Prajatantra: Farooq Abdullah हो या Ghulam Nabi Azad, UCC का विरोध क्यों कर रहे Jammu-Kashmir के नेता
जबसे यूसीसी की चर्चा शुरू हुई है, जम्मू कश्मीर की राजनीति में भी हलचल तेज हो गई है। जम्मू कश्मीर के तमाम बड़े राजनेता यूसीसी का विरोध कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने इस मामले पर कहा कि केंद्र सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।
देश में समान नागरिक संहिता को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है। भाजपा की ओर से इस पर लगातार आगे बढ़ने के बाद की जा रही है। तो वहीं विपक्ष के कई दल इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। इसकी शुरुआत तब हुई जब विधि आयोग ने इसको लेकर धार्मिक संगठनों और आम लोगों से सुझाव मांगे थे। हालांकि, यह मामला गर्म तब हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश में इसकी चर्चा कर दी। विपक्ष का साफ तौर पर कहना है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की भाजपा सरकार के पास कोई उपलब्धियां बताने के लिए नहीं है। इसलिए लोगों का ध्यान हटाने के लिए इस तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं। समान नागरिक संहिता को इस्लाम विरोधी बताया जा रहा है।
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जम्मू कश्मीर के विपक्षी दल कर रहे हैं विरोध
जबसे यूसीसी की चर्चा शुरू हुई है, जम्मू कश्मीर की राजनीति में भी हलचल तेज हो गई है। जम्मू कश्मीर के तमाम बड़े राजनेता यूसीसी का विरोध कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने इस मामले पर कहा कि केंद्र सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। यह विविधताओं से भरा देश हैं और यहां विभिन्न जातियों व धर्मों के लोग रहते हैं और मुसलमानों का अपना शरिया कानून है। उन्होंने कहा कि केंद्र को इसे आगे बढ़ाने के बजाय इसके परिणामों के बारे में सोचना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि तूफान आ जाए। यूसीसी के मुद्दे पर मीडिया कर्मियों के पूछे गए एक सवाल पर उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के बहाने भाजपा सरकार अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेने का इरादा रखती है। उन्होंने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि केंद्र सरकार बहुसंख्यकवाद के सिद्धांत पर चल रही है और हम UCC का ड्राफ्ट आने के बाद ही इस पर अंतिम फैसला लेंगे।
समान नागरिक संहिता से जुड़े एक सवाल पर महबूबा मुफ्ती ने कहा कि वे किस एकरूपता की बात कर रहे हैं? हाँ, हमारे पास पहले से ही समान आपराधिक संहिता है और वह पूरी तरह से काम कर रही है। पीडीपी अध्यक्ष ने भाजपा पर उसके "दोहरे मानदंड" के लिए कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि वे यूसीसी के बारे में बात करते हैं लेकिन पहले बलात्कार विरोधी कानून लागू करे। वे बलात्कारियों के साथ तस्वीरें खिंचवाते हैं। जबकि बिलकिस बानो के बलात्कारियों को छोड़ दिया गया, महिला पहलवानों का बलात्कारी आज़ाद घूम रहा है। डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यूसीसी को लागू करने का सवाल ही नहीं है। यह अनुच्छेद-370 को निरस्त करने जितना आसान नहीं है। सभी धर्म इसमें शामिल हैं। सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि सिख, ईसाई, आदिवासी, जैन और पारसी, इन सभी लोगों को नाराज करना किसी भी सरकार के लिए अच्छा नहीं होगा।
प्रधानमंत्री ने क्या कहा था
नरेन्द्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की पुरजोर वकालत करते हुए सवाल किया कि ‘‘दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा?’’ और कहा कि इस संवेदनशील मुद्दे पर मुसलमानों को उकसाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने तय किया है कि वह तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति के बजाए ‘‘संतुष्टिकरण’’ के रास्ते पर चलेगी। मोदी ने कहा कि विपक्ष समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मुद्दे का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने और भड़काने के लिए कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय मुसलमानों को यह समझना होगा कि कौन से राजनीतिक दल उन्हें भड़काकर उनका फायदा लेने के लिए उनको बर्बाद कर रहे हैं। उन्होंने कहा, विपक्ष हम पर आरोप लगाते हैं लेकिन हकीकत यह है कि वे मुसलमान, मुसलमान करते हैं। अगर वे वास्तव में मुसलमानों के हित में (काम) कर रहे होते, तो मुस्लिम परिवार शिक्षा और नौकरियों में पीछे नहीं होते।
कश्मीर में क्यों हो रहा विरोध
जम्मू कश्मीर भारत का केंद्र शासित प्रदेश है जहां मुस्लिम आबादी बाकी के समुदायों से ज्यादा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक लगभग 69% इस्लाम को मानने वाले जम्मू कश्मीर में रहते हैं। इसके अलावा हिंदू धर्म को मानने वाले 28.80% और सिख धर्म को मानने वाले लगभग 2% लोग जम्मू-कश्मीर में रहते हैं। जम्मू कश्मीर की ज्यादातर सीटे उत्तरी कश्मीर से हुआ करती हैं। उत्तरी कश्मीर में मुसलमानों का बोलबाला है। इसका असर चुनाव पर भी रहता है। यही कारण है कि जम्मू कश्मीर के राजनेता जबरदस्त तरीके से यूसीसी का विरोध करते रहे।
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जम्मू कश्मीर से 370 हट जाने के बाद महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला सहित राज्य के तमाम विपक्षी नेता इसका लगातार विरोध कर रहे हैं। ऐसे में यूसीसी का मुद्दा भी सामने आ रहा है। इन नेताओं का विरोध इस बात की ओर साफ तौर पर इशारा करता है कि कहीं जम्मू कश्मीर से मुस्लिम वोट इन से दूर ना हो जाए। जम्मू कश्मीर की राजनीति में महबूबा परिवार और अब्दुल्ला परिवार वर्षों से राज करता आया है। विकास से ज्यादा वहां धार्मिक मुद्दों को ही बढ़ावा दिया गया। इसकी वजह से इनकी राजनीति फलती-फूलती रही। अब धारा 370 के हटने के बाद से जम्मू कश्मीर को विकास की धारा में जोड़ने की कोशिश की जा रही है। लोगों के उत्थान के लिए लगातार काम किए जा रहे हैं। ऐसे में चुनावों के दौरान जनता अपने अहम मुद्दों को ध्यान में रखकर ही मतदान करेगी। भले ही नेता कुछ भी कहे। यही तो प्रजातंत्र है।
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