छठ तो नवंबर में होता है फिर जून महीने में PM मोदी ने क्यों किया याद?
बिहार का सबसे महान पर्व छठ है जो नवंबर महीने में दीपावली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। कांग्रेस ने तो इस ऐलान के बाद से ही प्रधानमंत्री के खिलाफ आक्रमक रुख अपना लिया है। विपक्ष को भी यह लगने लगा है कि अगर बिहार में इस योजना के तहत तक गरीबों को राहत मिली तो उनका वोट बैंक कम हो सकता है।
भले ही लोक आस्था का महापर्व छठ बिहार में नवंबर के महीने में मनाया जाता है लेकिन इस बार जून महीने में ही इसकी चर्चा जोरों पर है। दरअसल ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैं अपने राष्ट्रीय संबोधन में छठ का दो बार नाम लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को ऐलान किया कि ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ का विस्तार नवम्बर महीने के आखिर तक कर दिया गया है। इससे 80 करोड़ लोगों को और पांच महीनों तक मुफ्त राशन मिलेगा। राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने ये घोषणा की और कहा कि इस योजना के विस्तार में90 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होंगे। अगर इसमें पिछले तीन महीने का खर्च भी जोड़ दिया जाए तो ये करीब-करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये हो जाता है। मोदी ने कहा कि जुलाई महीने से त्योहारों की शुरूआत का माहौल बनने लगता है और इसके साथ ही लोगोंकी जरूरतें और खर्चे दोनों ही बढ़ जाते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ये फैसला लिया गया है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार अब दीवाली और छठ पूजा तक यानि नवंबर महीने के आखिर तक कर दिया जाए।’’
प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबों और श्रमिकों के कल्याण के लिए 5 महीनों तक मुफ्त अनाज देने की बात को बढ़ा दी लेकिन विपक्ष अब इसे चुनाव से जोड़कर देख रहा है। विपक्ष को प्रधानमंत्री का ऐलान तो भा रहा लेकिन छठ का इस्तेमाल नहीं। अभ विपक्ष बार-बार यह आरोप लगा रहा है कि मोदी ने कल्याणकारी योजना को छठ तक ही क्यों बढ़ाया, कहीं इसका बिहार चुनाव से कनेक्शन तो नहीं है? बिहार में इस वर्ष अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा का चुनाव प्रस्तावित है। बिहार में भाजपा, जनता दल यू और लोजपा के साथ मिलकर सत्ता पक्ष में है। वहीं इसका मुकाबला महागठबंधन से होगा। महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, आरएलएसपी, हम और वीआईपी पार्टी जैसी दलें शामिल है। विपक्ष अब यह कह रहा है कि कि 5 महीने बाद चुनाव संपन्न होने के बाद क्या यह कल्याणकारी योजना समाप्त कर दी जाएगी? भले ही इस पर लाख सवाल उठ रहे हो लेकिन भाजपा इसे प्रधानमंत्री की दरियादिली बता रही है। एक बात तो स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के केंद्रीय नेतृत्व में आने के बाद भाजपा लगभग सभी ऐलान चुनाव को लक्ष्य में रखकर करती है। ऐसे में इस ऐलान को बिहार विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा ही जाएगा और खास करके तब जब प्रधानमंत्री ने खुद अपने संबोधन में दो बार छठ शब्द का इस्तेमाल किया हो।प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का विस्तार अब दीवाली और छठ पूजा तक, यानि नवंबर महीने के आखिर तक किया जा रहा है।
— BJP (@BJP4India) June 30, 2020
जिसमें 90 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होंगे। अगर इसमें पिछले 3 महीने का खर्च भी जोड़ दें तो ये करीब 1.5 लाख करोड़ रुपए हो जाता है: पीएम मोदी #ModiCARES4Poor pic.twitter.com/n2HY74HvYG
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बता दें कि बिहार का सबसे महान पर्व छठ है जो नवंबर महीने में दीपावली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। कांग्रेस ने तो इस ऐलान के बाद से ही प्रधानमंत्री के खिलाफ आक्रमक रुख अपना लिया है। विपक्ष को भी यह लगने लगा है कि अगर बिहार में इस योजना के तहत तक गरीबों को राहत मिली तो उनका वोट बैंक कम हो सकता है। ऐसे में उनका सवाल उठाना लाजमी है। बंगाल में ममता बनर्जी ने भी प्रधानमंत्री के ऊपर पलटवार करते हुए मुफ्त योजना को अगले साल यानी कि जून 2021 तक बढ़ा दिया। अब सवाल यह उठता है कि आखिर बिहार चुनाव को ही ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री इस तरीके का ऐलान क्यों करेंगे? क्या प्रधानमंत्री के इस ऐलान का फायदा सिर्फ बिहार को होगा या बाकी अन्य राज्यों को भी होगा? तो सबसे पहले यह स्पष्ट कर दें कि प्रधानमंत्री का यह ऐलान पूरे देश के लिए है। देश के किसी भी कोने में रह रहे व्यक्ति को नवंबर तक मुफ्त अनाज दिए जाएंगे। कोरोनावायरस के कारण देश में लगे लॉकडाउन की वजह से लाखों प्रवासी मजदूर प्रभावित हुए। इन मजदूरों में सबसे ज्यादा संख्या बिहार के मजदूरों की थी। जब मार्च महीने में लॉकडाउन लगाया गया था तो उसके बाद सड़कों पर हजारों मजदूर पैदल चलने को मजबूर थे। वह सभी अपने गृह राज्य लौटना चाहते थे। लॉकडाउन की वजह से जो पीड़ा उन्हें मिली उसे वह भूल नहीं पाएंगे। प्रधानमंत्री का यह ऐलान उनके जख्मों पर मरहम लगाने जैसा है।
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बिहार में भी राज्य सरकार की सबसे बड़ी यही चुनौती है कि लाखों की संख्या में वापस लौटे प्रवासियों को किस प्रकार से रोजगार उपलब्ध कराई जाए। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार मिशन की शुरुआत की। इसके बावजूद बिहार जैसे प्रदेश में रोजगार मिलना मुश्किल नजर आ रहा है। तभी तो लॉकडाउन के दौरान लाखों की तादाद में लौटे प्रभाव से एक बार फिर अपने काम पर लौटने को मजबूर हैं। स्पेशल ट्रेनों की चलने की वजह से धीरे-धीरे जो प्रवासी लॉकडाउन के दौरान बिहार लौटे थे वह वापस अपने काम पर जा रहे हैं। ऐसे में बिहार सरकार के लिए चुनौतियां और बढ़ गई है। प्रवासियों से वोट ले पाना मुश्किल काम है। ऐसे में शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह ऐलान बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को कुछ राहत जरूर दिला पाए। लेकिन अब इस ऐलान के बाद विपक्ष भी हमलावर रहेगा और इस योजना में खामियां भी खूब दिखाएगा।
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