सौरव-बीसीसीआई प्रकरण के बाद बंगाली क्षेत्रीयता फिर उभरी, भाजपा कठिन स्थिति में

Sourav Ganguly
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हालांकि, बीसीसीआई की वार्षिक आम सभा (एजीएम) आईसीसी के चुनाव पर बिना किसी चर्चा के संपन्न हो गई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह को लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए बीसीसीआई सचिव के रूप में फिर से चुना गया।

भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष पद से सौरव गांगुली के हटाये जाने के प्रकरण के बाद बंगाली क्षेत्रीय एक बार फिर से उभरकर सामने आयी है और मौजूदा मामले में तृणमूल कांगेस (टीएमसी) सबसे अधिक फायदे में नजर आ रही है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में मजबूत स्थिति हासिल कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस मामले में कुछ कठिन स्थिति में नजर आ रही है। वर्ष 1983 की विश्व कप विजेता टीम के सदस्य रोजर बिन्नी को गांगुली की जगह बीसीसीआई का 36वां अध्यक्ष चुना गया है।

हालांकि, बीसीसीआई की वार्षिक आम सभा (एजीएम) आईसीसी के चुनाव पर बिना किसी चर्चा के संपन्न हो गई। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह को लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए बीसीसीआई सचिव के रूप में फिर से चुना गया। हालांकि, गांगुली का बाहर निकलना एक नियमित घटनाक्रम के रूप में अछूता नहीं रहा है और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने बीसीसीआई अध्यक्ष पद से उनके ‘‘हटाये जाने’’ पर आश्चर्य व्यक्त किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप की मांग की, ताकि उन्हें आईसीसी के अध्यक्ष पद लिए चुनाव लड़ने की अनुमति दी जा सके।

बनर्जी ने गांगुली को न केवल बंगाल, बल्कि पूरे देश का गौरव बताया और कहा कि इस मामले को राजनीतिक या बदले की भावना के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। तृणमूल नेता एवं सांसद सौगत राय ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह टीएमसी के लिए जीत की स्थिति है। अगर गांगुली को आईसीसी चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाती है, तो हम कह सकते हैं कि टीएमसी की मांग के कारण भाजपा को आखिरकार इसे स्वीकार करना पड़ा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर उन्हें अनुमति नहीं दी गई तो यह साबित हो जाएगा कि भाजपा बंगाल-विरोधी है और हमारे प्रतिष्ठित लोगों में से एक (गांगुली) का अपमान कर बंगाली गौरव को ठेस पहुंचाएगी।’’ तृणमूल ने बांग्ला निजेर मेयेकेई चाय (बंगाल अपनी बेटी चाहता है) का चुनावी नारा गढ़कर बंगाली क्षेत्रीयता को हवा दी थी और इसका इस्तेमाल 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए किया था। तृणमूल ने पहले गांगुली के बीसीसीआई से बाहर होने को ‘‘राजनीतिक प्रतिशोध’’ का परिणाम करार दिया था और भाजपा पर पूर्व भारतीय कप्तान को ‘‘अपमानित करने की कोशिश’’ करने का आरोप लगाया था, क्योंकि भगवा पार्टी गांगुली को अपने बैनर तले लाने में विफल रही थी।

तृणमूल महासचिव कुणाल घोष ने कहा, ‘‘पश्चिम बंगाल और देश के लोग जानना चाहते हैं कि जय शाह को फिर से चुना गया, लेकिन सौरव गांगुली को दूसरा कार्यकाल क्यों नहीं दिया गया। भगवा पार्टी को जवाब देना होगा कि वह गांगुली का अपमान करने की कोशिश क्यों कर रही है। यह निर्णय साबित करता है कि भाजपा एक बंगाल विरोधी पार्टी है।“ एक बार ऐसी अफवाह थी कि भाजपा गांगुली को अपनी पश्चिम बंगाल इकाई में प्रमुख भूमिका में लाना चाहती है, क्योंकि वह (भाजपा) मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करिश्मे का मुकाबला करने के लिए एक चेहरे की तलाश में थी।

हालांकि, इस दिग्गज क्रिकेटर ने अब तक खुद को क्रिकेट प्रशासन तक सीमित रखते हुए राजनीति से दूरी बना रखी है। इस बीच भाजपा ने कहा है कि यदि बनर्जी बीसीसीआई के घटनाक्रम से ‘‘इतनी चिंतित’’ हैं, तो उन्हें बॉलीवुड मेगास्टार शाहरुख खान की जगह गांगुली को राज्य का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त करना चाहिए। हालांकि भाजपा ने स्वीकार किया है यह मुद्दा उसे कुछ समय के नुकसान पहुंचा सकता है। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव अनुपम हाजरा ने कहा, ‘‘हम सभी जानते हैं कि कैसे टीएमसी ने विधानसभा चुनावों के दौरान बंगाल में भाजपा का मुकाबला करने के लिए बंगाली गौरव के मुद्दे का दुरुपयोग किया है। टीएमसी सौरव गांगुली प्रकरण को ‘तृणमूल बनाम भाजपा’ के रूप में दिखाने की कोशिश कर रही है, जो फिलहाल हमारे लिए हानिकारक साबित हो सकता है। अब हम पर यह संदेश देने की जिम्मेदारी है कि हम न तो बंगाल के खिलाफ हैं और न ही सौरव गांगुली के।’’

हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि बंगाल के राजनेताओं ने ‘‘कलकत्ता के राजकुमार’’ के लिए आवाज उठाई है। वर्ष 2005 में टीम के तत्कालीन कोच ग्रेग चैपल के साथ अनबन के दौरान जब उन्हें भारतीय टीम से बाहर कर दिया गया था तब भी पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और राज्य के तत्कालीन मंत्री अशोक भट्टाचार्य उनके समर्थन में खुलकर सामने आए थे। अशोक भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि सौरव गांगुली को राजनीति से दूर रहना चाहिए। टीएमसी और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, उनका एकमात्र एजेंडा खेल संस्थानों को नियंत्रित करना है।’’

इस बीच, एक बंगाली राष्ट्रवादी संगठन ‘बांग्ला पोक्खो’ ने कहा कि राज्य सौरव गांगुली के साथ हुए “अन्याय” को कभी स्वीकार नहीं करेगा। बांग्ला पोक्खो के एक वरिष्ठ नेता कौशिक मैती ने कहा, ‘‘जब 2021 के विधानसभा चुनाव करीब थे, तब भाजपा को सौरव की जरूरत थी। चुनाव खत्म होने के बाद, वे ‘दादा’ को अपमानित करने की कोशिश कर रहे हैं। बंगाल के लोग कभी इस अपमान को स्वीकार नहीं करेंगे।” हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों ने महसूस किया कि इस मुद्दे ने बंगाल की सत्ताधारी पार्टी को कुछ राहत दी है, क्योंकि यह भ्रष्टाचार के कई मामलों और सीबीआई एवं ईडी द्वारा अपने नेताओं की गिरफ्तारी से घिर चुकी है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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