Prajatantra: पानी-पानी हुई राजधानी, आखिर दिल्ली में बाढ़ का जिम्मेदार कौन!
दिल्ली की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए सभी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी को रविवार तक के लिए बंद कर दिया गया है। सरकारी स्कूलों को राहत शिविर में तब्दील किया जा रहा है। यमुना में पानी का उफान इस कदर है कि आईटीओ हो या फिर दिल्ली सचिवालय, मयूर बिहार का पॉश इलाका हो या फिर कश्मीरी गेट, हर तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा है।
असम, बिहार, केरल से आपने में बाढ़ की खबर अवश्य सुनी होगी। लेकिन राजधानी दिल्ली बाढ़ की चपेट में आ जाए, यह सुनकर आश्चर्य ही होता है। अगर आज की परिस्थिति में कोई आपसे यह बताएं कि राजधानी दिल्ली बाढ़ की चपेट में आ चुकी है तो आप एक बार को यही सोचेंगे कि यह कोई पुरानी खबर बता रहा है। हालांकि, यह बात सच है। 1978 के बाद दिल्ली पहली बार बाढ़ की चपेट में आई है। 45 सालों के दरमियान जो कुछ दिल्ली में नहीं हुआ, वह इस साल हो रहा है। एक ओर जहां दुनिया की चकाचौंध की रेस में दिल्ली भी कदमताल करती हुई आगे बढ़ रही है तो वही वर्तमान की स्थिति को देखते हुए इसके ड्रेनेज सिस्टम पर सवाल खड़े हो रहे हैं। यमुना खतरे के निशान से ऊपर क्या गई, दिल्ली के निचले इलाके जलमग्न हो गए। स्थिति ऐसी हो गई कि राहत और बचाव कार्य के लिए नाव भी कम पड़ने लगे। 1978 में दिल्ली में यमुना का पानी 207.49 मीटर पहुंचा था। लेकिन 45 सालों के बाद इस बार यह आंकड़ा 208.62 मीटर तक पहुंच गया है। दिल्ली में बड़ी बाढ़ 1924, 1977, 1978, 1988, 1995, 1998, 2010 और 2013 में आईं। 1963 से 2010 तक के बाढ़ आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि सितंबर में बाढ़ आने की प्रवृत्ति बढ़ती है और जुलाई में घटती है।
राहत और बचाव कार्य
दिल्ली की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए सभी स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी को रविवार तक के लिए बंद कर दिया गया है। सरकारी स्कूलों को राहत शिविर में तब्दील किया जा रहा है। यमुना में पानी का उफान इस कदर है कि आईटीओ हो या फिर दिल्ली सचिवालय, मयूर बिहार का पॉश इलाका हो या फिर कश्मीरी गेट, हर तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा है। दिल्ली सरकार के मंत्री जमीन पर दिखाई दे रहे हैं। उनकी ओर से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाए जाने के दावे भी किए जा रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस के नेता भी जमीन पर मदद पहुंचाने की कोशिश में लगे हुए हैं। दिल्ली में जल प्रलय की वजह से जल संकट का भी दौर आ सकता है। खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसके संकेत दे दिए हैं। उन्होंने कहा कि पानी भर जाने की वजह से वजीराबाद, चंद्रावल और ओखला वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बंद करना पड़ा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पीने के पानी को लेकर दिल्ली में एक-दो दिनों का संकट आ सकता है। पानी तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास तक भी पहुंच रहा है।
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खूब हो रही राजनीति
आम आदमी पार्टी के नेता लगातार दिल्ली में बाढ़ को लेकर हरियाणा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा था। उन्होंने अमित शाह से इस मामले में दखल देने की अपील की थी। इतना ही नहीं, उन्होंने जी-20 का जिक्र करते हुए कहा था कि दिल्ली में बाढ़ भारत के लिए दुनिया में अच्छा संदेश नहीं जाएगा। मुख्यमंत्री केजरीवाल लगातार स्थिति का मुआयना कर रहे हैं।
भाजपा का आरोप
दूसरी ओर दिल्ली की सरकार पर भाजपा जबरदस्त तरीके से हमलावर है। दिल्ली में फिलहाल 7 लोकसभा की सीटों पर भाजपा के सांसद हैं। भाजपा के सांसद भी पूरे मामले को लेकर सक्रिय नजर आ रहे हैं। हालांकि, भाजपा दिल्ली सरकार पर मौका साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। भाजपा ने साफ तौर पर कहा है कि दिल्ली के ड्रेनेज सिस्टम पर कोई काम नहीं हुआ है। सिर्फ दिल्ली में विज्ञापन के काम हुए हैं। भाजपा के नेता रामवीर सिंह बिधूरी ने कहा कि आम आदमी पार्टी की सरकार की वजह से दिल्ली की हालत खराब हुई हैं। दिल्ली सरकार हर मामले में पूरी तरीके से फेल है। उन्होंने इस मामले को लेकर विधानसभा सत्र बुलाए जाने की मांग की। दिल्ली भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि पिछले 9 साल से केजरीवाल दिल्ली को बर्बाद करने में लगे हैं। उनकी नाकामियों का खामियाजा दिल्ली की जनता भुगत रही है। भाजपा का दावा है कि दिल्ली जब डूब रही है तो केजरीवाल राजनीति में व्यस्त हैं। कभी वह चिट्ठी लिख रहे हैं तो कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं। लेकिन ग्राउंड पर कोई काम नहीं हो रहा। भाजपा केजरीवाल के उस वादे को भी याद दिला रही है जिसमें उन्होंने दिल्ली में वर्ल्डक्लास ड्रेनेज सिस्टम बनाने की बात कही थी। भाजपा सांसद और पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर ने तंज कसते हुए कहा कि दिल्ली में कुछ भी मुक्त नहीं है। आज हम इसकी कीमत चुका रहे हैं।
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दिल्ली खासकर इसके बाढ़ प्रभावित इलाकों की परेशान जनता वर्तमान में थोड़ी सी राहत की उम्मीद कर रही है। सरकार से लेकर राजनेता तक, इस बात का दावा कर रहे हैं कि वह लगातार मदद पहुंचाने की कोशिश में हैं। हालांकि, यह बात सच है कि हमारे देश में कई महत्वपूर्ण काम नेताओं के बयान और उनकी फाइलों में दबकर रह जाती हैं। जमीन पर उन्हें उतरते-उतरते कई साल और दशक बीत जाते हैं, स्थिति फिर भी नहीं बदलती। हर 5 साल में नेता अपने वादे कर आते हैं और जनता भी उन्हीं वादों पर विश्वास कर पुरानी बातों को भूल जाती हैं और अपना फैसला लेती है। यही तो प्रजातंत्र है।
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