Stalin को हटाने के लिए बीजेपी किसी भी हद तक जाने को तैयार, क्या पार्टी भूल गई वाजपेयी का वो अपमान?

दोनों के बीच कलह अन्नामलाई द्वारा द्रविड़ पार्टी के प्रतीक जयललिता और तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री सी एन अन्नादुरई की आलोचना से नहीं, बल्कि इस तथ्य से उपजी है कि दोनों एक ही क्षेत्र (पश्चिमी तमिलनाडु) और एक ही जाति (गौंडर्स) से हैं, जो उन्हें एक ही राजनीतिक आधार के लिए प्रतिद्वंद्वी और दावेदार बनाता है।
अमित शाह के ऐलान के बाद अब तय है कि तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में ही चुनाव लड़ेगी। मुस्कुराते हुए अमित शाह की तस्वीर, उनके बगल में एडप्पादी पलानीस्वामी और गंभीर दिख रहे के अन्नामलाई की तस्वीर अपनी कहानी खुद बयां करती है। भाजपा ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह अगले साल विधानसभा चुनावों से पहले, गठबंधन टूटने के लगभग दो साल बाद, एआईएडीएमके को एनडीए के पाले में वापस लाने में कामयाब रही है। हालांकि, तस्वीर ने रेखांकित किया कि एआईएडीएमके प्रमुख ईपीएस ने यह सुनिश्चित किया था कि निवर्तमान तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई उनके लिए पिच को खराब करने के लिए आसपास नहीं होंगे।
इसे भी पढ़ें: अध्यक्ष पद से अचानक क्यों कटा अन्नामलाई का पत्ता? तेजस्वी सूर्या को लेकर क्या खबर आ रही है
ईपीएस ही होंगे सीएम फेस
दोनों के बीच कलह अन्नामलाई द्वारा द्रविड़ पार्टी के प्रतीक जयललिता और तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री सी एन अन्नादुरई की आलोचना से नहीं, बल्कि इस तथ्य से उपजी है कि दोनों एक ही क्षेत्र (पश्चिमी तमिलनाडु) और एक ही जाति (गौंडर्स) से हैं, जो उन्हें एक ही राजनीतिक आधार के लिए प्रतिद्वंद्वी और दावेदार बनाता है। केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने स्पष्ट किया कि ईपीएस तमिलनाडु में एनडीए का नेतृत्व करेंगे। एआईएडीएमके प्रमुख गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। पूरी संभावना है कि अन्नामलाई अब राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखेंगे। राज्य में भाजपा को खड़ा करने के लिए पुलिस से राजनेता बने अन्नामलाई की कड़ी मेहनत के बावजूद, पार्टी ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया, 2019 के लोकसभा चुनावों में इसका वोट शेयर 3.7% से बढ़कर पिछले साल केवल 11.24% रह गया।
इसे भी पढ़ें: Delhi के 70 मोहल्ला क्लिनिक अब होंगे आयुष्मान आरोग्य मंदिर, ये सुविधाएं की जाएंगी प्रदान
स्टालिन को हटाना मकसद
दोनों दलों के साथ आने का मामला आकर्षक है। 2021 के विधानसभा चुनावों में उनके गठबंधन को 40% वोट मिले, जबकि DMK-कांग्रेस-वाम गठबंधन को 45% से ज़्यादा वोट मिले। जब AIADMK ने NDA से अलग होकर पिछले साल लोकसभा चुनाव लड़ा था, तो उसे 20.46% वोट मिले थे, जबकि भाजपा के नेतृत्व वाले समूह को 18% वोट मिले थे, दोनों को मिलाकर 41% वोट मिले थे। DMK के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 2024 में अपना वोट शेयर बढ़ाकर 47% कर लिया है, हाल के चुनावों में दोनों गठबंधनों के बीच का अंतर लगभग 5-6% रहा है। अगर NDA इस अंतर को कुछ हद तक पाटने में कामयाब हो जाता है, तो मुकाबला कांटे का हो सकता है।
जब एआईएडीएमके की वजह से गिर गई थी वाजपेयी सरकार
वही जयललिता और वही एआईएडीएमके पार्टी है जिसकी वजह से अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार गिर गई थी। वाजपेयी को इस्तीफा देना पड़ा और इस्तीफे के दौरान उनका वो ऐतिहासिक संबोधन जिसे लोकतंत्र के रहने तक याद किया जाता रहेगा। 1998 में एआईएडीएमके एनजीए का हिस्सा तो था लेकिन 1999 में इसी पार्टी के अलग होने से वाजपेयी को इस्तीफा देना पड़ा था और इस्तीफे की स्क्रिप्ट बीजेपी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने लिखी थी। दरअसल, हुआ ये था कि वाजपेयी सरकार गठबंधन कि सरकार थी और इसमें जयललिता एक अहम किरदार थीं। जयललिता चाहती थी कि वाजपेयी उनके खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मुकदमों को वापस ले ले और सुब्रह्मण्यम स्वामी को वित्त मंत्री बना दे। साथ ही जयललिता ये भी चाहती थी कि प्रधानमंत्री वाजपेयी तमिलनाडु में करुणानिधि की सरकार को बर्खास्त कर दें। लेकिन उसूलों के पक्के वाजपेयी इसके लिए तैयार नहीं हुए और जयललिता नाराज हो गई। फिर वो ऐतिहासिक चाय पार्टी जिसने वाजपेयी सरकार को गिराने की नींव रख दी। इस चाय पार्टी में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी और जयललिता को एक साथ बिठा दिया। फिर आता है 14 अप्रैल का दिन जब जयललिता ने राष्ट्रपति को समर्थन वापसी पत्र सौंप दिया। फिर अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग हुई। वाजपेयी सरकार गिर गई।
अन्य न्यूज़