क्या किसी राज्य की विधानसभा संसद में बने कृषि कानून को अप्रभावी कर सकती है?
केंद्र की दलील है कि कृषि अगर राज्य का विषय है तो कृषि उत्पादों का अंतरराज्यीय व्यापार और वाणिज्य संघ की सूची में आता है। इस वजह से केंद्र को इस मसले पर कानून बनाने का हक है। वहीं विरोध करने वालों का तर्क है कि संसद को कृषि के बारे में कानून बनाने का हक नहीं देती।
इस साल जून के महीने में मोदी सरकार खेती किसानों से जुडे़ तीन अध्यादेश लेकर आई। जिसके बाद संसद में तीन बिल पेश किए गए और तीनों के तीनों संसद के दोनों सदन से पास हो गए। सरकार कह रही है कि ये बिल किसानों की भलाई के लिए है वहीं विपक्ष इसका इनका विरोध कर रही है। किसान कानूनों का कांग्रेस पार्टी देशभर में विरोध कर रही है। पंजाब और हरियाणा में इन कानून को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। अब खबर है कि कांग्रेस शासित राज्यों में इन कानून के खिलाफ बिल पेश कर सकते हैं। वहीं महाराष्ट्र ने भी इसे काला कानून करार देते हुए साफ कह दिया है कि वह इन्हें अपने राज्यों में लागू नहीं करेगी। इसके लिए विशेष विधानसभा सत्र बुलाने की तैयारी की जा रही है।
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कांग्रेस के ड्राफ्ट में दो प्रावधान जोड़े
- कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने इस बिल से जुड़ा एक ड्राफ्ट अपने राज्यों को भेजा है। जिसमें दो प्रावधान विशेष रूप से जोड़े गए।
- केंद्र के बिल में मौजूद कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लागू ना करने को लेकर है, इसके साथ ही इसमें कहा गया है कि कोई भी कंपनी या व्यापरी एमएसपी से नीचे फसल नहीं खरीद सकता।
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क्या केंद्र को ऐसे कानून बनाने और राज्यों को इसे नकारने का हक है?
केंद्र की दलील है कि कृषि अगर राज्य का विषय है तो कृषि उत्पादों का अंतरराज्यीय व्यापार और वाणिज्य संघ की सूची में आता है। इस वजह से केंद्र को इस मसले पर कानून बनाने का हक है। वहीं विरोध करने वालों का तर्क है कि संसद को कृषि के बारे में कानून बनाने का हक नहीं देती। संविधान की संघ सूची में केंद्र को राज्यों के बीच खाद्य पदार्थों के अंतरराज्यीय कारोबार के मसले पर कानून बनाने का तो हक है लेकिन कृषि बाजार के लिए कानून बनाने का अधिकार नहीं। लेकिन कई जानकारों की माने तो नए कृषि कानूनों को राज्य सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। कोर्ट ही इस मामले में केंद्र और राज्यों के अधिकारों की व्याख्या कर सकता है।
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