन अरायश विभाग को सूचित किया गया। इसकी सूचना भी कंट्रोलर, हाऊस होल्ड महाराजा को भी दी गई थी। इस भूमि के संबंध में नजूल अधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट में सर्वे क्र.-32,33,34,36,38,40 रकवा 2 बीघा, 8 बिस्वा भूमि उल्लेखित कर विक्रय की अनुमति जारी की। उक्त भूमि संस्थान द्वारा रजिस्टर्ड विक्रय पत्र दिनांक-24.09.2004 के आधार पर सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट के स्थान पर नामांतरण कर दिया गया। सन् 1997 के बंदोबस्त रिकॉर्ड में उक्त खसरा भूमि शासकीय रिकॉर्ड में दर्ज होकर वर्तमान खसरे में श्री कोटेश्वर महादेव, औकाफ विभाग ऑनर, कलेक्टर ग्वालियर के नाम पर अंकित है। इस रिकॉर्ड के आगे case pending of seeling भी दर्ज है।
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मिश्रा ने बताया कि कलेक्टर ग्वालियर ने दिनांक-28.12.2009 को अपने एक आदेश में उक्त भूमि को हाईकोर्ट और तहसीलदार के पारित आदेश का हवाला देते हुये कोटेश्वर बाग के स्थान पर रिकॉर्ड में सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट चढा दिया गया। इसके पश्चात नजूल अधिकारी जिला ग्वालियर ने पत्र क्र.-क्यू/न.अ/1165/2010-11/बी-121 दिनांक-21.04.2011 के आधारा पर प्रश्नाधीन भूमि देवस्थान ट्रस्ट के बजाय केशवानन्द गृह निर्माण समिति द्वारा अध्यक्ष अजय पिता गोपालदास खंडेलवाल के नाम का नामांतरण स्वीकार कर भू-स्वामी के रूप में अंकित कर दिया गया। यह समूचा खेल क्यों, कैसे और किसके दबाब में रचा गया, इसमें कौन-कौन प्रभावी लोग शामिल थे जांच का विषय है ! इस भूमि की अनुमानित कीमत 54 करोड आंकी गई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस भूमि को बेचने की अनुमति प्राप्त किये बिना ही कैसे बेच दिया गया ! इसी प्रकार सर्वे क्र.-142 की साढे 4 बीघा जमीन भी अजय पिता गोपालदास खंडेलवाल को विक्रय पत्र के आधार पर देवस्थान ट्रस्ट ने बेच दी।
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मिश्रा ने कहा कि राज्य के पुर्नगठन के समय तत्कालीन रिसायतो द्वारा शासन के नियंत्रण में सौंपे गये जिला ग्वालियर की सूची में प्रपत्र-1 के वृत 2 व पटवारी हल्का नं. क्र-32-33,40 पर दर्ज है। इसी प्रकार भूतेश्वर संस्थान 1997 के बंदोबस्त रिकॉर्ड के अनुसार सर्वे नं.- 573,574,575,576,772,773 लगभग 6 बीघा भूमि शासकीय रिकॉर्ड में दर्ज है। मंदिर की भूमि लाखों-करोड़ों रूपयों में बेकने का अधिकार सिंधिया परिवार को किसने दिया, देवस्थान की यह भूमि किसके निर्देश पर बेची गई और इससे प्राप्त आय का इन देवस्थलों के जीर्णोधार में कितना उपयोग किया गया?
ग्वालियर राजघराने से ही जुडे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ग्राम ललितपुर स्थित शासकीय भूमि सर्वे क्र.-15 रकवा 1 बीघा, 16 बिस्वा का भी ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में अवैधानिक विक्रय कर दिया। उक्त भूमि की कीमत करोड़ों रूपये है। आजादी के पूर्व यह भूमि जमींदार बद्रीप्रसाद वगैरा के भूमि स्वामित्व की होकर पडती कदीम थी, जो जागीरदारी प्रथा समाप्त होने के बाद शासकीय हो गई और 1997 के बंदोबस्त रिकॉर्ड में भी शासकीय रूप में दर्ज है। उक्त सर्वे नं. को तहसीलदार ग्वालियर ने बिना किसी आवेदन व अन्य आधार के सन् 1968 में स्व. माधवराव सिंधिया के नाम अवैधानिक तरीके से नामांतरण कर दिया। संज्ञान में आने के बाद वर्ष 1971-72 में अतिरिक्त कलेक्टर, ग्वालियर ने प्रकरण को निगरानी में लेकर प्र. क्र.-110/71-72 निगरानी कायम कर दिनांक-28.04.1973 को पारित आदेश के अनुसार तहसीलदार ग्वालियर का आदेश बदल पुनः उक्त भूमि सर्वे क्र. 15 को शासकीय घोषित कर दिया।
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अतिरिक्त कलेक्टर के रिवीजन आदेश के अस्तित्व में रहने के बाद भी तहसीलदार ने अवैधानिक रूप से बिना किसी जांच व सिंधिया के बिना किसी आवेदन के बावजूद अपने न्यायालय के प्र.क्र.-16/87-88/अ-6 माधवराव सिंधिया विरूद्ध म.प्र. शासन आदेश दिनांक-02.08.1988 द्वारा पुनः माधवराव सिंधिया के नाम पर नामांतरण कर दिया गया जो पूर्णतः अवैधानिक था। तहसीलदार ने जिन न्यायालयों, राजस्व मंडल व उच्च न्यायालयों के निर्णयों का अपने निर्णय में उल्लेख किया है उनमें सर्वे क्र.-15 के संबंध में किसी भी प्रकार का कोई उल्लेख भी नहीं है साथ ही उक्त सर्वे नंबर सिंधिया राजघराने की व्यक्तिगत सूची में शामिल नहीं है ?
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उक्त सर्वे क्र.-15 तहसीलदार, ग्वालियर ने अपने प्रकरण क्र.-118/03-04/अ-6 के आधार पर इसे पुनः वसुन्धराराजे ट्रस्ट के नाम नामांतरण कर दिया गया और प्रकरण दिनांक-09.06.2005 को दाखिल रिकॉर्ड, मोतीमहल कर दिया गया, सूचना के अधिकार के तहत प्रकरण की जानकारी व नकल आजतक महज इसलिये नहीं दी गई है, ताकि तहसीलदार के इस फर्जीवाडे, कूटरचित दस्तावेज से हुये इस घोटाले की परतें न खुल सके ! उक्त भूमि रजिस्टर्ड विक्रय पत्र क्र.- 2994 दिनांक-31.12.2010 का कुछ भाग वर्तमान में प्रकरण क्र.-41/11-12/अ-6 आदेश दिनांक-21.02.2012 द्वारा उर्मिला सिंघल पति सुनील सिंघल, श्रीमति नीता सिंघल पत्नी प्रदीप सिंघल व अन्य के नाम बसुन्धराराजे ट्रस्ट के स्थान पर कर दिया गया जो पूरी तरह अवैधानिक हैं।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यदि उक्त भूमि माधवराव सिंधिया के नाम पर मान भी लिया जाये तो भी उनका स्वर्गवास होने के बाद उनके वारिस पत्नी, पुत्र और पुत्री के नाम नामांतरित होनी थी और तीनों उत्तराधिकारियों द्वारा ट्रस्ट को दान रजिस्टर्ड दान पत्र द्वारा होनी थी जो कि नहीं हुई ट्रस्ट का नामांतरण तहसीलदार द्वारा किया जाना पूरी तरह अवैधानिक है। कांग्रेस पदाधिकारियों ने इस बड़े घपले की उच्च-स्तरीय जांच की मांग की है।
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