मिट्टी और पर्यावरण की सुरक्षा के लिये सामूहिक प्रयासों की जरूरत : राजनाथ सिंह
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को लोगों द्वारा मिट्टी और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए पर्यावरण के अनुकूल मूल्यों को अपनाने पर जोर दिया।
कोयंबटूर। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को लोगों द्वारा मिट्टी और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सामूहिक प्रयास किए जाने और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए पर्यावरण के अनुकूल मूल्यों को अपनाने पर जोर दिया। सिंह ने कहा कि एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में भारत अपनी परंपरा और संस्कृति से प्रेरित होकर लगातार मृदा संरक्षण के लिए प्रयास करता रहा है। ईशा फाउंडेशन की ओर से यहां सुलूर में भारतीय वायु सेना के अड्डे पर आयोजित ‘सेव सॉयल’(मृदा संरक्षण) कार्यक्रम को आनलाइन संबोधित करते हुये रक्षा मंत्री ने कहा, ‘‘हम अच्छी तरह से जान चुके हैं, कि केवल मिट्टी पर ध्यान केंद्रित करके मृदा का संरक्षण नहीं किया जा सकता है।
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इसके लिए हमे वनीकरण, वन्य जीवन, आर्द्रभूमि, आदि इससे जुड़े अन्य सभी घटकों को संरक्षित करना और उनका संवर्द्धन करने की कोशिश करनी होगी। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह सर्वविदित है कि सामूहिक प्रयासों से ही सामूहिक समस्याओं का समाधान संभव है। इसलिए आज यह आवश्यक है कि हम सभी मिट्टी और पर्यावरण की रक्षा करने का प्रयास करें और एक साथ मिलकर एक बेहतर दुनिया की ओर कदम बढ़ाएं।’’ सिंह ने कहा, ‘‘यद्यपि अतीत में लौटना संभव नहीं है और न ही उचित है, विज्ञान के क्षेत्र में नई तकनीकों को खोजना और ऐसे नवाचार करना निश्चित रूप से संभव है, जो हमारे पर्यावरण के अनुकूल मूल्यों को बरकरार रखें।’’ उन्होंने कहा,‘‘हमें प्रकृति का साथी बनना चाहिए, और जीवों के साथ-साथ प्रकृति के निर्जीव तत्वों के प्रति श्रद्धा और सम्मान की भावना रखनी चाहिए।
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यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।’’ योग के साथ समानता की ओर इशारा करते हुए सिंह ने कहा, ‘‘आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। मैं आपको इस दिन के लिए बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। हमारा शरीर और मन एक दूसरे से अटूट रूप से जुड़े हुए हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘योग हमारे तन और मन को स्वस्थ रखता है। इसी तरह, हमारा स्वास्थ्य भी आसपास की हवा और मिट्टी की गुणवत्ता पर ही निर्भर करता है।’’ उन्होंने कहा कि मिट्टी बहुत व्यापक और गहरे अर्थों में मानव सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, इतिहास, कला और दर्शन से सीधे संबंधित है।
सिंह ने कहा कि राजस्थान में दाल-बाटी-चूरमा, बंगाल-बिहार में भात अथवा तमिलनाडु में इडली-सांभर अचानक स्थानीय व्यंजनों का हिस्सा नहीं बन गए। मौसम, जल संसाधन और साथ ही मिट्टी स्थानीय प्राथमिकताओं के पीछे मुख्य कारण रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी क्षेत्र में जिस प्रकार की फसल का उत्पादन होता है, वही क्षेत्र के भोजन और संस्कृति को निर्धारित करती है। धरती के बारे में संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों का हवाला देते हुए सिंह ने कहा कि यह पूरी मानवता के लिए खतरे की एक बड़ी घंटी है। इन आंकड़ों में दावा किया गया है कि 40 प्रतिशत भूमि का क्षरण हो चुका है।
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